फ्लाई ऐश ईंट से मिलेगी भवन को मजबूती, बजट में आएगी तीस फीसद कमी
बक्सर पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण को लेकर राज्य सरकार द्वारा संचालित सभी योजनाओं
बक्सर : पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण को लेकर राज्य सरकार द्वारा संचालित सभी योजनाओं में अब फ्लाई ऐश ईंट के प्रयोग किए जाएंगे। भवन निर्माण विभाग के द्वारा जुलाई 2018 में ही बकायदा पत्र जारी कर फ्लाई ऐश ईंट के शत प्रतिशत इस्तेमाल का निर्देश जारी किया गया है। भारत सरकार के पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा आपत्ति जताने पर भवन निर्माण विभाग ने चिमनी उत्पादित लाल ईंट के प्रयोग पर रोक लगा दिया गया है।
इससे जहां पर्यावरण संरक्षण में सहूलियत मिल रही है। वहीं, सालों भर एक ही जगह दर्जनों की संख्या में मजदूरों को रोजी-रोटी मिलेगी। वर्ष 1976 ई. ही से लाल ईंट के निर्माण कार्य में लगे शैलेन्द्र कुमार उर्फ विपुल चौबे ने बताया कि सरकार के निर्देश के तुरंत बाद दो साल पहले फ्लाई ऐश ईंट का निर्माण शुरू करा दिया गया हैं। फिलहाल सरकारी योजनाओं में इस ईंट की मांग है। जबकि आम पब्लिक में इसको लेकर जागरूकता लाने की आवश्यकता है।
तीस फीसद बजट में आएगी कमी
भवन निर्माण विभाग के इंजीनियरों की मानें तो फ्लाई ऐश ईंट के प्रयोग से लागत में कम से कम 30 प्रतिशत की बचत होती है। इसके निर्माण में किसी भी प्रकार का कोई प्रदूषण नहीं होता है। मजबूती के मामले में भी यह लाल ईंट के अपेक्षा तीन गुना अधिक सशक्त होता है। चिमनी के ईंट की अपेक्षा इस ईंट के प्रयोग से सरकार के खजाने पर योजनाओं को लागू करने में लागत कम आती है।
शत प्रतिशत करना है उपयोग
पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार के द्वारा पूर्व में दिए गए आदेश के आलोक में कहा गया है कि किसी भी सरकारी योजना के निर्माण कार्य में शत प्रतिशत फ्लाई ऐश ईंट का उपयोग करना है। लिहाजा भवन निर्माण विभाग ने निर्माण कार्य योजनाओं में शत प्रतिशत फ्लाई ऐश ईंट के उपयोग दृढ़ता से सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद तमाम नियम कानून को ताक पर रखकर 95 फीसद चिमनी भट्ठों पर लाल ईंट का निर्माण कार्य जोरो पर चल रहा हैं।
सालो भर चलता हैं निर्माण कार्य
लाल ईंट का व्यवसाय साल चिमनी मालिक के साथ ही मजदूरों के लिए भी साल में सिर्फ छह माह के लिए ही होता हैं। जबकि फ्लाई ऐश ईंट का निर्माण कार्य में एक कार्यस्थल पर 20 से 25 मजदूरों को सालों भर कार्य करने का अवसर मिलता हैं।
ईंट निर्माण में पर्यावरण संरक्षण का रखा गया ख्याल
फ्लाई ऐश ईंट के निमार्ण में पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण का पूरा पूरा ख्याल रखा गया हैं। फ्लाइएश ईंट निर्माण कार्य में लगे शैलेन्द्र चौबे ने बताया कि इसके लिए थर्मल पावर से कोयला के राख (फ्लाइ ऐश) को मंगाया जाता हैं। इन्होने बताया कि ऐसे निकृष्ट राख को इस कार्य में नही लगाया जाता हैं तो पर्यावरण के लिए और खतरनाक साबित हो सकता हैं।
फ्लाई ऐश ईंट निर्माण से होने वाले फायदे
पर्यावरण के साथ ही मिट्टी उत्खनन में राहत मिली हैं। यहीं नहीं इस ईंट के निर्माण से लगायत मकान बनाने तक में पानी कम लगता हैं। फ्लाई ऐश ईंट के प्रयोग से लागत में कम से कम 30 प्रतिशत की बचत होती है। इसके निर्माण में किसी भी प्रकार का कोई प्रदूषण नहीं होता है। मजबूती के मामले में भी यह लाल ईंट के अपेक्षा तीन गुना अधिक सशक्त होता है। चिमनी के लाल ईंट की अपेक्षा इस ईंट के प्रयोग से सरकार के खजाने पर योजनाओं को लागू करने में लागत कम आती है।
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सरकारी भवन निर्माण कार्यों में फ्लाई ऐश ईंट का प्रयोग करने का निर्देश है। थर्मल पावर से कोयला के राख (फ्लाइ ऐश) जैसे निकृष्ट पदार्थ को इस कार्य में नहीं लगाया जाता है तो पर्यावरण के लिए और खतरनाक साबित हो सकता हैं। फ्लाई ऐश ईंट का निर्माण सुरक्षा और मजबूती के लिहाज से भी बेहतर होगा।
राजेश कुमार, कार्यपालक अभियंता (भवन निर्माण विभाग, बक्सर)