दूसरी हरित क्रांति में पहले के कुप्रभावों के निराकरण का प्रयास
भूख मिटाने के एक मात्र लक्ष्य को लेकर शुरू की गई हरित क्रांति भारत में सफल रही लेकिन इसके कुप्रभाव भी देखने को मिले जिसे दूर करने का प्रयास दूसरी हरित क्रांति के तहत किया गया है।
दरभंगा । भूख मिटाने के एक मात्र लक्ष्य को लेकर शुरू की गई हरित क्रांति भारत में सफल रही, लेकिन इसके कुप्रभाव भी देखने को मिले जिसे दूर करने का प्रयास दूसरी हरित क्रांति के तहत किया गया है। उक्त बातें आचार्य रामानाथ झा हेरिटेज सीरीज के तहत किराय मुसहर स्मृति व्याख्यान देते हुए भारत कृषि अनुसंधान परिषद के वरीय वैज्ञानिक डॉ. यूडी सिंह ने कही। लनामिविवि के गांधी सदन सभागार में आयोजित कार्यक्रम में डॉ. सिंह ने कहा कि मैक्सिको की हरित क्रांति को देखकर 60 के दशक में भारत को भुखमरी से बचाने के लिए यह एक मात्र विकल्प था। आज भी अगर हम हरित क्रांति के अवदानों को छोड़ दें तो भारत एक बार फिर भुखमरी के दौर में लौट सकता है। हालांकि, डॉ. सिंह ने माना कि हरित क्रांति भारत में महज दो-तीन फसलों और दो-तीन राज्यों तक ही सिमटी रही, जिसका समुचित लाभ बिहार खासकर मिथिला जैसे इलाके को नहीं मिला। डॉ. सिंह ने माना कि अनाज उत्पादन का एकमात्र लक्ष्य होने के कारण इसके कुप्रभाव की ओर सरकार का ध्यान शुरुआती दिनों में नहीं गया और अत्यधिक कीटनाशक के प्रयोग और जल दोहन के कारण इसका हमारे जीवन और समाज पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ा है। जिसके निराकरण का सरकार दूसरी हरित क्रांति में प्रयास कर रही है। कुलपति प्रो. एसके सिंह ने कहा कि हरित क्रांति की सफलता भुखमरी के क्षेत्र में उल्लेखनीय है, लेकिन हमें इसके कुप्रभाव का भी निदान निकालना होगा। सरकार इन बातों पर गंभीर है और बिहार सरकार के प्रस्तावित कृषि रोड मैप में इन सवालों उत्तर सम्भावित है। प्रतिकुलपति प्रो. जयगोपाल ने कहा कि हरित क्रांति के बिना हम देश को भूखे मरने से नहीं बचा सकते थे। हमारे पास उस वक्त इसके कुप्रभाव देखने का न तो विकल्प था और ना ही कोई अध्ययन, क्योंकि जो कुप्रभाव भारत में देखने को मिल रहे हैं, वो उन देशों में देखने को नहीं मिलते जहां भारत से पहले या भारत के बाद हरित क्रांति हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व प्रशासनिक अधिकारी गजानन मिश्र ने कहा कि अंग्रेजों के जमाने में मिथिला का इलाका उपज में पिछड़ गया। 17वीं-18वीं शताब्दी के चार रिर्पोटों का आंकड़ा देते हुए कहा कि अंग्रेज के आने से पहले जहां तिरहुत में प्रति एकड़ 9 से 13 मन तक धान की पैदावार होती थी, वहीं 50 के दशक में यह घटकर 3 से 4 मन पहुंच गई। कहा कि हरित क्रांति हमारी पश्चिमी प्रेम का प्रतीक है, वरना हम अगर अपना इतिहास पीछे मुड़कर देखते तो उत्पादन के परंपरागत विकल्प मिलते। कार्यक्रम का संचालन ईसमाद फांउडेशन के न्यासी संतोष कुमार ने व धन्यवाद ज्ञापन आशीष झा ने किया। कार्यक्रम में राज परिवार के सदस्य गोपानंदन सिंह, अजयधारी सिंह, कुलसचिव कर्नल निशीथ कुमार राय, दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक डॉ. सरदार अरविद सिंह, उपनिदेशक डॉ. विजय कुमार, सहायक निदेशक डॉ. शंभु प्रसाद, एमएलएसएम कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. विद्यानाथ झा, डॉ. मित्रनाथ झा, चंद्रप्रकाश, अवनिद्र ठाकुर आदि मौजूद रहे।
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