चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखिया..
जानकी बेटी हे.. लीजिये खबरिया हमारी सियावर लीजिये खबरिया हमारी. जिया बैसि रहू सिया के डगरिया मिथिला नगरिया ना. आदि को सुनकर और विवाह मंचन के इस अलौकिक ²श्य को देखकर संत समाज व श्रद्धालु अपने को धन्य व कृतार्थ महसूस करते हैं। इस दौरान प्रभु श्रीराम और माता जानकी की जोड़ी ऐसे सुशोभित हो रही थी मानो सुंदरता और श्रृंगार रस एकत्र हो गए हों।
बक्सर : अगहन मास की शुक्ल पंचमी दिन रविवार और समय रात्रि 8 बजे। सभी की कौतूहल भरी निगाहें उस दृश्यमान को टटोल रही थी, जिसे साकेतवासी श्री नारायणदास भक्तमाली उपाख्य पूज्य मामाजी ने वर्षों पहले संजो रखी थीं। मौजूदा स्थल पर जैसे उनके मुख के फूटे बोल 'आजु मिथिला नगरीया निहाल सखिया, चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखिया., चहुंओर गुंजायमान हो रही हो। इस विवाह महोत्सव में देश के कोने-कोने से अनेक साधु संत पधारे हुए थे।
विवाह स्थल पूरी तरह श्रद्धालुओं से खचाखच भरा हुआ था। दरअसल, बक्सरधाम में जो जनकपुर का दृश्यमान होना था। जिसके दर्शन पाने की अभिलाषा लिए ठंड के मौसम में भी लोग पूरी रात तन्मयता से इस अलौकिक नजारा को देखने हेतु बैठे रहे। इसके साक्षी, मलूक पीठाधीश्वर राजेन्द्र दास जी महाराज, आइजी परेश सक्सेना समेत परम पूज्य मामाजी महाराज के कई शिष्य तो बने ही, वहीं जिलाधिकारी राघवेन्द्र सिंह व आरक्षी अधीक्षक उपेंद्र नाथ वर्मा भी विवाह स्थल पर देर रात तक जमे रहे।
गाजे-बाजे के साथ बरात का हुआ जनकपुर में प्रवेश
विवाह मंचन के दौरान गुरु वशिष्ठ व राजा दशरथ हाथी की सवारी कर तथा दशरथ के चारों पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न घोड़े की सवारी कर जनकपुर में प्रवेश करते हैं। वहीं, बरात में शामिल श्रद्धालुजन गाजे-बाजे की धुन पर थिरकते नजर आते हैं। महाराज जनक के दरवाजे पर द्वार-पूजा की रस्म-अदायगी की जाती है और पुन: चारों भाई जनवासे में लौट जाते हैं। आगे दिखाया गया कि फिर से पालकी पर सवार होकर राजा जनक के द्वार पर चारों सुकुमार दूल्हे पहुंचते हैं। जहां, सिया जी की सखियां भगवान की आरती उतारती हैं और लोढ़ा लेकर परिछन की विधि सम्पन्न कराती हैं। इसके बाद पुन: चारों दूल्हा सरकार मंडप में आते हैं और धानकूटन की विधि की जाती है। इस दौरान सखियां दूल्हों से खूब ठिठोली करती हैं। सखियों के मजाक में फंस गए चुलबुलवा दूल्हा
कन्या परीक्षण की विधि शुरू होती है। मौजूद सखियां चारों भाइयों के हाथों में आम का पल्लव देती हैं और अपनी दुल्हन के ऊपर डाल कर उन्हें पहचानने को कहती हैं। जिसमें तीन भाई तो अपनी दुल्हन को पहचान लेते हैं। परंतु, लक्ष्मण जी के साथ सखियां मजाक कर देती हैं और दुल्हन की जगह पुरुष को बैठा देती हैं। क्योंकि, लक्ष्मण सबसे ज्यादा चुलबुले दूल्हा हैं और अपने को सबसे चतुर दूल्हा मानते है। इधर, दुल्हन के रूप में मौजूद पुरुष जैसे ही सामने आता है वह लक्ष्मण से अनुरोध कर साथ में अयोध्या ले चलने की जिद करने लगता है। इस ठिठोली को देख दर्शक खूब ठहाके लगाते हैं। हालांकि, बाद में लक्ष्मण को उनकी असली दुल्हन का दर्शन करा दिया जाता है।
विधि-विधान से पूरी हुई कन्यादान की रस्म
इसके बाद शुरू होती है विवाह की रस्म। जिसमें चारों कन्याओं सीता, उर्मिला, मांडवी एवं श्रुतिकीर्ति का महाराज जनक जी व उनकी पत्नी द्वारा कन्यादान की रस्म पूरी कराई जाती है। कन्यादान के साथ ही लावा मिलाई की रस्म करवाई जाती है। जिसमें आश्रम के महंत राजाराम शरण दास जी महाराज की देख-रेख में मामा जी के एक शिष्य द्वारा इस रस्म को पूरा करवाया जाता है। तब श्रद्धालुओं के जेहन में मामा जी कृत 'बाबा की दुलारी बेटी जानकी बेटी हे.., लीजिये खबरिया हमारी सियावर लीजिये खबरिया हमारी., जिया बैसि रहू सिया के डगरिया, मिथिला नगरिया ना. आदि को सुनकर और विवाह मंचन के इस अलौकिक दृश्य को देखकर संत समाज व श्रद्धालु अपने को धन्य व कृतार्थ महसूस करते हैं। इस दौरान प्रभु श्रीराम और माता जानकी की जोड़ी ऐसे सुशोभित हो रही थी, मानो सुंदरता और श्रृंगार रस एकत्र हो गए हों।