भारत पीड़ा को सहन करने के साथ जानता है पलटवार करना : नारायण
भारत को पुण्यभूमि कहा जाता रहा है और राष्ट्र से हमारा भावनात्मक जुड़ा रहा है।
दरभंगा । भारत को पुण्यभूमि कहा जाता रहा है और राष्ट्र से हमारा भावनात्मक जुड़ा रहा है। जिसके कारण अलग वेषभूषा, खानपान, जाति-धर्म के बावजूद भी यहां के नागरिक राष्ट्र के नाम पर एक हो जाते हैं। हमें तोड़ने का प्रयास प्राचीन काल से होता रहा है। कभी तलवारों के सहारे हमारे सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक व्यवस्था को तहस-नहस करने का प्रयास हुआ तो कभी विदेशियों ने धर्म के नाम पर हमारा बंटबारा करा दिया। और अब फिर हमें धमाकों से दहलाकर तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। पर आज का भारत पीड़ा को सहन करने के साथ-साथ पलटवार भी करना जानता है। ये बातें राजनीतिक ¨चतक डॉ जितेन्द्र नारायण ने कबतक आतंकवाद की पीड़ा सहेगा भारत विषयक सेमिनार को संबोधित करते हुए कही। डॉ प्रभात दास फाउण्डेशन एवं लनामिविवि पीजी समाजशास्त्र की ओर से आयोजित कार्यक्रम में विषय-वस्तु की विस्तृत व सारगर्भित व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि 1965 की जंग में जिस आतंकवाद को फोड़ा-फुंसी मानकर जनरल करिअप्पा को छोड़ने हेतु विवश किया गया था अब वो कैंसर की माफिक हो गया है। इसलिए इसका कारगर इलाज जरूरी है। प्रो. डॉ. गोपी रमण ¨सह ने कहा कि भटके-गुमराह लोगों को संभालने के लिए बुजुर्गो को आगे आना होगा। पुरातन पीढ़ी अगर आधुनिक युवाओं का मार्गदर्शन करेगी तो आतंकी देश भी सुधर सकता है। भारत के नागरिकों का सीधा जुड़ाव राष्ट्र से है और इसका नजारा हमें 15 अगस्त एवं 26 जनवरी को हर वर्ष स्पष्ट दिख जाता है। सेमिनार को डॉ दिलीप झा, विमल कुमार, स्वाती कुमारी, कंचन कुमारी, नेहा कुमारी, राजा कुमार, गो¨वद कुमार ¨सह आदि ने भी संबोधित किया। अतिथियों का स्वागत डॉ मंजू झा ने किया। जबकि धन्यवाद ज्ञापन फाउण्डेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने दिया। संचालन समाजशास्त्र विभाग के वरीय प्रोफेसर डॉ. विद्यानंद मिश्र ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत पुलवामा में शहीद सैनिकों को एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि देते हुए किया गया।