मैथिली के विकास को आगे आएं बुद्धिजीवी : आचार्य सुदर्शन
मैथिली की बदहाली पर ¨चता व्यक्त करते हुए आचार्य सुदर्शन जी महाराज ने कहा कि इसके विकास के लिए बुद्धिजीवियों को आगे आना चाहिए।
दरभंगा। मैथिली की बदहाली पर ¨चता व्यक्त करते हुए आचार्य सुदर्शन जी महाराज ने कहा कि इसके विकास के लिए बुद्धिजीवियों को आगे आना चाहिए। मिथिला में मैथिली की स्थिति देख कर उन्हें आज बहुत परेशानी हो रही है। यहां के लोग आज घर में भी बच्चे के साथ ¨हदी या अंग्रेजी में बात करने लगे हैं। भाषा जितने आएं वह तो ठीक है। लेकिन, मातृभाषा के प्रति भी सतत सचेत रहना चाहिए। वे रविवार को दरभंगा सेंट्रल स्कूल में संवाददाताओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मैथिली साहित्य में दिन व दिन लेखन का काम कम होता जा रहा है। इसपर गंभीरतापूर्वक ध्यान देने की जरूरत है। दरभंगा भारतवर्ष की सांस्कृतिक राजधानी है। यहां की संस्कृति आज भी लोक लुभावन है। मिथिला की संस्कृति की चर्चा आज भी विदेशों में हो रही है। उन्हें मॉरीशस में जाने पर मिथिला की संस्कृति की प्रति लोगों की आस्था देखकर काफी आश्चर्य हुआ। मिथिला पें¨टग की सारी विदेशों में काफी लोकप्रिय हो रही है। व्यक्ति को सदा सकारात्मक सोच का होना चाहिए। समाज में नकारात्मक वस्तु का प्रचार- प्रसार होने से सामाजिक समरसता भंग होती है। आदमी को हर वक्त प्रसन्न रहने की चेष्टा करनी चाहिए। स्वयं के भीतर प्रकाश जगाने पर ही हम समाज के लोगों को प्रकाशित कर सकते हैं। लेकिन, आज उल्टा हो रहा है हम केवल दूसरे का दोष ²ष्टि देखने में लगे हैं। स्वयं के ऊपर ध्यान ही नहीं देते। इस भाग-दौड़ की ¨जदगी में अपनी प्रसन्नता के लिए भी सोचने की जरूरत है। व्यक्ति को अपने संस्कार और चरित्र को बचा कर रखना चाहिए। तभी इसका प्रभाव दूसरों पर पड़ सकता है। हमारी मानसिकता कमजोर होती जा रही है। हम गरीब, दलित आदि शब्दों को प्रयोग कर अपने स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने में लगे हैं। अपनी मेधा को पीछे धकेल रहे हैं। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि गरीब रथ का नाम हम राजकुमार रथ भी रख सकते हैं। हम क्यों देश और दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि हम इतना गरीब हैं। समतामूलक समाज की स्थापना की जरूरत है। नैतिकता को मजबूत करने के लिए सकारात्मक ऊर्जा की जरूरत है। अंधकार मिटाने के लिए सूर्योदय आवश्यक होता है। हम अपनी कुरूपता या कमजोरी को किसी के सामने क्यों प्रदर्शन करेंगे स्वाभिमान जगाने से ही समाज का कल्याण होगा। देश में शिक्षा नीति के कारण परेशानी हो रही है। भारत में शिक्षा को स्वतंत्र इकाई घोषित कर देना चाहिए। शिक्षा की धारा नीचे से ऊपर की ओर जाएगी तभी सबका भला होगा। सनातन दर्शन को व्यवसायीकरण करने में सफल रहे धर्म धुरंधरों के मूल उद्देश्य पर वे समुचित उत्तर नहीं दे सके।
धार्मिक गुरुओं के दोहरे चरित्र के कारण समाज में हो रही परेशानी के संबंध में उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए।
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