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हर साल रसायनिक प्रदूषण से मरते हैं 90 लाख लोग : प्रो. ब्रजेश

दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के शिक्षा शास्त्र विभाग के तत्वावधान में चल रहे दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का रविवार को समापन हो गया। पर्यावरण के संरक्षण व संवर्धन में शिक्षा की भूमिका विषय पर चार तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 24 Feb 2020 12:53 AM (IST)Updated: Mon, 24 Feb 2020 06:14 AM (IST)
हर साल रसायनिक प्रदूषण से मरते हैं 90 लाख लोग : प्रो. ब्रजेश
हर साल रसायनिक प्रदूषण से मरते हैं 90 लाख लोग : प्रो. ब्रजेश

दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के शिक्षा शास्त्र विभाग के तत्वावधान में चल रहे दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का रविवार को समापन हो गया। पर्यावरण के संरक्षण व संवर्धन में शिक्षा की भूमिका विषय पर चार तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। ये सत्र संस्कृत विवि के दरबार हॉल, लनामिविवि के बॉटनी विभाग सभागार, गांधी सदन व एमबीए विभाग सभागार में हुए। तीसरे सत्र के दौरान ऑस्ट्रेलिया से स्काइप के माध्यम से वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी के हॉक्सबरी इंस्टिट्यूट फॉर द एनवायरमेंट के निदेशक प्रो. ब्रजेश कुमार सिंह ने प्रतिभागियों को लाइव संबोधित किया। मिथिला विश्वविद्यालय के इतिहास में यह अनोखा व अविस्मरणीय पल रहा। प्रो. सिंह ने वैश्विक जैव विविधता के ह्रास, रसायनिक प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य पर उसके नकारात्मक प्रभाव पर विस्तृत चर्चा की। कहा कि प्रतिवर्ष करीब एक मिलियन प्रजातियां विलुप्त हो रही है। उनके अनुसार जैव विविधता का ज्ञान मानव समाज को ईसा पूर्व से ही हो गया था। 50 से 60 फीसद जैव भार वातावरण परिवर्तन पर सीधा असर डालता है। कहा कि प्रतिवर्ष दो से तीन हजार नए रासायनिक पदार्थ बन रहे हैं। प्रख्यात मेडिकल जर्नल लेंसेट के हवाले से कहा कि 90 लाख लोग हर साल रसायनिक प्रदूषण से मरते हैं। वातावरणीय साक्षरता इस संदर्भ में बहुत आवश्यक है। स्कूली शिक्षा पर इस संदर्भ में पूरा ध्यान आकृष्ट करना चाहिए। चौथे सत्र में उमाकांत चौधरी मेमोरियल लेक्चर सीरीज का आयोजन हुआ। मलेशिया के इंटरनेशनल इस्लामिक यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के पूर्व प्रोफेसर व वर्तमान में आस्ट्रेलिया में कार्यरत आरिफ हसन ने ज्ञान क्षेत्र के कर्ता-चुनौती और अवसर के शीर्षक पर व्याख्यान देते हुए कहा कि आइबीएम के डाटा के अनुसार हर 10 से 12 घंटे में ज्ञान का भंडार वर्तमान समय में दोगुना हो जाता है। जबकि, 1900 ई. में यह ज्ञान का भंडार 24 से 25 साल में दोगुना होता था। जोर देते हुए कहा कि मेंटल बैटरी को प्रतिदिन रिचार्ज करने की आवश्यकता है। ज्ञान के क्षेत्र में दुनिया तेजी से बदल रही है। कौशल भी बदल रहा है। कुछ कौशल आज के दिनों में तेजी से अर्थहीन हो रहे हैं। लनामिवि के पूर्व हिदी विभागाध्यक्ष प्रो. प्रभाकर पाठक ने कालीदास व टीएस एलियट को उल्लेख करते हुए कहा कि दो विभिन्न देशों के इतने इतने दूर बैठे लोगों ने किस तरह एक ही विषय पर अपने-अपने अंदाज में कितनी अच्छी बात कही। उन्होंने ज्ञान व विज्ञान के साथ प्रज्ञान (आत्मा का ज्ञान, जिससे ईश्वर का उदय होता है) के विकास पर भी जोर दिया। पूर्णिया विश्वविद्यालय के शिक्षाशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. अजीजुल इस्लाम, विनोबा भावे विश्वविद्यालय के शिक्षाशास्त्र विभागा के प्रो. तनवीर युनूस, नालंदा विश्वविद्यालय के प्रबंधन संकायाध्यक्ष प्रो. सपना नरूला, एनसीटीई के पूर्व अध्यक्ष प्रो. मो. अख्तर सिद्दीकी ने भी अपनी बात रखी।

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