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छात्र संघ अध्यक्ष के नामांकन मामले में पक्ष-विपक्ष के बीच फंसा विवि प्रशासन

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में छात्र संघ अध्यक्ष मधुमाला कुमारी के नामांकन का मामला अब उलझता जा रहा है। नामांकन में फर्जीवाड़ा का आरोप लगाते हुए अब तक सभी विरोधी छात्र संगठन अपना मोर्चा खोल चुके हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 19 May 2019 01:27 AM (IST)Updated: Sun, 19 May 2019 01:27 AM (IST)
छात्र संघ अध्यक्ष के नामांकन मामले में पक्ष-विपक्ष के बीच फंसा विवि प्रशासन
छात्र संघ अध्यक्ष के नामांकन मामले में पक्ष-विपक्ष के बीच फंसा विवि प्रशासन

दरभंगा । ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में छात्र संघ अध्यक्ष मधुमाला कुमारी के नामांकन का मामला अब उलझता जा रहा है। नामांकन में फर्जीवाड़ा का आरोप लगाते हुए अब तक सभी विरोधी छात्र संगठन अपना मोर्चा खोल चुके हैं। आइसा, एआइएसएफ, एसएफआई, छात्र जदयू, छात्र राजद, जाप, एनएसयूआई, मिथिला स्टूडेंट यूनियन इस मामले को लेकर विश्वविद्यालय मुख्यालय में आंदोलन कर चुके हैं और विवि प्रशासन इन सभी संगठनों को निष्पक्ष व नियमानुकूल कार्रवाई का आश्वासन भी चुका है। इधर, विरोधी छात्र संगठनों के मुखर व उग्र होने के बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भी अपनी चुप्पी तोड़ी है। अभाविप अब विरोधियों पर दुर्भावना से ग्रस्त होकर काम करने का आरोप लगा रहा है। अब बयानबाजी दोनों तरफ से होने लगी है। हालांकि, इस बीच विवि प्रशासन छात्र संगठनों को आश्वस्त कर चुका है कि कार्रवाई की प्रक्रिया चल रही है। विवि प्रशासन का पक्ष है कि छात्र संघ नियमावली के अनुसार किसी विवाद का निपटारा शिकायत निवारण कोषांग के माध्यम से किया जाना है। कोषांग की एक बैठक हो चुकी है। अगली बैठक सोमवार को होनी है जिसमें अंतिम निर्णय लेने का आश्वासन विवि प्रशासन आंदोलनकारियों को दे चुका है। ऐसे में अब सबकी नजर सोमवार को होने वाली बैठक पर टिकी है।

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कार्रवाई नहीं हुई तो उग्र होंगे विरोधी :

छात्र संघ अध्यक्ष के नामांकन के विरोध में मोर्चा खोलने वाले छात्र संगठनों का कहना है कि यदि विवि प्रशासन इस मामले में सही निर्णय नहीं लेता है तो आंदोलन थमने के बजाय और उग्र होगा। विरोधी छात्र संगठनों का कहना है कि पीजी में नामांकन के लिए प्रवेश परीक्षा की प्रक्रिया निर्धारित है। आम छात्रों को इसी प्रक्रिया के तहत नामांकन मिलता है। लेकिन, छात्र संघ अध्यक्ष के नामांकन में सभी नियमों को ताक पर रख दिया गया। आरोप है कि संगठन विशेष के प्रभाव में इस तरह का काम किया गया। इसी आधार पर विरोधी निर्वाचन को भी चुनौती दे रहे हैं। इनका कहना है कि जब नामांकन ही फर्जी है तो निर्वाचन सही कैसे हो सकता है। आइसा के राज्य सह सचिव संदीप चौधरी कहते हैं कि ऑफलाइन नामांकन प्रक्रिया में मनमर्जी चलती थी, लेकिन जब से ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू हुई, सब कुछ साफ है। अभाविप के आपत्ति पर इनका कहना है कि सीट रिक्त होने की स्थिति में नियमानुसार उन छात्रों का नामांकन होता है जिन्होंने ऑनलाइन आवेदन किया होता है, लेकिन जिसने ऑनलाइन आवेदन ही नहीं किया, उसका नामांकन कैसे हो सकता है। कई ऐसे छात्र हैं जो अपने नामांकन के लिए विवि मुख्यालय का चक्कर काटते रह गए, लेकिन सीट रिक्त होने पर भी उनका नामांकन नहीं हो सका। ऐसे में जिसने आवेदन ही नहीं किया, उसका नामांकन हो जाना विवि प्रशासन की दोहरी नीति को ही दर्शाता है।

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नामांकन रद्द हुआ तो उग्र होगा अभाविप :

छात्र संघ अध्यक्ष की कुर्सी हाथ से जाता देख अब अभाविप ने भी मोर्चा संभाल लिया है। एक तरफ जहां विरोधी संगठन छात्र संघ अध्यक्ष का नामांकन रद्द करने एवं पद से बर्खास्तगी की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ अभाविप पूरी तरह से छात्र संघ अध्यक्ष के बचाव की मुद्रा में आ चुका है। अभाविप का कहना है कि कोई छात्र या छात्रा बिना स्वीकृति के कैसे नामांकन ले सकता है। यदि नामांकन हुआ तो इसमें छात्र या छात्रा का क्या दोष। अभाविप का कहना है कि रिक्त सीटों पर प्रधानाचार्य, डीएसडब्ल्यू या विभागाध्यक्ष की स्वीकृति से नामांकन लिया जाता रहा है। छात्र संघ अध्यक्ष के नामांकन को पूरी तरह जायज बताते हुए अभाविप ने विवि प्रशासन को स्पष्ट कर दिया है कि विवि क्षेत्रांतर्गत चार जिलों में पीजी में नामांकन की पूरी जांच के बाद ही कोई कार्रवाई होनी चाहिए। अभाविप का कहना है कि जब तक जांच पूरी नहीं होती, तब तक किसी के खिलाफ कार्रवाई का संगठन पूरजोर विरोध करेगा।

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पक्ष-विपक्ष के बीच में फंसा विवि प्रशासन :

छात्र संघ अध्यक्ष के नामांकन मामले में अब विवि प्रशासन पक्ष-विपक्ष के बीच में फंस चुका है। विवि प्रशासन अब जो भी निर्णय ले, आंदोलन रूकने के आसार नहीं दिख रहे। विरोधियों को दिए गए आश्वासन के आलोक में यदि सोमवार को शिकायत निवारण कोषांग से छात्र संघ अध्यक्ष का नामांकन रद्द करने का निर्णय लिया जाता है तो अभाविप इसका विरोध करेगा। यदि मामले को लटकाया जाता है तो विरोधी छात्र संगठन एक बार फिर उग्र होंगे। दोनों ही स्थिति में विवि मुख्यालय का अखाड़ा बनना तय है।

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