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नहाय खाय के साथ शुरू हुआ छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान, खरना आज

नहाय खाय के साथ ही रविवार को लोक आस्था के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान का शुभारंभ हो गया। छठ व्रतियों ने इस अवसर पर सुबह नदी व तालाबों में स्नान कर श्रद्धापूर्वक प्रसाद तैयार किया और उसे ग्रहण किया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 12:01 AM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 12:01 AM (IST)
नहाय खाय के साथ शुरू हुआ छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान, खरना आज
नहाय खाय के साथ शुरू हुआ छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान, खरना आज

दरभंगा । नहाय खाय के साथ ही रविवार को लोक आस्था के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान का शुभारंभ हो गया। छठ व्रतियों ने इस अवसर पर सुबह नदी व तालाबों में स्नान कर श्रद्धापूर्वक प्रसाद तैयार किया और उसे ग्रहण किया। मिथिलांचल में परंपरा के अनुसार नहाय खाय के दिन अरबा चावल का भात, मूंग की दाल, कद्दू व ओल का सेवन किया जाता है। छठ व्रतियों ने प्रसाद ना केवल खुद ग्रहण किया बल्कि कई जगहों पर इसका वितरण भी किया गया। इसके साथ ही छठ का अनुष्ठान शुरू हो चुका है। नहाय खाय के बाद छठ व्रती सोमवार को होने वाले खरना की तैयारियों में जुट गए हैं। जगह-जगह छठ व्रतियों ने खरना के प्रसाद के लिए गेहूं को धूप में सुखाया। वहीं खरना का गेहूं पिसवाने के लिए आटा चक्कियों पर भी रविवार को काफी भीड़ रही। खरना का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर ही तैयार किया जाता है। रविवार को बाजार में इसकी खूब बिक्री हुई। ग्रामीण इलाकों में अधिकांश लोगों ने खुद ही मिट्टी का चूल्हा रविवार को तैयार किया।

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खरना का इतिहास :

खरना का उद्देश्य देह शुद्धि होता है। ज्योतिषाचार्य पंडित रामचंद्र झा कहते हैं कि संध्या अ‌र्घ्य से पूर्व रात्रि में संध्या काल में खरना किया जाता है। खरना का नैवेद्य ग्रहण करने के साथ ही छठ व्रतियों का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है जो सुबह के अ‌र्घ्य के बाद संपन्न होता है। खरना में सात्विक भोजन की प्रधानता है। गेहूं की रोटी व गुड़खीर का नैवेद्य दिया जाता है। इसके पीछे की अवधारणा यह है कि इसी समय में नया गुड़ तैयार होता है जिसके उपयोग की शुरुआत छठ पूजा से ही होती है। इसके अलावा शरद ऋतु का प्रवेश भी होता है जिसमें गुड़ देह के लिए फायदेमंद होता है। चूंकि यह लोकपर्व प्रकृति से जुड़ा हुआ है इसलिए इसकी परंपराएं भी प्रकृति से गहरी जुड़ी हुई हैं।

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मन्नतों को पूरा करने के लिए करते हैं छठ :

छठ को मन्नतों का पर्व कहा जाता है। छठ में घाट पर जितने अ‌र्घ्य होते हैं वे सब किसी ना किसी मन्नत का प्रतीक होते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो मन्नत पूरी हो जाती है उसके बदले लोग हर साल रन्ना माई को अ‌र्घ्य देते हैं। छठ व्रति प्रेमलता देवी कहती हैं कि एक बार मन्नत पूरी हो जाए तो हर साल अ‌र्घ्य देना अनिवार्य हो जाता है। ऐसा नहीं करने पर रन्ना माई नाराज हो जाती हैं। कुमुदनी देवी ने कहा कि अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए लोग मन्नतें मांगते हैं और इस तरह छठ व्रत की शुरुआत होती है। पिछले चालिस सालों से छठ व्रत कर रही हूं। छठ व्रती आशुतोष कुमार व विरेन्द्र मिश्र ने कहा कि परिवार के सुख-समृद्धि व कल्याण के लिए छठ व्रत करते हैं। जब से छठ मैया की पूजा शुरू की है, कई समस्याओं का स्वत: निदान हो गया है।


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