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अनोखी परंपरा : यहां काठ केदूल्हे से होती है पेड़ की शादी

बक्सर। ऐसी शादी के बारे में कभी सुना है जिसमें दूल्हा काठ का होता है और दुल्हन फलदार पेड़। ग्रामीण अपनी जमीन पर लगे पेड़ का पहला फल खाने से पहले पूरे रीति-रिवाज के साथ उसे दुल्हन मान कर उसकी काठ के दूल्हे के साथ पूरे विधि-विधान के साथ शादी कराई जाती है। इसके बाद पेड़ से टूटे पहले फल को प्रसाद के रूप में रिश्तेदारों और पड़ोसियों में बांटा जाता है। बक्सर के कोरानसराय गांव में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक अनोखी परंपरा का निर्वहन पीढ़ी दर पीढ़ी हो रही है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 May 2021 10:17 PM (IST)Updated: Sat, 22 May 2021 10:17 PM (IST)
अनोखी परंपरा : यहां काठ केदूल्हे से होती है पेड़ की शादी
अनोखी परंपरा : यहां काठ केदूल्हे से होती है पेड़ की शादी

बक्सर। ऐसी शादी के बारे में कभी सुना है, जिसमें दूल्हा काठ का होता है और दुल्हन फलदार पेड़। ग्रामीण अपनी जमीन पर लगे पेड़ का पहला फल खाने से पहले पूरे रीति-रिवाज के साथ उसे दुल्हन मान कर उसकी काठ के दूल्हे के साथ पूरे विधि-विधान के साथ शादी कराई जाती है। इसके बाद पेड़ से टूटे पहले फल को प्रसाद के रूप में रिश्तेदारों और पड़ोसियों में बांटा जाता है। बक्सर के कोरानसराय गांव में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक अनोखी परंपरा का निर्वहन पीढ़ी दर पीढ़ी हो रही है।

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इस बार गांव में तकरीबन एक दर्जन आम के पेड़ हैं, जिनमें पहली बार फल आए हैं और लगन के मौसम में उनकी शादी कराने की प्रक्रिया चल रही है। शुक्रवार को गांव में काठ का दूल्हा और आम के पेड़ की ऐसी ही एक शादी वैंदिक मंत्रोच्चारण के साथ कराई गई। इस दौरान महिलाओं के द्वारा मांगलिक गीत गाए गए। काठ के दुल्हा के शरीर में हल्दी का लेप लगाने के साथ ही द्वार पूजा एवं सिन्दूरदान की रस्म पूरी की गई। बगीचा मालिक छोटे तिवारी के परिजनों सहित साक्षी के रूप में यहां उपस्थित दर्जनों लोगो ने पर्यावरण संरक्षण के लिए और पौधे लगाने का संकल्प लिया।

--क्या है परंपरा :

कोरान सराय गांव निवासी छोटे तिवारी बताते हैं कि गांव में नए पेड़ की शादी काठ के दूल्हे से कराने की परंपरा पूर्वजों के जमाने से चली आ रही है। बाग-बगीचों में फलदार पेड़ों के लिए काठ का दूल्हा तैयार किया जाता है और शादी के बाद उसे पेड़ के पास ही रख दिया जाता है। बगीचे के सभी पेड़ों को एक डोर से बांध दिया जाता हैं। शादी में बाकायदा पंडित जी वैदिक मंत्रों का उच्चारण करते हैं, गांव के लोग बाराती बनकर काठ के दूल्हे को लेकर आते हैं। बारात की पूरी खातिरदारी की जाती है और सात फेरे की रस्म पेड़ के मालिक अपनी पत्नी के संग निभाते हैं। शादी से पहले द्वारचार आदि की रस्में निभाई जाती हैं। अंत में इस आयोजन में शामिल होने वाले सभी लोग एक और पेड़ लगाने का संकल्प लेते हैं।

क्या कहते हैं ग्रामीण

नए वृक्षों की शादी संपन्न कराने के बाद ग्रामीण युवा प्रकाश तिवारी, रमण तिवारी, सरोज तिवारी, पिटू तिवारी, मिकू तिवारी और उमेश भर ने बताया कि यह गांव की अनोखी परंपरा है। शादी में पूजा-अर्चना को देख नई पीढ़ी में वृक्ष के प्रति मोह-ममता बढ़ती है। --बोले पुरोहित

: इलाके के चर्चित वैदिक पं. धनंजय ओझा, दामोदरदत्त मिश्र प्रसून और पं. संजय ओझा ने बताया कि वेद-पुराण में बाग-बगीचों के पेड़ों की शादी के प्रमाण मिलते हैं। हाल के दिनों में इस परंपरा से लोग दूर होते चले गए, लेकिन इस गांव के लोगों ने आज भी आम, जामुन, अमरुद आदि फलदार पेड़ों की शादी करा इस परंपरा को जीवित रखा है।

--पर्यावरणविद् का पक्ष :

पर्यावरण संरक्षण के लिए ढाई लाख से ज्यादा नारे गढऩे वाले पर्यावरणविद् और सिद्धिपुर गांव निवासी श्रीनारायण तिवारी उर्फ कवि जी का कहना है कि पेड़ों की शादी कराने की परंपरा लोगों में स्वच्छ पर्यावरण के प्रति लगाव पैदा करती है। वस्तुत: इससे पेड़ परिवार में शामिल हो जाता है और उसकी देखभाल परिवार के सदस्यों की तरह होती है।


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