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दिनभर चलती रही सिय-पिय के विवाह की तैयारी, रात में बिखरी अलौकिक छटा

महर्षि विश्वामित्र की तपोस्थली में आयोजित सियपिय महोत्सव में रविवार को एक ओर भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह का उत्साह था तो दूसरी ओर नौ दिनों ने यहां ज्ञान की सरिता बहा रहे मोरारी बापू की विदाई का अफसोस भी लोगों के चेहरे पर झलक रहा था। बापू की कथा का आज अंतिम दिन था। इस दौरान बापू ने कहा कि मानस के तीन सूत्र हैं-सत्य प्रेम और करुणा। अर्थात सत्य के साथ चलो प्रेम के पीछे चलो और करुणा को अपने पीछे रखो।मानस अहल्याप्रसंग में बताया कि अहिल्या शिला नहीं पूरी शिलालेख थी। जिसे केवल राघव ने पढ़ा।

By JagranEdited By: Published: Sun, 01 Dec 2019 06:04 PM (IST)Updated: Mon, 02 Dec 2019 06:14 AM (IST)
दिनभर चलती रही सिय-पिय के विवाह की तैयारी, रात में बिखरी अलौकिक छटा
दिनभर चलती रही सिय-पिय के विवाह की तैयारी, रात में बिखरी अलौकिक छटा

बक्सर : महर्षि विश्वामित्र की तपोस्थली में आयोजित सिय-पिय महोत्सव में रविवार को एक ओर भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह का उत्साह था तो दूसरी ओर नौ दिनों से यहां ज्ञान की सरिता बहा रहे मोरारी बापू की विदाई का अफसोस भी लोगों के चेहरे पर झलक रहा था। बापू की कथा का आज अंतिम दिन था। इस दौरान बापू ने कहा कि मानस के तीन सूत्र हैं-सत्य, प्रेम और करुणा। अर्थात, सत्य के साथ चलो, प्रेम के पीछे चलो और करुणा को अपने पीछे रखो। मानस अहल्या प्रसंग में बताया कि अहिल्या शिला नहीं पूरी शिलालेख थी। जिसे केवल राघव ने पढ़ा।

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इन नौ दिनों में कथा सुनने को अन्य शहरों के अलावा दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों से भी श्रद्धालु भक्त पहुंचे हुए थे। बल्कि, कथा में अन्य सम्प्रदाय को मानने वाले भी शरीक हुए। संतों की वाणी में सम्प्रदाय अलग हो सकते हैं परन्तु, धर्म एक और धर्म का अर्थ है कर्तव्य, अहिसा, न्याय, सदाचरण, सद्गुण आदि। अर्थात, जो गुणों को प्रदर्शित करे वह धर्म है। बापू ने इन नौ दिनों में धर्म और स्वधर्म की व्याख्या की। अपनी कथा के माध्यम से आश्रमों के नौ महत्व की भी चर्चा की और कहा कि वास्तव में आश्रम कहलाने लायक वही जगह है जहां बताए गए ये सभी नौ गुण मौजूद हों। इसके 9वें क्रम में आकर्षण को बताया और कहा कि मामाजी का प्यार और इस आकर्षण के कारण बराबर वो सिद्धाश्रम (बक्सर) खींचे चले आते हैं। मानस अहल्या पर चर्चा करते हुए कहा कि रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने अहिल्या नाम एक बार लिया है। परन्तु, इसके बिना मानस भी पूरा नहीं हो सकता। यही सिद्धाश्रम की विशेषता है।

इधर, आज इस भीड़ में वे भी शामिल थे जो इससे पहले कथा स्थल पर कभी पहुंच नहीं सके थे। लेकिन, उनकी माने तो उनका यहां पहुंचने का अभिप्राय संत का दर्शन करना पहला कदम था। अंतिम दिन कथा श्रवण को उमड़ी सबसे ज्यादा भीड़

अंतिम दिन कथा सुनने वालों की सबसे ज्यादा भीड़ दिखी। कथा सुनने केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे भी पहुंचे। अंतिम दिन कथा सुनने पहुंचे राम मनोहर सिंह का कहना था कि नौकरी के कारण छुट्टी न मिलने की वजह से इतने अच्छे कार्यक्रम में वे पहुंच नहीं सके। राम सिंहासन पाठक बेटी की शादी में व्यस्त रहने के कारण इतने बड़े आयोजन से चूक गए। हालांकि, कथा श्रवण के भागीदार युवा से लेकर बुजुर्ग महिला-पुरुष सभी वर्ग के हुए। बापू अपनी कथा में हास्य-विनोद भी करने से नहीं चूके और कहा कि शनिवार शाम एक घंटे जेल में था। कैदियों को कथा सुनाने के बाद बेल मिला।


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