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अच्छे गीतों व भजनों का समाज पर पड़ता है अच्छा प्रभाव : अनूप जलोटा

पांच महाद्वीपों के 100 से ज्यादा शहरों में चार हजार से भी अधिक लाइव कंस्टर्स पेश ।

By JagranEdited By: Published: Fri, 06 Oct 2017 08:03 PM (IST)Updated: Fri, 06 Oct 2017 08:03 PM (IST)
अच्छे गीतों व भजनों का समाज पर पड़ता है अच्छा प्रभाव : अनूप जलोटा
अच्छे गीतों व भजनों का समाज पर पड़ता है अच्छा प्रभाव : अनूप जलोटा

भोजपुर। पांच महाद्वीपों के 100 से ज्यादा शहरों में चार हजार से भी अधिक लाइव कंस्टर्स पेश कर चुके अपनी गायकी के माध्यम से लोगों के दिलो-दिमाग पर राज करने वाले भजन सम्राट अनूप जलोटा कभी सीए बनना चाहते थे, लेकिन संगीत में ऐसा मन लगा कि सीए की पढ़ाई का विचार छोड़कर गायकी की दुनिया में बढ़ते चले गये। अब तक दो हजार भजन, एक हजार कविताओं और पांच सौ गजल को अपनी आवाज देने वाले अनूप जलोटा का मानना है कि अच्छे गीतों व भजनों का समाज पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। 15 साल बाद अनूप जलोटा दूसरी बार आरा आयें। इस बार स्थानीय चंदवा में आयोजित अखिल अंतरराष्ट्रीय धर्म सम्मेलन के अवसर पर आयोजित भव्य भजन संध्या के कार्यक्रम में शिरकत किये। आरा आगमन पर संवाददाता शमशाद'प्रेम'ने अनूप जलोटा से लंबी बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत का संक्षिप्त अंश।

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प्र.- आप गायक बनना चाहते थे या कुछ और?उ.- हमारा पारिवारिक माहौल सांगीतिक था। महज सात साल का था तो ठुमक चलत रामचन्द्र बाजत पैजनिया.. और एै मेरे वतन के लोगों..गीत स्कूल में खूब गाता था। पिता जी पुरूषोत्तम दास जलोटा से प्रारंभिक संगीत की तालीम हासिल की। पिता जी कहा करते थे कि पढ़-लिखकर कुछ और बना जा सकता है। सीए बनने की इच्छा थी। इसके लिए कॉमर्स पढ़ा। वहीं लखनउ में संगीत की तालीम भी ली। संगीत में मन ऐसा लगा कि सीए बनने की सोच समाप्त हो गई। फिर संगीत की गहराई में डूबते चला गया।

प्र.- भजन व गजल गाते-गाते कविताओं को गाने का शौक कैसे हुआ?उ.- जब फिल्मों में गाने का ऑफर मिला तो कविताओं को गाने की इच्छा हुई। तब नीरज, महादेवी वर्मा, निराला, कबीर, तुलसी, नानक, रैदास आदि को खूब पढ़ा। इसके बाद कविताओं को गाया।

प्र.- भजन, गजल व कविताओं को गाते हुए फिल्म में अभिनय का ख्याल कैसे आया?उ.- फिल्म में अभिनय के बारे में कभी सोचा नहीं था। लेकिन दोस्तों ने सलाह दी तो फिल्मों में अभिनय किया। इसमें हिन्दी के अलावे बंगला, गुजराती व मराठी फिल्में हैं। प्यार का सावन, चितामणि सूरदास समेत अन्य फिल्मों में काम किया। लेकिन इसमें मन नहीं लगा।

प्र.- संगीत का समाज पर कितना असर पड़ता है?

उ.- संगीत का समाज पर बहुत असर पड़ता है। भजन भक्त कवियों द्वारा लिखा जाता है। उनका जीवन सुन्दर रहा है। वे समाज सुधारक भी रहे हैं। उनकी रचनाओं का समाज पर व्यापक असर पड़ता है। जिस घर में अंधकार हो वहां मेहमान कहां से आये/जिस मन में अभिमान हो वहां भगवान कहां से आये। इस तरह की तमाम रचनाएं लोगों के हृदय तक पहुंचती हैं और उसका व्यापक असर पड़ता है।

प्र.- संगीत के क्षेत्र में नई पीढ़ी में क्या कमी महसूस करते हैं?उ.- नई पीढ़ी संगीत शिक्षा में ध्यान नहीं दे रही है। रागों की जानकारी नहीं है। संगीत की गहराई को नहीं समझ रही है। यही कारण है कि नई पीढ़ी संगीत की दुनिया में ऊंचाई तक नहीं पहुंच पा रही है। नये कलाकार संगीत शास्त्र की ओर ध्यान दें। खूब मेहनत करें। सफलता अवश्य मिलेगी।

प्र.- कुछ ऐसा कार्य है क्या जिसे आपने अभी तक नहीं किया और भविष्य में करना चाहते हैं?

उ.- जीवन में बहुत कुछ किया। गजल, भजन व कविताओं को गाते हुए रामचरित मानस और भागवद् गीता को गाया। अब वेदों को स्वरबद्ध करना चाहता हूं। उसमें लगा हूं। ईश्वर ने चाहा तो यह इच्छा भी पूरी हो जाएगी।

प्र.- एक अच्छे गायक बनने के लिए क्या गुण होना चाहिए?

उ.- अच्छा गायक बनने के लिए संगीत के प्रति पूर्णत: समर्पण होना चाहिए। गायन में निपुणता और स्वरों की शुद्धता हो। गजल, भजन अथवा जो कुछ भी गा रहा हो उसकी शुद्धता हो।


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