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प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था प्राचीन मिथिलांचल

महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय मैथिली साहित्य संस्थान एवं फेसेस पटना के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को पुस्तक विमोचन एवं परिचर्चा आयोजित किया गया। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. रत्नेश्वर मिश्र ने कहा कि प्राचीन मिथिला औपचारिक रूप से स्थापित विश्वविद्यालय थी।

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 01:31 AM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 01:31 AM (IST)
प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था प्राचीन मिथिलांचल
प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था प्राचीन मिथिलांचल

दरभंगा । महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय, मैथिली साहित्य संस्थान एवं फेसेस पटना के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को पुस्तक विमोचन एवं परिचर्चा आयोजित किया गया। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. रत्नेश्वर मिश्र ने कहा कि प्राचीन मिथिला औपचारिक रूप से स्थापित विश्वविद्यालय थी। मिथिला की गुरु-शिष्य परंपरा अद्भुत थी जिसमें प्रत्येक विद्वान गुरु होते थे तथा एकल गुरु एवं शिष्य की परंपरा यहां स्थापित थी। संग्रहालयाध्यक्ष डा. शिव कुमार मिश्र लिखित एजुकेशन इन अन्सिएंट मिथिला नामक पुस्तक का आनलाइन विमोचित करते हुए कहा कि प्राचीन शिक्षा की जो परंपरा मिथिला में स्थापित थी वह बीसवीं सदी तक चलती रही। यहां की शिक्षा व्यवस्था में धर्म, कर्म एवं चरित्र निर्माण की प्रमुखता थी। यहां के गुरु विद्वान के साथ-साथ दरिद्र भी होते थे। यहां के लोग शास्त्रार्थ के माध्यम से विजय प्राप्त करते थे तथा तर्क एवं ज्ञान के बल पर सत्य तक पहुंचते थे।

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संग्रहालय बिहार के पूर्व निदेशक डा. उमेश चंद्र द्विवेदी ने कहा कि मिथिला में आदमी को आदमी बनाने शिक्षा दी जाती थी, तथा गुरु के पास जो भी होता था उसे शिष्य को प्रदान किया जाता था। कहा कि डा. शिव कुमार मिश्र के पुस्तक में जितने पुरास्थलों का उल्लेख किया गया है वह अपने आप में अद्भुत है। इसके द्वारा उन विद्वानों को अपने पूर्वाग्रहों को त्यागने पर मजबूर होना पड़ेगा जो अभी तक ये समझ कर चलते थे कि मिथिला के सारे पुरास्थल कोसी एवं कमला की तेज धारा में बह गए।

कार्यक्रम के आरंभ में मैथिली साहित्य संस्थान के सचिव भैरव लाल दास ने कहा कि मिथिला की शिक्षा का सीधा संबंध चरित्र निर्माण से था। नालंदा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय संगठित विश्वविद्यालय थी इसलिए इन्हें नष्ट करने में आसान हुई लेकिन मिथिला में इतनी संख्या में शिक्षण संस्थान थी जिन्हें नष्ट करना नामुमकिन था। इसीलिए ये संस्थान हजारों साल तक परंपरागत रूप से चलते रहे। कार्यक्रम का संचालन फेसेस पटना के सचिव सुनीता भारती ने किया। कार्यक्रम में डा. अवनींद्र कुमार झा, डा. पंकज कुमार झा, डा. जलज कुमार तिवारी, राम शरण अग्रवाल, डा. अशोक कुमार सिनहा, डा. सुशांत कुमार, चंद्र प्रकाश, राजीव राय, अरविद कुमार सिंह, डा. अनंताशुतोष द्विवेदी, प्रो. दीपामणि हालै मोहंती, फवाद गजाली, डा. रियाजुल मिड्डे, प्रभात कुमार चौधरी भी मौजूद थे।


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