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कोजागरा की तैयारियों में जोर-शोर से जुटे मिथिलावासी

दरभंगा। मिथिलांचल का लोक पर्व कोजागरा रविवार को धूमधाम से मनाया जाएगा। मिथिला के नवविवाहित दुल्हों के घर कोजागरा को लेकर उत्सवी माहौल देखा जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 12 Oct 2019 12:39 AM (IST)Updated: Sat, 12 Oct 2019 06:12 AM (IST)
कोजागरा की तैयारियों में जोर-शोर से जुटे मिथिलावासी
कोजागरा की तैयारियों में जोर-शोर से जुटे मिथिलावासी

दरभंगा। मिथिलांचल का लोक पर्व कोजागरा रविवार को धूमधाम से मनाया जाएगा। मिथिला के नवविवाहित दुल्हों के घर कोजागरा को लेकर उत्सवी माहौल देखा जा रहा है। घरों में दूल्हे के ससुराल से आने वाले भाड़ को लेकर चर्चाएं होनी शुरू हो चुकी है। रिश्तेदारों और मेहमानों के आने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। वहीं दूसरी ओर, कोजागरा को लेकर बाजार में भी चहल-पहल बढ़ गई है। शहर में जहां-तहां मखाना की दुकानें सज चुकी है। कोजागरा के अवसर पर समाज के लोगों में मखाना-बताशा और पान बांटने की परंपरा है।

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प्रदोष काल में होती है लक्ष्मी की पूजा :

कोजागरा पर्व आश्विन मास की पूर्णिमा यानी कि शरद पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन प्रदोष काल में माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही नवविवाहित दूल्हे का चुमावन कर नवविवाहितों के समृद्ध और सुखमय जीवन के लिए प्रार्थना की जाती है। इसके बाद लोगों के बीच मखाना-बताशा, पान आदि बांटे जाते हैं। कोजागरा की रात जागरण का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि कोजागरा की रात लक्ष्मी के साथ ही आसमान से अमृत वर्षा होती है। पूरे वर्ष में शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा सबसे अधिक शीतल और प्रकाशमान प्रतीत होते हैं। इन सब के बीच यह पर्व सामाजिक समरसता का भी प्रतीक माना जाता है।

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पचीसी खेलने की है परंपरा :

हंसी-ठिठोलियों से अनुगूंजित वातावरण में शरद पूर्णिमा की शीतल रात में पीसे अरवा चावल के घोल (पिठार) से आंगन में बने अड़िपन (अल्पना) पर दूल्हे का चुमावन ससुराल से आए धान व दूब से किया जाता है। इसके बाद जीजा-साला औैर देवर-भाभी के बीच कौड़ी का खेल खेला जाता है। पूरी रात घरों में हास-परिहास का माहौल बना रहता है। गौरतलब है कि कोजागरा पर्व के अवसर पर दूल्हे की ससुराल से बड़ा सा डाला आता है। इसमें धान, दूब, मखाना, पान की ढोली, नारियल, केला, समूची सुपारी, यज्ञोपवीत, लौंग, इलायची, चांदी की कौड़ी, दही, मिठाइयां सजाकर रखी रहती हैं। पहले मिथिला की हस्तकला के नमूने भी इस पर सीकी से बनी पौती, सुपारी, इलायची व लौंग का छोटा पेड़ आदि होता था। इस डाला के आकार व व्यवस्थित सामग्री को देखने लोग आते हैं। यह पर्व दूल्हे के घर होता है और इस दौरान दुल्हन मायके में रहती है। घर की महिलाओं द्वारा चुमावन के बाद बुजुर्ग मंत्र के साथ दूर्वाक्षत देकर दूल्हे को आशीर्वाद देते हैं। इसके बाद पान-मखान के वितरण के साथ ही बच्चों की आपाधापी शुरू हो जाती है।

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मखाना से पटा बाजार :

इस पर्व में मखाना और पान का विशेष महत्व माना जाता है। इस कारण पूरे वर्ष में मखाना के भाव सबसे अधिक इसी दौरान होते हैं। शहर से लेकर गांवों तक में जगह-जगह मखाना की दूकानें सज चुकी है। इस बार शहर में मखाना का भाव पांच सौ से छह सौ रुपये प्रति किलो बताया जा रहा है। वहीं ग्रामीण इलाकों में भी दाम में विशेष अंतर नहीं है। मखाना व्यापारियों की मानें तो दिनानुदिन मखाना का उत्पादन घटता जा रहा है। यही वजह है कि मखाना के लिए प्रसिद्ध मिथिला में मखाना आम लोगों की पहुंच से दूर होता जा रहा है।

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चुमावन के लिए प्रदोष काल सर्वोत्तम :

संस्कृत विवि के वेद विभागाध्यक्ष डॉ. विद्येश्वर झा के अनुसार चुमावन के लिए प्रदोष काल सर्वोत्तम होता है। इसी काल में लक्ष्मी पूजा का भी उत्तम समय है। रविवार को सूर्यास्त के बाद 1 घंटा 36 मिनट तक यानी कि शाम के 7.22 बजे तक प्रदोष काल है। वैसे चुमावन पूरी रात कभी भी किया जा सकता है। शनिवार को प्रदोष काल में एक पल के लिए भी पूर्णिमा नहीं पड़ता। इसलिए कोजागरा पर्व रविवार को ही मनाया जाएगा।

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