पूर्वजों के गांव बन्नी में 22 को आएंगे दक्षिण अफ्रिका से मेहमान
सैकड़ों वर्ष पूर्व 1892 ई. में अपने भारत भूमि से दक्षिण अफ्रिका की धरती पर रोजी-रोटी की तलाश में गए शिवचन्द ¨सह की दुनिया ही विदेशों की हो गई थी।
बक्सर । सैकड़ों वर्ष पूर्व 1892 ई. में अपने भारत भूमि से दक्षिण अफ्रिका की धरती पर रोजी-रोटी की तलाश में गए शिवचन्द ¨सह की दुनिया ही विदेशों की हो गई थी। बन्नी के रहने वाले इनके परिवार के सदस्य सेवानिवृत्त शिक्षक मोतीलाल ¨सह ने बताया कि अंग्रेजों के शासन काल में उस समय के दौर में गन्ने की खेती होती थी। लेकिन, वैज्ञानिक मशीनों का युग नहीं होने से लोगों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। अंग्रेजों द्वारा लगान की वसूली की जाती थी। तब बहुत से लोग गिरमिटिया मजदूर के रूप में अपने वतन से सात समंदर पार गए थे। 20 वर्ष की उम्र में गए शिवचन्द ¨सह 1932 में सिर्फ एक बार आए थे। यहां आने के बाद गांव के लोगों को शिक्षा देने के लिए गांव में ही स्कूल खोला था। लेकिन पुन: कुछ ही दिनों बाद चले जाने के बाद कुछ वर्षो बाद यह स्कूल बंद हो गया। इसके बाद वह भारत नहीं लौट पाए। अपनी जीवन गाथा अपने बेटे और बेटियों को बताया था। अपनी स्मृतियों को उन्होंने कागज के पन्नों पर लिखकर रख दिया था। जिसे पढ़कर इनके पुत्रों ने अपने गांव को याद कर यहां पत्र भेजा था। इस पत्र के बाद लगातार संपर्क बना रहा। संपर्क के बाद शिवचन्द ¨सह के पुत्र रामराज अपनी इच्छा जाहिर करते हुए वर्ष 2008 में पहली बार बन्नी गांव आए थे। गांव की चाहत और लोगों के प्यार ने इन्हें काफी प्रभावित किया। इन्होंने अपने पिता की याद में शिवचन्द मेमोरियल स्कूल खोलने की बात कही। जिसके बाद ग्रामीणों एवं घरवालों के सहयोग से स्कूल का निर्माण आरंभ किया गया। वर्ष 2014 में यह स्कूल बनकर तैयार हो गया था। जिसका उद्घाटन करने 22 फरवरी 2014 को करीब 60 की संख्या में विदेशी मेहमान आए थे। पुन: 22 फरवरी को कम्प्यूटर सेंटर और पुस्तकालय का उद़घाटन करने तथा स्कूल देखने के लिए लोग गांव पहुंच रहे हैं। उक्त आशय की जानकारी देते हुए शिवचन्द मेमोरियल स्कूल के प्रधानाध्यापक विजय ¨सह ने बताया कि इस बार भी दक्षिण अफ्रिका, ब्रिटेन से राजराम किसन, इनकी पत्नी वीना, केवला देवी, अनिता शिवप्रसाद, अर्चना नागसर, अनिता शिवप्रसाद सहित अन्य लोग शिरकत करेंगे।