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जनता क‌र्फ्यू की वर्षगांठ पर ताजा हुए पुराने जख्म, वर्तमान बना मरहम

दरभंगा। कोरोना संक्रमण से जन सुरक्षा के लिए 22 मार्च 2020 को देश में लिए गए बड़े फैसले ने दे

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Mar 2021 12:04 AM (IST)Updated: Mon, 22 Mar 2021 12:04 AM (IST)
जनता क‌र्फ्यू की वर्षगांठ पर ताजा हुए पुराने जख्म, वर्तमान बना मरहम
जनता क‌र्फ्यू की वर्षगांठ पर ताजा हुए पुराने जख्म, वर्तमान बना मरहम

दरभंगा। कोरोना संक्रमण से जन सुरक्षा के लिए 22 मार्च 2020 को देश में लिए गए बड़े फैसले ने देश को सुरक्षित करने में कामयाबी पाई थी। हालांकि, आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा था। इस दिन के लिए प्रधानमंत्री की अपील का ऐसा असर था कि सभी ने कोरोना के नियमों का पालन किया। ट्रेन, बस व हवाई यात्राओं पर रोक लग गई। लोग घरों में रहे और सड़कों पर सन्नाटा रहा। शाम को लोगों ने कोरोना वारियर्स के सम्मान में शंख, थाली और ताली आदि बजाई थी।लोगों ने कोरोना फ्रंट लाइन कोरोना वर्कर के लिए अपने-अपने घरों के बालकनी से दीप-कैंडल जलाया था। आज वहीं तारीख है। उस दिन को बीते पूरे एक दिन हो गए। जनता क‌र्फ्यू ने बदल दिए जीने के रास्ते जनता क‌र्फ्यू ने जीवन जीने का तरीका ही बदल डाला। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 22 मार्च को, सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक, सभी देशवासियों को, जनता क‌र्फ्यू का पालन करना है। जरूरी ना हो तो घरों से बाहर ना निकले। हमारा ये प्रयास, हमारे आत्म-संयम, देशहित में कर्तव्य पालन के संकल्प का एक प्रतीक होगा। 22 मार्च को जनता-क‌र्फ्यू की सफलता, इसके अनुभव, हमें आने वाली चुनौतियों के लिए भी तैयार करेंगे। इस बात को सुनकर उस समय जिले की जनता समझ चुकी थी कि अब कुछ दिन, कुछ महीने घरों में ही बिताने हैं और लोगों ने उसका पालन किया। कोरोना से रक्षा मानकों पर जीना पड़ा जीवन खाजासरया निवासी विवेक कुमार बताते हैं, जनता क‌र्फ्यू ने जीवन को बदल कर रख दिया। पहले जहां अपने हिसाब से जीवन जीते थे। वहीं कोरोना संक्रमण के कारण समय के मुताबिक जीवन जीना पड़ा। कोरोना काल से पूर्व जहां बेरोकटोक कहीं घुमन, मस्ती के लिए निकल पड़त थे। वहीं जनता क‌र्फ्यू के बाद से घरों में कैद होकर खुद की और परिवार की रक्षा के लिए तैयार जीना पड़ा। भगवान से मनाता हूं, कि यह दिन अब भारत के इतिहास में कही भी लौट कर नहीं आए।

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तब कोरोना वारियर्स चिकित्सकों ने की थी पत्नी की प्राण रक्षा, पुत्री का पिता बना था मैं

लॉकडाउन के दौरान जब सरकार ने प्रवासी कामगारों के लिए स्पेशल ट्रेनों का परिचालन शुरू करने का फैसला की, तब दरभंगा जंक्शन पर गुजरात के सूरत से स्पेशल ट्रेन पहुंची थी। 26 मार्च 2020 को गाड़ी संख्या 09513 में बहादुरपुर प्रखंड के शोभेपट्टी गांव निवासी शेखर झा की पत्नी आरती देवी ने चलती ट्रेन में बच्ची को जन्म दिया था। अब बच्ची सालभर की होने वाली है। ठीक पांच दिन बाद बच्ची का जन्मदिन मनाया जाएगा। उस दिन को याद कर दंपती कहते हैं, कोरोना संक्रमण काल में जहां लोग एक दूसरे की मदद करने से घबराते थे। वहीं कोरोना वारियर्स के रूप में रेलवे चिकित्सकों ने जच्चा-बच्चा दोनों को सही सलामत उपचार कर घर तक पहुंचाया। आज भी उनके लिए दिल में सम्मान की भावना है।

जनता क‌र्फ्यू का चिकित्सीय ²ष्टिकोण और प्रभाव

डीएमसीएच मेडिसिन विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. बीके सिंह बताते हैं, जनता क‌र्फ्यू कोरोना के चेन को तोड़ने के लिए लगाया गया था। इसका सकारात्मक प्रभाव लोगों पर पड़ा।कोरोना जैसे संक्रमण से बचाव को लेकर उस समय जनता क‌र्फ्यू लगाना सही निर्णय था। कोरोना के फैलाव का कारण लोगों के एक दूसरे से संपर्क भंग कर ही किया जा सकता था।

अब तक गरीब झेल रहे लॉकडाउन का दंश समाजशास्त्री प्रो. विनोद कुमार चौधरी कहते हैं, जनता क‌र्फ्यू और लॉकडाउन से देश पीछे गया है। इस काल में लाखों को अपनी नौकरी तक खोनी पड़ी। देश जहां आर्थिक मंदी से गुजर रहा है, वहीं लोग बेरोजगारी, भूखमरी आदि से अब तक नहीं उबर पाए हैं।

तब प्रवासी कामगारों के लिए सहारा बने थे, जनप्रतिनिधि और समाजसेवी

22 मार्च 2020 के बाद से दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, बेगलुरू, कोलकाता समेत देश के कोने-कोने से प्रवासी कामगार लौट रहे थे। जब सभी यात्री वाहन बंद थे। तब प्रवासी कामगार, पांव पैदल, ट्रकों, बसों, जुगार गाड़ी,ऑटो रिक्शा आदि के सहारे घर को लौट रह थे। उन दिनों जिले के एनएच 57 से लेकर शहर में प्रवेश करने वाली लगभग सभी मुख्य सड़कों पर प्रवासी कामगारों को देखा जा सकता था। लेकिन मानवता का का चेहरा जिले के जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जज्बे के साथ दिखाया। कामगारों के लिए पानी, खाना और नाश्ता का इंतजाम जगह-जगह देखने को मिला था। इसी सहारे के बदौलत प्रवासी कामगारों की सफर आसान हो सकी। शहर के खान चौक निवासी प्रवासी कामगार मो. जुबेर कहते हैं, उस समय अगर लोग मानवता नहीं दिखाते तो, गुजरात से पांव पैदल चलकर दरभंगा पहुंचने का सफर आसान नहीं होता।


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