मगन आश्रम राजनीतिक व प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार
हायाघाट प्रखंड के मझौलिया गांव स्थित मगन आश्रम ऐतिहासिक है।
दरभंगा । हायाघाट प्रखंड के मझौलिया गांव स्थित मगन आश्रम ऐतिहासिक है। आजादी के आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों का गढ़ रहा यह मगन आश्रम आजादी मिलने के बाद आज खंडहर में तब्दील हो चुका है। देश की आजादी की रणनीति का गवाह यह स्थल आप अपने जीर्णशीर्ण अवस्था पर कराह रहा है। इसे इंतजार है उस उद्धारक का जो इसके दर्द को समझ सके। पिछले एक दशक से यह आश्रम बंद पड़ा है, लेकिन इसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। हालांकि, स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्रता दिवस, या फिर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती व पुण्यतिथि, इन खास अवसरों पर कुछ खद्दर कुर्ता व टोपी पहनने वाले इस सरजमीं को तो याद कर घड़ियाली आंसू जरूर बहाते हैं, लेकिन यहां से वापस जाते ही वे इसे भूल जाते है। इस आश्रम से देश की आजादी का बिगुल फूंका गया था। इतना ही नहीं, इस आश्रम से पर्दा प्रथा, अस्पृश्यता, नशा मुक्ति, अशिक्षा, विधवा विवाह, विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार का शंखनाद भी हुआ। आश्रम को अपना कर्मभूमि बनाकर रघुनाथपुर के नामी जमींदार राजेंद्र प्रसाद मिश्र के पुत्र स्वतंत्रता सेनानी रामनन्दन मिश्र की अगुआई में इस आश्रम को स्थापित किय गया। यहीं से उन्होंने पर्दा प्रथा के खिलाफ बिगुल बजाते हुए अपनी पत्नी राजकिशोरी के साथ घर से बाहर निकल पड़े और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिसक स्वराज्य आंदोलन में कूद पड़े। इस दौरान गांधीजी ने अपने भतीजे मगन लाल गांधी को यहां भेजा। यहां आने के क्रम में 22 अप्रेल 1928 को पटना में ही उनका निधन हो गया। उन्हीं की याद में स्वतंत्रता सेनानी पंडित रामनन्दन मिश्र सहित अन्य लोगों ने मिलकर वर्ष 1929 में मझौलिया गांव में मगन आश्रम की स्थापना की। आश्रम के लिए मझौलिया गांव के जगदीश चौधरी ने अपनी सारी जमीन दे दी। इसमें गांव के अन्य लोगों ने भी सहयोग किया। जगदीश चौधरी, पिपरा गांव के बृजबिहारी कुंवर, मझौलिया के श्रीनारायण चौधरी, नीरस चौधरी सहित नौ लोग अपने परिवार के साथ इस आश्रम में रहने लगे। युवकों के देश प्रेम की भावना को देखते हुए गांधीजी ने वर्ष 1929 में सरदार बल्लभ भाई पटेल को यहां भेजा। बाद में डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जेबी कृपलानी, अरुणा अशरफ अली, सुचेता कृपलानी, विमला फारुखी, जयाप्रभा देवी आदि स्वतंत्रता के सारथी यहां आए। मगन गांधी की बेटी राधा गांधी व दुर्गा बाई भी यहां पहुंची। महात्मा गांधी के आह्वान पर चरखा काटने का अभियान भी यहां चला। यह आश्रम अपने आप में स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को समेटे हुए हैं। लेकिन, आज उपेक्षित है। मझौलिया गांव के डॉ. शरद कुमार झा का कहना है कि यह दु:खद है कि आजादी की लड़ाई का यह इतिहास प्रशासनिक व राजनीतिक उपेक्षा के कारण खंडहर होता जा रहा है। इसका जीर्णोद्धार होना चाहिए। केंद्र व राज्य सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए।