छात्रवृत्ति घोटाला : पुलिस के हाथ लगी बड़ी मछली
बक्सर : जिले में हुए करीब सवा दो करोड़ रुपये के छात्रवृत्ति घोटाले में जिला कल्याण पदाधिक
बक्सर : जिले में हुए करीब सवा दो करोड़ रुपये के छात्रवृत्ति घोटाले में जिला कल्याण पदाधिकारी के रूप में पुलिस के हाथ एक बड़ी मछली लगी है। इससे पहले फर्जी स्कूल का एक संचालक भी पुलिस के हत्थे चढ़ चुका है। हालांकि, पुलिस ने बगैर पूछताछ किए ही उसे कोर्ट में हाजिर कर जेल पहुंचा दिया। अब इस मामले में जब बड़ी मछली पुलिस के चंगुल में फंसी है तो यह देखने वाली बात होगी कि इसके साथ पुलिस का रोल क्या होता है। बहरहाल, पुलिस इसे बड़ी कामयाबी मान रही है।
इससे पहले पुलिस के हत्थे चढ़े फर्जी स्कूल के संचालक रवि प्रकाश को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने उन्हें अस्तपाल में भर्ती करा दिया था। गिरफ्तारी के बाद फर्जी संचालक ने हिन्दी फिल्मों की तर्ज पर अचानक तबीयत खराब होने की शिकायत दर्ज कराई थी। फिर क्या था, पुलिस ने उसे सदर अस्पताल में दाखिल कराया। वहां से उसे कोर्ट में हाजिर किया और फिर जेल भेज दिया। ऐसे में पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े हुए और लोगों के बीच यह चर्चा का विषय बना कि पुलिस ने फर्जी स्कूल संचालक से पूछताछ क्यों नहीं की। बहरहाल, जो भी हो, अब इस परिस्थिति में जब जिला कल्याण पदाधिकारी पुलिस की गिरफ्त में आ गए। बताया जाता है कि भारी दबाव के बीच जांच अधिकारी इस मामले में काम कर रहे हैं। अब, इस मामले में जिला कल्याण पदाधिकारी की गिरफ्तारी के बाद उनसे पूछताछ में मामले से और पर्दा उठने की संभावना जतायी जा रही है।
जागरण ने किया घोटाले का पर्दाफाश
वित्तीय वर्ष 14-15 व 15-16 में छात्रवृत्ति के नाम पर जिले में करीब सवा दो करोड़ रुपये का वारा-न्यारा हुआ। जिले में आठ फर्जी स्कूलों के नाम पर छात्रवृत्ति मद में यह घोटाला हुआ। जागरण ने जब सवा दो करोड़ रुपये के छात्रवृत्ति घोटाले की खबर प्रकाशित की तो जिलाधिकारी ने मामले में जांच टीम का गठन किया। जिलाधिकारी द्वारा गठित जांच टीम ने जो रिपोर्ट सौंपी उसमें कल्याण विभाग, शिक्षा विभाग और संबंधित बैंकों की भूमिका पर सवाल उठाए गए। जांच टीम ने पाया कि फर्जी एनजीओ द्वारा इन विद्यालयों का संचालन किया जा रहा था। इस मामले में उक्त फर्जी एनजीओ के 12 सदस्यों के अलावा आठों फर्जी स्कूलों के संचालकों तथा जिला कल्याण विभाग के तत्कालीन प्रधान लिपिक पर प्राथमिकी दर्ज कराई गई। जबकि, शिक्षा विभाग के डीपीओ, जिला कल्याण पदाधिकारी व बैंकों के प्रबंधकों से स्पष्टीकरण की मांग की गई। स्पष्टीकरण के बाद शिक्षा विभाग के डीपीओ का हस्ताक्षर की जांच के लिए उसका नमूना भेजा गया। जबकि, डीडब्ल्यूओ पर प्राथमिकी दर्ज कराई गई।