शहरनामा -आस्था, विश्वास और भाईचारा आरा शहर की पूंजी
आरा: यहां कई तालाब-पोखर थे जिसमें स्वच्छ जल सदा भरा रहता था और उसी के कारण भू जल स्तर
आरा: यहां कई तालाब-पोखर थे जिसमें स्वच्छ जल सदा भरा रहता था और उसी के कारण भू जल स्तर कभी कम नहीं होता था। इतना ही नहीं लगभग सभी घरों में कुआं भी होता था जो जल स्तर को बनाए रखता था। अब लगभग सभी तालाब एवं कुआं प्यास से बेहाल है। कई तालाब अतिक्रमण की चपेट में आ गया और कुओं को भर दिया गया। इस वर्ष वर्षा होने के कारण उनकी प्यास बुझी होगी किन्तु कितनी तृप्ति हुई होगी कहना मुश्किल है। शहर में एक पार्क है जिसे लाल पार्क कहा जाता था अब इसे कुंवर सिंह पार्क के नाम से जाना जाता है। इसमें न ही एक भी फूल के पौधे हैं न ही कोई आकर्षक पौधा। एक कोने में बच्चों के लिए झूला अवश्य है। बच्चों के खेलने और लोगों के घूमने के बेचारा एक रमना मैदान ही बच गया है किन्तु इस पर भी अतिक्रमणकारियों की बुरी नजर पड़ ही गई है। दूसरा खेलने और टहलने का बचा हुआ स्थान महाराजा कालेज का खेल मैदान ही है।
मंदिरों की संख्या भी कम नहीं है। सभी देवी-देवताओं के मन्दिर है। प्राचीन मंदिरों में मां आरण्य देवी, सिद्धनाथ, बुढ़वा महादेव, पातालेश्वर, हनुमान मंदिर आदि हैं। मस्जिद भी है-बड़ी मस्जिद, धर्मन मस्जिद, तालाब पर की मस्जिद आदि कई मस्जिद हैं। सिख धर्म के अनुयाइयों के लिए गुरुद्वारा और ईसाई धर्मावलंबियों का कैथोलिक और प्रोटेस्टेन्ट चर्च भी है। यहां जैन धर्म के मानने वालों की संख्या भी अधिक है और उनके मंदिरों की भी। वस्तुत: आरा शहर जैनियों का तीर्थ स्थल है। तीर्थयात्रियों के लिए धर्मशालाएं भी हैं। यहां कायस्थों का एक प्राचीन चित्रगुप्त मन्दिर भी है जो पुराने शाहाबाद जिले का एक मात्र चित्रगुप्त मन्दिर है। यहां छोटे-बड़े कई पुस्तकालय-वाचनालय भी है जिसमें ओरियन्टल लाइब्रेरी बहुत पुरानी है जहां कई भाषाओं में पांडुलिपियां, ताड़पत्र पर लिखी पुस्तकें तथा अन्य महत्वपूर्ण पुस्तके हैं। यहां शोधार्थियों का आवागमन बना रहता है क्योंकि यह पुस्तकालय कई विश्वविद्यालय से जुड़ हुआ है। नगर निगम का भी एक पुस्तकालय है तथा बाल हिन्दी पुस्तकालय है जहां से स्वतंत्रता संग्राम का संचालन भी हुआ करता था। एक बिहार सरकार का पुस्तकालय है जो नागरी प्रचारिणी भवन में स्थापित है। इनके अतिरिक्त माध्यमिक स्कूलों में भी पुस्तकालय है। कई छापाखाने (प्रीटिंग प्रेस) हैं जहां से यदा-कदा पुस्तके प्रकाशित हो जाया करती है। शेष दिनों में छपाई के अन्य कार्य होते रहते हैं। यहां पढ़ने-पढ़ाने का सिलसिला भी अच्छा है। भले विद्यालयों और महाविद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या कम दिखाई दे किन्तु कोचिंग संस्थान इतने हैं जहां विद्यार्थियों की संख्या अत्यधिक देखने को मिलती है।
इस शहर में मंदिरों की घंटी, मस्जिदों से अजान, गुरुद्वारे से शब्द कीर्तन, ईसा की प्रार्थना और णमो मंत्रों की गूंज यहां के वातावरण में प्रति ध्वनित रहती है। प्रत्येक मन्दिर के निकट फूलों की और मिठाइयों की दुकानें मिलेगी। इसके अतिरिक्त भी अच्छी-अच्छी मिठाई दुकानें हैं जहां संभवत: कलकत्ता के बाद सुस्वादु मिठाई यहीं मिलेगी। यहां का खुरमा और मनरसा बड़ा मशहूर है।
इस शहर का गुण धर्म या कहलें पूंजी आस्था, विश्वास और आपसी भाईचारा है जो जीवंतता प्रदान करता है। शहर को गतिमान रहता है।
प्रस्तुति: रणजीत बहादुर माथुर
आरा