बुद्धि और विवेक से लें कोई निर्णय: जीयर स्वामी
भोजपुर। मानव जीवन पर अन्न और संग का गहरा प्रभाव होता है। हम जैसा अन्न ग्रहण करते हैं, वैस
भोजपुर। मानव जीवन पर अन्न और संग का गहरा प्रभाव होता है। हम जैसा अन्न ग्रहण करते हैं, वैसा मन बनता है। जैसी संगति करते हैं, वैसा आचरण होता है। दुष्टों का अन्न और संग दोनों विनाशकारी होता है। यह विचार चर्चित संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने स्थानीय चंदवा मुहल्ले में जारी चतुर्मास ज्ञान यज्ञ में जुटे श्रद्धालुओं के समक्ष अपने प्रवचन में व्यक्त किया। भागवत कथा को अग्र गति देते हुए उन्होंने कहा कि अधर्म, अनीति और अन्याय के सहारे कुछ समय के लिए समाज में वर्चस्व कायम किया जा सकता है, लेकिन यह स्थाई नहीं हो सकता। नीति, न्याय और सत्य ही स्थायित्व देता है। स्वामी जी ने कहा कि भीष्म पितामह 58 दिनों से वाण शय्या पर लेटे थे। उन्हें याद कर कृष्ण की आंखों में आंसू आ गएं। युधिष्ठिर ने आंसू का कारण पूछा तो कृष्ण ने कहा कि कुरू वंश का सूर्य अस्ताचलगामी है। उनका दर्शन किया जाए। द्रौपदी समेत पांचों पांडव वहां पहुंचे। श्री कृष्ण के आग्रह पर भीष्म ने राजधर्म और राजनीति का उपदेश दिया। द्रौपदी मुस्कुरा दी। भीष्म ने मुस्कराने का राज पूछा। द्रौपदी ने कहा कि आज आप उपदेश दे रहे हैं कि अन्याय नहीं करना चाहिए। चिरहरण के वक्त आप की यह नीति और धर्म कहां था। भीष्म ने कहा कि उस वक्त मुझ पर अन्न और संग के दोष का प्रभाव था। गलत लोगों का अन्न और संग ग्रहण नहीं करना चाहिए। पांडवों से कहा कि धीर और वीर पुरुष को भाग्यवादी नहीं कर्मवादी होना चाहिए। कर्म ही भाग्य बनाता है।