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दस रुपये में एक बीड़ा पान और दस रुपये में ही एक किलो धान, यह कैसा है सरकार का विधान

दस रुपये में एक बीड़ा पान और दस रुपये में ही एक किलो धान। यह सरकार का कैसा विधान.. पूछ रहे हैं बेचारे किसान।

By JagranEdited By: Published: Sun, 10 Jan 2021 11:01 PM (IST)Updated: Sun, 10 Jan 2021 11:01 PM (IST)
दस रुपये में एक बीड़ा पान और दस 
रुपये में ही  एक किलो धान, यह कैसा है सरकार का विधान
दस रुपये में एक बीड़ा पान और दस रुपये में ही एक किलो धान, यह कैसा है सरकार का विधान

आरा। दस रुपये में एक बीड़ा पान और दस रुपये में ही एक किलो धान। यह सरकार का कैसा विधान.. पूछ रहे हैं बेचारे किसान। जी हां किसानों का यह सवाल आज लाजिमी है। दरअसल किसानों को अपनी गाढ़ी मेहनत से उगाई गई धान की फसल कौड़ी के मोल बेचने को मजबूर होना पड़ रहा। इससे भी क्रूर विडंबना यह है कि इस कीमत पर भी धान के खरीदार ढूंढे नहीं मिल रहे हैं।

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पैक्स अध्यक्ष कर रहे मनमानी

सरकार ने धान की न्यूनतम समर्थन मूल्य 1868-1880 रुपये तय कर पैक्स सहित अन्य सहकारी संस्थाओं को किसानों से धान अधिप्राप्ति की जिम्मेवारी सौंपी है, पर ज्यादातर पैक्स अध्यक्ष इस मामले में मनमानी कर रहे हैं। धान अधिप्राप्ति के लिए नियमानुसार पंजीयन के बावजूद किसानों के धान की खरीद नहीं हो रही है। कहीं पैसे की कमी तो कहीं दूसरे कारण बताकर किसानों को टरकाने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि किसान कम दाम पर धान बेचने को मजबूर हो जाएं। कुछ पैक्स अध्यक्ष तो किसानों से मोटे कमीशन की डिमांड कर रहे हैं। यहां धान अधिप्राप्ति में कमीशनखोरी के गोरखधंधे में प्रखंड सहकारिता पदाधिकारी भी शरीक हैं। ऐसे में किसानों की शिकायतों की अनसुनी कर रहे हैं।

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धान अधिप्राप्ति में बरती जा रही सुस्ती

पैक्स के अलावा दूसरे कई सहकारी संस्थाओ को धान अधिप्राप्ति की जिम्मेवारी दी गई है, पर ये संस्थाएं किसानों से धान की अधिप्राप्ति में खास रुचि नहीं दिखा रही हैं। इन संस्थाओ द्वारा संसाधनों व पैसों की कमी बताकर धान अधिप्राप्ति में आनाकानी की जा रही है।

एक क्विटल धान के लिए मिलता है मात्र एक बोरा :

सहकारिता पदाधिकारी की माने तो एक क्विटल धान के लिए एक बोरा का प्रावधान किया गया, जबकि एक बोरा में महज 40-50 किलोग्राम धान आ सकता है। इसी तरह की दूसरी समस्याएं गिनाकर धान अधिप्राप्ति में सुस्ती बरती जा रही है। ऐसे में मजबूर किसान बिचौलिए के हाथों औने-पौने दामों में अपनी फसल बेच रहे हैं ।

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बिचौलियों की कट रही चांदी

सहकारी संस्थाओं द्वारा जानबूझकर किसानों से धान अधिप्राप्ति में बरती जा रही सुस्ती से बिचौलियों की चांदी कट रही है। मजबूर किसान अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बिचौलिए के हाथों कौड़ी के मोल फसल बेच रहे हैं। ये बिचौलिए किसानों से खरीदे गए धान जुगाड़ पैरवी के बूते गैर रैयत किसानों के नाम फर्जी पंजीयन कराकर सहकारी संस्थाओं को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेच रहे हैं। ऐसे कुछ बिचौलियों की प्रखंड सहकारिता पदाधिकारी से मिलीभगत है, जिससे ये इस गोरखधंधे को आसानी से अंजाम दे रहे हैं।

---- कहतें हैं किसान

हंकार टोला गांव के किसान हरिमोहन सिंह कहते हैं कि धान अधिप्राप्ति को लेकर सरकार और विभागीय अधिकारियों की मंशा ठीक नहीं है। एक तो सरकार के पास संसाधन नहीं है दूसरे विभागीय अधिकारी कमीशन के चक्कर में किसानों के बजाय बिचौलिए का धान खरीद कराने में ज्यादा रूचि ले रहे हैं। देवचंदा निवासी किसान भीमराज राय के अनुसार किसानों का चौतरफा शोषण हो रहा है। व्यवस्था की खामियों की वजह से किसान मजबूरी में अपनी गाढ़ी मेहनत से उगाई गई फसल कौड़ी के मोल बेचने को मजबूर हो रहे हैं।


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