Move to Jagran APP

धान घोटाले में अब भी फंसे हैं सरकार के करीब 100 करोड़ रुपये

बक्सर। राज्­य खाद्य निगम (एसएफसी) में वर्ष 2011-12 से 2014 के बीच हुए धान घोटाले में निगम एवं एफसीआई की नकारात्­मक भूमिका की वजह से मिलरों के हौसले बुलंद होते गए। नतीजा हुआ कि जिले में 140 करोड़ रुपये का घोटाला हो गया। हैरत की बात यह है कि उक्त धान घोटाले में अभी भी सरकार के करीब 100 करोड़ रुपये फंसे हुए हैं और उसकी वसूली नहीं हो पा रही है। हालांकि सूचना के अधिकार से घोटाला उजागर होने के लगभग आठ साल बाद बुधवार को मामले के सूत्रधार राज्य खाद्य निगम बक्सर के तत्कालीन प्रबंधक सह वरीय उप समाहर्ता आरोक कुमार को सरकार ने जबरन रिटायरमेंट देकर सेवा से हटा दिया।

By JagranEdited By: Published: Thu, 02 Jul 2020 07:04 PM (IST)Updated: Fri, 03 Jul 2020 06:14 AM (IST)
धान घोटाले में अब भी फंसे हैं सरकार के करीब 100 करोड़ रुपये
धान घोटाले में अब भी फंसे हैं सरकार के करीब 100 करोड़ रुपये

बक्सर। राज्­य खाद्य निगम (एसएफसी) में वर्ष 2011-12 से 2014 के बीच हुए धान घोटाले में निगम एवं एफसीआई की नकारात्­मक भूमिका की वजह से मिलरों के हौसले बुलंद होते गए। नतीजा हुआ कि जिले में 140 करोड़ रुपये का घोटाला हो गया। हैरत की बात यह है कि उक्त धान घोटाले में अभी भी सरकार के करीब 100 करोड़ रुपये फंसे हुए हैं और उसकी वसूली नहीं हो पा रही है। हालांकि, सूचना के अधिकार से घोटाला उजागर होने के लगभग आठ साल बाद बुधवार को मामले के सूत्रधार राज्य खाद्य निगम बक्सर के तत्कालीन प्रबंधक सह वरीय उप समाहर्ता आरोक कुमार को सरकार ने जबरन रिटायरमेंट देकर सेवा से हटा दिया।

loksabha election banner

बताया जाता है कि उस समय विभाग के अधिकारी अगर थोड़ा सा भी कठोर रूख अख्तियार किए रहते तो जिले में इतना बड़ा धान के बदले चावल का घोटाला नहीं हो पाता। लेकिन, हर कदम पर सुविधा शुल्क देने की परंपरा ने सब कुछ चौपट कर दिया। मिलरों के गोदामों से चावल का उठाव कराने के लिए तत्­कालीन एडीएम सह नोडल पदाधिकारी चन्­देश्­वर चौधरी द्वारा एसएफसी से बार-बार किया गया पत्राचार एवं निर्देश भी काम नही आ पाया। जिले के वरीय अधिकारियों द्वारा एसएफसी को बार-बार दी गई हिदायतों के बावजूद निगम द्वारा उनके आदेशों एवं पत्राचार का उल्­लंघन किया गया। धान घोटाला की जांच के संदर्भ में अपर समाहर्ता विभागीय जांच ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सीएमआर चावल प्राप्­त करने में एफसीआई की नकारात्­मक भूमिका रही है। मिलिग एग्रीमेंट के बाद ही शुरू हो गया था काली कमाई का खेल

जानकार सूत्रों की माने तो मिलरों द्वारा मिलिग एग्रीमेंट कराने के बाद धान को चावल बनाने के लिए विभाग ने राइस मिलर्स को सौंपना शुरू किया, उसी समय से विभाग में काली कमाई का खेल शुरू हो गया। सबसे बड़ी बात कि धान देकर सीएमआर लेने के लिए जिन मिलरों को राज्य खाद्य निगम से टैग किया गया उनमें ऐसे मिलर भी थे जो अस्तित्व में ही नहीं थे। वे केवल कागज में ही संचालित हो रहे थे। या फिर ऐसे मिलर थे जिनकी क्षमता 100 क्विटल की थी लेकिन उन्हें 500 क्विटल की क्षमता दर्शाकर उन्हें टैग कर दिया गया। तत्कालीन जिलाधिकारी के निर्देश पर हुई थी कुछेक मिलों की जांच

तब बैठक में भी सभी मिल मालिकों को तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा निर्देश दिया गया था कि मिल के गोदाम में रखे सीएमआर चावल की गुणवत्­ता के आधार पर अलग-अलग कर राज्­य खाद्य निगम के बोरे में सही वजन के साथ मशीन से सिलाई कर लाट नम्­बर एवं स्­टीकर लगाकर भारतीय खाद्य निगम के गोदाम पर उपलब्­ध कराया जाए। जिलाधिकारी के निर्देश पर कुछ मिलों का जांच भी किया गया था। जिसमें पाया गया कि कई मिलों के चावल को गुणवत्­ता के आधार पर एफसीआई द्वारा छंटनी की गई है। गोदाम खाली नहीं रहने का एसएफसी प्रभारी ने दिया था हवाला

जांच में पाया गया कि चावल एवं उसके बोरा को चूहों द्वारा काफी नुकसान पहुंचाया गया है। जिससे चावल की गुणवत्­ता भी प्रभावित हुई है, तथा सड़ने की स्थिति में है। ज्ञातव्­य हो कि इन मिलरों को पूर्व से ही धान दिया गया है। जिसका आज तक चावल उठाव नहीं कराया जा सका। वहीं, पूरे मामले के सूत्रधार एसएफसी के प्रभारी जिला प्रबंधक आलोक कुमार द्वारा गोदामों में जगह एवं गोदाम खाली नहीं रहने का हवाला देते हुए मिलरों के गोदाम से चावल का उठाव नहीं कराने की जानकारी दी गई थी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.