भोग के नही पवित्र भाव के भूखे होते हैं भगवान- राजेन्द्रदास जी महाराज
नया बाजार में आयोजित सिय-पिय मिलन समारोह के दूसरे दिन शुक्रवार को कथावाचक मलूक पीठ
बक्सर। नया बाजार में आयोजित सिय-पिय मिलन समारोह के दूसरे दिन शुक्रवार को कथावाचक मलूक पीठाधीश्वर राजेंद्रदास जी महाराज ने श्रद्धालुओं को बताया कि भगवान भोग के नही बल्कि भाव के भूखे होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में भी कहा है कि जो व्यक्ति मुझे जिस भाव से भजता है मैं भी उसे उसी भाव में फल प्रदान करता हूं। अभिमान, धन-दौलत, बल, रूप, आशक्ति, शराब आदि का नशा मानव जीवन को तबाही की ओर लेकर जाता है।
वहीं, प्रभु की भक्ति का नशा सुख, समृद्धि और कल्याण समाज के उत्थान की ओर ले जाने वाला मार्ग है। जो व्यक्ति जिस पदार्थ या सदगुण- अवगुण आदि का नशा करता है, उसी के अनुसार उसकी मनोवृति तैयार होती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को प्रभु भक्ति का नशा करना चाहिए। प्रभु की भक्ति करनेवाले को ईश्वर सद्बुद्धि, आत्मबल और विवेक जैसे गुण प्रदान करता है। इस मौके पर उन्होंने भक्त प्रहलाद के चरित्र का वर्णन करते कहा कि भगवान ने स्वयं प्रहलाद के रूप में अवतार लिया था। जिसका हिरण्यकश्यप अपने तमाम प्रयासों के बावजूद बाल भी बांका नही कर सका। जबकि हिरण्यकश्यप भी अपने आप में कम सामर्थ्यवान नही था।
सुबह नवाह परायण पाठ से शुरू हुआ कार्यक्रम
प्रात: काल से ही श्रीराम चरित मानस के नवाह परायण पाठ के अलावा अखंड हरिनाम संकीर्तन, झांकी, व पदगायन के कार्यक्रमों का आयोजन होता रहा। वहीं अपराह्न 9 बजे से आयोजित रासलीला के दौरान श्रीकृष्ण के जन्म का सफल मंचन वृंदावन से आए कलाकारों ने कर सबको मोहित कर दिया। प्रस्तुत प्रसंग में एक तरफ मथुरा के राजा कंस को अपने सभासदों के साथ श्रीकृष्ण की हत्या के लिए विभिन्न प्रकार के सलाह लिए जा रहे हैं। तो दूसरी ओर गोकूल में सुबह श्रीकृष्ण के जन्म के बाद बधाइयां बज रही हैं। सारे गोकुलवासी नाच गा रहे हैं। तो गोपियां मस्ती में सोहर गाते हुए झूम रही हैं।
रामलीला में जय-विजय लीला का हुआ मंचन
रात्रि में आयोजित रामलीला के दौरान जय-विजय की लीला का कलाकारों ने मंचन किया। प्रस्तुत प्रसंग में दिखाया गया कि भागवत पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी के चार मानसपुत्र (ब्रह्मा जी के मस्तिष्क से उत्पन्न पुत्र) एक बार भगवान् विष्णु के दर्शन करने बैकुंठ लोक गए। कुमारों ने अतिवृद्ध होने के उपरान्त भी अपनी योग साधना के बल पर बालकों का रूप धारण कर लिया। जब कुमार बैकुंठ के द्वार पर पहुँचे, तब वहाँ के द्वारपालों, जय और विजय ने उन्हें बालक समझ यह कहकर अंदर प्रवेश करने से रोक दिया कि अभी भगवान् विष्णु विश्राम कर रहे हैं, अत: वे इस समय उनसे नहीं मिल सकते। उनकी इस बात से क्रोधित हो कुमार बोले कि भगवान् विष्णु तो अपने भक्तों के लिए सदैव उपलब्ध रहते हैं। इसी के साथ कुमारों ने जय-विजय को शाप दे दिया कि उन्हें अपनी दिव्यता का त्याग कर, मनुष्य रूप में धरती पर जन्म लेना होगा और सामान्य जीवों की भांति जीवन यापन करना होगा। उसी समय भगवान् विष्णु वहाँ प्रकट हुए, उन्हें देखकर जय-विजय ने उनसे शाप से मुक्त करने की प्रार्थना की। किन्तु एक बार दिया हुआ शाप वापस नहीं लिया जा सकता, अत: भगवान् विष्णु ने उनके समक्ष दो विकल्प रखे - पहला यह कि उन्हें भगवान् विष्णु के भक्तों के रूप में धरती पर सात जन्म लेने होंगे और दूसरा यह कि उन्हें भगवान् विष्णु के शत्रुओं के रूप में धरती पर तीन जन्म लेने होंगे। इनमें से किसी भी एक विकल्प को पूर्ण करने पर वो दोनों पुन: बैकुंठ लोक के द्वारपाल बन जाएंगे। जय और विजय ने दूसरा विकल्प चुना ताकि उन्हें सात जन्मों तक भगवान् विष्णु का वियोग न सहना पड़े। इसी कारणवश, जय और विजय अपने पहले जन्म में हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष के रूप में जन्मे और क्रमश: भगवान् विष्णु के नर¨सह और वराह अवतार द्वारा मारे गए। दूसरे जन्म में दोनों रावण और कुम्भकर्ण के रूप में जन्मे और राम अवतार के हाथों मारे गए। तीसरे जन्म में वो दोनों शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्मे और भगवान् विष्णु के ही कृष्ण अवतार के हाथों मारे गए और अंतत: उन्हें शाप से मुक्ति मिल गई। इस अवसर पर भगवान की लीला को देखने के लिए जहां दूर-दूर से हजारों की संख्या में आकर श्रद्धालु शामिल हो रहे हैं। वही आयोजन में देश विदेश से भी लोगों का आगमन शुरू हो गया है। कार्यक्रम स्थल पर एक विशाल मेला सा नजारा दिखाई दे रहा है। जहां हर प्रकार के इंतजाम देखने को मिल रहे हैं।
कल आएंगे मुरारी बापू
श्री सीताराम विवाह आश्रम के महंत सह कार्यक्रम के आयोजक महंत श्री राजारामशरण दास जी महाराज ने बताया कि कार्यक्रम के दौरान रविवार 19 नवम्बर को परम पूज्य मुरारी बापू का एक दिन के लिए आगमन होना तय हुआ है। कथा समाप्त होने के बाद वो प्रस्थान कर जाएंगे।