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दिवाली और छठ महापर्व संपन्न, अब बक्सर पर्व की बारी

बक्सर महापर्व के बाद बक्सर पर्व का आगमन 05 दिसंबर से हो रहा है। पंचकोश महोत्सव के अंतिम

By JagranEdited By: Published: Sun, 22 Nov 2020 04:48 PM (IST)Updated: Sun, 22 Nov 2020 04:48 PM (IST)
दिवाली और छठ महापर्व संपन्न, अब बक्सर पर्व की बारी
दिवाली और छठ महापर्व संपन्न, अब बक्सर पर्व की बारी

बक्सर : महापर्व के बाद बक्सर पर्व का आगमन 05 दिसंबर से हो रहा है। पंचकोश महोत्सव के अंतिम दिन विश्व प्रसिद्ध लिट्टी-चोखा महोत्सव का आयोजन इस साल 09 दिसम्बर को होगा। यह परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है। इसी का निर्वहन करते हुए लोग अगले माह की पांच तारीख से पंचकोशी यात्रा के दौरान अहिरौली, नदांव, भभुवर, बड़का नुआंव तथा अंतिम पड़ाव के दिन नौ तारीख को चरित्रवन में लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण कर पूरा करेंगे।

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इस दौरान 10 को संतों की विदाई विश्रामकुंड से होगी। प्रशासन भी उक्त कार्यक्रम को देखते हुए सुरक्षा और आधारभूत संरचना की तैयारियों में लग गया है। हालांकि, यात्री श्रद्धालुओं को यह जान लेना आवश्यक होगा कि कोरोना संक्रमण को लेकर कल्पवास (रहने-ठहरने) की व्यवस्था इस बार नहीं रहेगी। इस बाबत पंचकोसी परिक्रमा समिति के सचिव डॉ. रामनाथ ओझा ने जागरण को रविवार को बताया कि विगत वर्षों में समिति द्वारा जो रहने खाने की व्यवस्था की परंपरा रही है, वो इस बार कोरोना संक्रमण को लेकर नहीं रहेगी। उन्होंने श्रद्धालुओं से आह्वान किया है कि वे खुद के वाहनों से इन धर्मस्थलों पर पहुंचकर दर्शन-पूजन करने के पश्चात उसी दिन लौट जाएं। वहीं, मेला में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं से कोरोना महामारी को देखते हुए प्रशासन की ओर से दी गई हिदायत मास्क व दो गज की दूरी का अनुपालन अवश्य रूप से करें।

गोलंबर से नदांव मेला तक की सड़क जर्जर

समिति के सचिव का कहना है कि जिस पथ से श्रद्धालु गमन करते हैं, उसमें गोलंबर से जासो रोड होते हुए नदांव मेला तक सड़क की हालत ठीक नहीं है। इस रास्ते का बुरा हाल बना हुआ है। समय रहते यदि जनप्रतिनिधि व प्रशासन ध्यान दे तो कम से कम इसकी मरम्मत कराकर यात्रा को सुगम बनाया जा सकता है।

क्या है पंचकोशी यात्रा का महत्व

पंचतत्व से बने हुए इस शरीर से मुक्ति की प्राप्ति हेतु लोग त्रेतायुग में भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित इस पंचकोशी परिक्रमा का अनुगमन करते हैं। इस बाबत मानस मर्मज्ञ सह समिति के सचिव डॉ. रामनाथ ओझा बताते हैं कि महाजनों येन गत: स पंथा अर्थात सनातन परंपरा में यह कहा गया है कि जिस मार्ग से प्रबुद्ध चले हों, उसी मार्ग पर चलना चाहिए। इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए पंचकोश मेला त्रेतायुग से आज तक चल रही है। इधर, बसांव पीठाधीश्वर के महंत अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने बताया कि ब्रज की 84 कोस परिक्रमा, अयोध्या की परिक्रमा आदि से बक्सर पंचकोशी परिक्रमा का महत्व जरा भी कम नहीं है। महाराज जी ने कहा कि ये सारी परिक्रमाएं ईश्वर की प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन हैं।

पंचकोश के बाद सीयपिय मिलन महोत्सव

अमूमन, पंचकोशी यात्रा के समापन बाद नया बाजार स्थित श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम की ओर से नौ दिवसीय कार्यक्रम सियपिय मिलन महोत्सव प्रारंभ हो जाता है। आश्रम ने पिछले वर्ष इस कार्यक्रम के तहत अपना स्वर्ण जयंती मनाया था। जिसमें रामलीला, रासलीला, विविध विद्वानों के श्री मुख से धर्मकथा तथा विशेष रुप से विश्व प्रसिद्ध संत मुरारी बापू के बक्सर में अहिल्या उद्धार कथा कार्यक्रम का श्रवण श्रद्धालुओं ने किया था। जिसमें हजारों-हजार की संख्या में संत समाज व श्रद्धालु शिरकत किए थे। हालांकि, इस बार कोरोना संक्रमण की वजह से होने वाले कार्यक्रम का प्रारूप अभी तय नहीं हो सका है। इस बाबत आश्रम के महंत श्री राजाराम शरण दास जी महाराज ने रविवार को बताया कि कोरोना संक्रमण को देखते हुए अभी अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका है। अगले चार-पांच दिनों में इसकी रूपरेखा तय कर ली जाएगी।


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