प्राकृतिक जल के प्रति सजगता से दूर होगा जल संकट
डुमरांव (बक्सर) : डुमरांव-बिक्रमगंज मुख्य मार्ग से सटे नोनिया डेरा गांव के समीप लबालब पानी से भरे त
डुमरांव (बक्सर) : डुमरांव-बिक्रमगंज मुख्य मार्ग से सटे नोनिया डेरा गांव के समीप लबालब पानी से भरे तीन एकड़ में तालाब और उसमें उछलते-कूदते मछली देखकर रास्ते से गुजरने वाले हर व्यक्ति का मन प्रफुल्लित हो उठता है। इसके देखने के बाद परंपरागत खेती को ¨जदगी का आधार बनाने वाले लोगों का नजरिया बदल जाता है। नगर स्थित दक्षिण मोहल्ला निवासी हरेन्द्र ¨सह नामक किसान ने दशकों पूर्व से बंजर पड़े तकरीबन तीन एकड़ जमीन में तालाब खुदवा कर कमाई का नया तरीका खोज निकाला है। तालाब के जरिए उन्होंने जल संरक्षण का जरिया ढूंढ़ निकाला और इसी में मछली पालन कर वे अच्छी कमाई भी कर रहे हैं। हरेन्द्र इलाके में किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बने हुए हैं।
उनसे प्रेरित हो कई किसान भी मछली पालन व्यवसाय का मूड बना रहे हैं। दरअसल, बलूई मिट्टी वाले इलाके में मछली पालन कर इन्होंने साबित कर दिया कि इससे अच्छी कमाई हो सकती है। आज उनकी आमदनी लाखों में हो गई है। तालाब खोदाई और मछली पालन पर 50 फीसद अनुदान
जल संरक्षण के लिए सरकार की तत्परता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तालाब खोदाई एवं मछली पालन में सरकार द्वारा किसानों को कुल लागत का पचास फीसद अनुदान राशि भी मुहैया करायी जाती है। मछली पालन के लिए एक बड़ा तालाब बनाने में लगभग 12 से 15 लाख रुपये का खर्च आता है। लेकिन, इस व्यवसाय में लाभ इतना ज्यादा होता है कि लोग इतना जोखिम ले लेते हैं। शुरुआती दौर में कुल लागत निकालकर प्रति एकड़ तकरीबन डेढ़ लाख रुपये की कमाई हो जाती है। इस साल से मछली के बीज उत्पादन भी हरेन्द्र खुद कर रहे हैं, इसलिए मुनाफा बढ़ने की संभावना है। बाजारों में रहती है मछली की डिमांड
पिछले साल मत्स्य पालन का कारोबार शुरू करनेवाले किसान हरेन्द्र ¨सह ने बताया कि लोकल बाजार में मछली की मांग खूब होती हैं। उन्होंने बताया कि मछली पालन के लिए कोलकाता के बैरकपुर में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उन्होंने तालाब में रोहू और कतला वेराइटी की मछली का पालन किया। उन्होंने बताया कि लोकल बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिल जाती है। व्यापारी तालाब के पास आकर ही 110 रुपये प्रति किलोग्राम के रेट पर मछली ले जाते हैं। प्रेरणा के स्त्रोत बने किसान हरेन्द्र किसान हरेन्द्र आज अपने इलाके में तमाम किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बने हुए हैं। कहते हैं, जिस बंजर जमीन से उन्हें कुछ हासिल नहीं होता था। उसमें तालाब बनवाने के बाद एक सीजन में डेढ़ लाख रुपये तक की आमदनी हुई। अब वे दोगुने उत्साह से इस काम को कर रहे हैं। मत्स्य विभाग भी अब इस क्षेत्र के ऐसे छोटे-छोटे जलाशयों की तलाश में जुट गई है जो मृतप्राय है। यहां का पानी और मौसम मछली पालन के लिए उपयुक्त माना जाता है। उनका कहना है कि नीली क्रांति और मुख्यमंत्री मत्स्य विकास योजना के तहत यहां पर उनके जैसे कई किसान पीआरसी, रोहू, कतला, नैनी जैसी प्रजातियों की मछली का पालन कर रहे हैं। बयान हरेन्द्र ¨सह जैसे लोग ही बदलाव के आयकॉन होते हैं। सरकार भी अनुसूचित जाति के लोगों के लिए मत्स्य पालन एवं तालाब खोदाई पर नब्बे फीसदी और अन्य वर्गों के लिए पचास फीसदी सब्सिडी दे रही है। जिले में मछली पालन के प्रति किसान काफी रुचि ले रहे हैं। नागेन्द्र कुमार, जिला मत्स्य पदाधिकारी, बक्सर।