संकट में डीएमसीएच का कैंसर विभाग
उत्तर बिहार का एक मात्र डीएमसीएच का कैंसर विभाग संकट में है।
दरभंगा। उत्तर बिहार का एक मात्र डीएमसीएच का कैंसर विभाग संकट में है। राशि की कमी नहीं बल्कि विभागों के अधिकारियों की खींचातानी से यह हाल है। कैंसर मरीजों का इलाज दो दशक से नहीं हो पा रहा है। ऐसे मरीजों का इलाज मात्र ओपीडी में होता है। मरीज को भर्ती करने की सुविधा यहां नहीं है। वार्ड का नया भवन दो वर्षों से बनकर तैयार है। अनदेखी से भवन के टाइल्स और चौखट, किवाड़ आदि गायब हो चुके हैं। बैंक में 51 करोड़ की राशि सालों से पड़ी है। जबकि बिहार के इस क्षेत्र में कैंसर मरीजों की संख्या सबसे अधिक है। बावजूद स्वास्थ्य विभाग इसके इलाज के प्रति लापरवाह है।
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कहां फंसा है पेच
कैंसर वार्ड का नया भवन दो साल पहले बनकर तैया हो गया। लेकिन, भवन निर्माण मानक पर नहीं हो सका है। ऐसे में डीएमसीएच प्रशासन ने इस पर अपनी आपत्ति जताई। वार्ड से संबंधित राशि निर्गत करने की प्रक्रिया फाइलों में है। कहा जा रहा है कि संबंधित एजेंसी ने आटोमिक इनर्जी रेगुलेशन बोर्ड मुंबई को डिजाईन बनाकर नहीं भेजा है। इस वजह से राशि निर्गत नहीं हो सकी है।
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कब मिली थी राशि
सरकार ने कैंसर वार्ड को अत्याधुनिक मशीन उपकरण और भवन के निर्माण के लिए दो चरणों में राशि निर्गत किया था। पहले चरण में भवन निर्माण के लिए 60 लाख रुपये निर्गत किया गया। इस राशि से भवन का निर्माण अधूरा रह गया। इसके बाद सरकार ने अतिरिक्त 73 लाख की राशि निर्गत की। दस साल के बाद अधूरे भवन का निर्माण कार्य 2012 से फिर शुरू हुआ। इस कार्य के पूरा हुए दो साल बीत गए। दूसरे चरण में नेशनल कैंसर कंट्रोल प्रोग्राम ने 1990 में छह करोड़ राशि स्वीकृत की थी। यह राशि महारष्ट्र के नागपुर के एक बैंक में जमा है। इस राशि कोवाल्ट मशीन के लिए है। इधर भवन के चक्कर में यह राशि जस की तस पड़ी है। टर्सरी कैंसर केयर सेंटर ने 2014 में 45 करोड़ रुपये स्वीकृत किया था। यह राशि भी जस की तस पड़ी है।
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