सर बहन की शादी है पैसा निकलवा दीजिए ..
नोटबंदी के बाद बैकों में अपना पैसा निकालने के दौरान किस तरह मानवीय संवेदनाएं दरक रही है, इसका नजारा दिखा सोमवार को एसबीआइ बिहिया में।
भोजपुर : नोटबंदी के बाद बैकों में अपना पैसा निकालने के दौरान किस तरह मानवीय संवेदनाएं दरक रही है, इसका नजारा दिखा सोमवार को एसबीआइ बिहिया में। रविवार की बंदी के बाद सोमवार को बैंक खुलने से पहले ही लोगो की भीड़ जमा हो गई थी। बैंक खुलते ही काउंटर की ओर लोग भागते हुए पहुंचे। प्रबंधक अपने कक्ष में बैठे लोगों की समस्या सुलझाने लगे। इसी बीच दो लोग कक्ष में पहुंचे। कहा कि सर बहन की शादी है, पैसा निकलवा दीजिए। प्रबंधक सर्कुलर समझाते हुए कहते हैं कि जिस दुकान से जो समान लेना है उसका भाऊचर लाइए तथा उससे लिखवा कर लाइए कि वे पेमेंट कैश में ही लेगा और भी कई शर्ते थी जिसे पूरा करना बुते के बाहर था। दोनों लोग जड़वत खड़े थे। आग्रह किया कुछ कीजिए सर। प्रबंधक ने कहा चेक से 25- 25 हजार निकालिए। इसी बीच एक और व्यक्ति आया। सर मेरे बहन की कल सगाई है, आपके कहने के बावजूद काउंटर पर मुझे पैसा नहीं मिला। यह कहते हुए वह रो पड़ता है। कहता है कि मैं फौजी हूं। मैं कब से खड़ा हूं। मुझे काउंटर पर कोई महत्व नहीं दिया गया। प्रबंधक कहते हैं मैं आपकी कीमत समझता हूँ आप आराम से बैठें, मैं पैसा दिलाऊंगा। एक और आदमी प्रबंधक कक्ष में प्रवेश कर कहता है, सर लाइन तोड़ कर कुछ लोग काउंटर पर भीड़ कर रहे। प्रबंधक का कहना था कि इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता। जब खुद को समझ नहीं है तो। एक आदमी पहुंच कर कहता है, मेरा पैसा निकलने वाला भाऊचर इसलिए लौटा दिया गया कि बैंक में दो हजार से कम का नोट नहीं है। उसे 15 हजार निकालना था। प्रबंधक ने खुद पहल कर 16 हजार का दूसरा स्लिप भरवाया तब उसका पैसा निकल सका। यह कहानी लगभग सभी बैंक में रोज के लिए आम बात बन कर रह गई है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि नोटबंदी के बाद लोगों की परेशानी बद से बदतर स्थिति में किस कदर पहुंच गई है। इसमें बैंककर्मी से लेकर आम लोग परेशान हो रहे हैं।