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केले के रेशे और जूट के फाइबर से पूर्णिया की महिलाएं तैयार करेंगी वस्त्र, 60 दिनों का मिलेगा प्रशिक्षण

केले और जूट के रेशे से महिलाएं वस्त्र तैयार करेंगी। इसके लिए उन्हें 60 दिनों का विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रशिक्षण देने के लिए गुजरात व एमपी के विशेषज्ञ आएंगे। ये लोग हथकरघा बुनाई का प्रशिक्षण देकर महिलाओं को बनायेंगे दक्ष।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Sun, 12 Sep 2021 06:46 PM (IST)Updated: Sun, 12 Sep 2021 06:46 PM (IST)
केले के रेशे और जूट के फाइबर से पूर्णिया की महिलाएं तैयार करेंगी वस्त्र, 60 दिनों का मिलेगा प्रशिक्षण
केले और जूट के रेशे से महिलाएं वस्त्र तैयार करेंगी।

पूर्णिया [दीपक शरण]। जिले के ई-कामर्स कंपनी हाउस आफ मैथिली ने ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का बीड़ा उठाया है। बाहर से आए विशेषज्ञ महिलाओं को ट्रेङ्क्षनग देंगे। केले के रेशे और जुट फाइबर को काटन के साथ ब्लेंड कर हस्तकरघा से नयी टेक्सटाइल और वीव स्टाइल को विकसित किया जाएगा। इन कपड़ों से अलग -अलग तरह का प्रोडक्ट मसलन बेडसीट, कवर, पर्दा, साड़ी, दुपट्टा आदि तैयार किया जाएगा। हाउस आफ मैथिली इन प्रोडक्ट को आन लाइन बाजार में उपलब्ध करायेगा।

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ग्रामीण महिलाओं को मिलेगा प्रशिक्षण

पूर्णिया में लूम कल्चर नहीं है। इस तरह की पहल से ग्रामीण महिलाओं को रोजगार का नया अवसर मिलेगा और उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाया जा सकेगा। जिला उद्योग विभाग इसमें हाउस आफ मैथिली को मदद कर रहा है। हाउस आफ मैथिली के फाउंडर मनीष रंजन ने बताया कि लोगों के साथ उद्योग विभाग का सहयोग मिलने से आर्थिक परेशानी भी दूर हुई है। इसको बड़े पैमाने पर किया जाएगा जिससे स्थानीय महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार तो होगा ही साथ ही बाहर भी इसकी चर्चा होगी। मनीष रंजन पेशे से फैशन डिजाइनर हैं।

परियोजना के अंतर्गत संसाधन किया जा रहा है उपलब्ध

परियोजना के अंतर्गत महिलाओं को चार करघे उपलब्ध कराए जाएंगे। एक जैक्कार्ड ( 54 इंज चौड़ाई), तीन साधा (44 इंज चौड़ाई) जो कि मध्यप्रदेश के महेश्वर गांव से पेशेवर करघा निर्माताओं ने बनाया है। करघे और वारङ्क्षपग बीम को हैंडलूम स्टूडियो सिपाही टोला में लगाया जाएगा। प्रत्येक करघे के लिए एक बोबिन वाइंङ्क्षडग चरखा उपलब्ध कराया जाएगा।

कैसे किया जाएगा कार्य

प्रशिक्षण की प्रारंभिक अवधि के दौरान 24 महिलाओं को प्रशिक्षण के लिए पंजीकृत किया जाएगा। चार मास्टर बुनकरों की देखरेख में उन्हें प्रशिक्षित किया जाएगा। विशेषज्ञों में एमपी के प्रेमकली से साहिल अंसारी, महेश्वर, गुजरात के कच्छ से विनोद वांकर एवं जितेंद्र मगनभाई भुज शामिल हैं। ये चार मास्टर बुनकर एक महीने में 15 दिन का प्रशिक्षण और 15 दिन का अभ्यास कराएंगे। 60 दिनों की ट्रेङ्क्षनग चार महीने में पूरी कर होगी।

प्रखंड स्तर की महिलाओं का हुआ है चयन

धमदाहा, अमौर, बैसी, रूपौली, कसबा आदि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का चयन प्रशिक्षण के लिए किया जाएगा। उन्हें विशेष प्रकार (कपास के साथ मिश्रित केले के रेशे) की बुनाई में प्रशिक्षित किया जोगा। प्रथम चरण में 12 महिलाओं का चयन होगा। एक वर्ष में दो बैच तैयार होगा। प्रत्येक बैच में कुल 12 महिलाएं लाभान्वित होंगी। प्रत्येक वर्ष 24 महिलाओं को इसमें दक्ष किया जाएगा। 120 दिनों के प्रशिक्षण के दौरान इन महिलाओं को प्रति दिन 100 रुपये स्टाइपेन भी प्रदान किया जाएगा।

प्रशिक्षण पूरा होने के बाद इन कुशल महिलाओं को आठ घंटे की पाली के लिए प्रतिदिन न्यूनतम 400 रुपये मिलेंगे। प्रत्येक महिला प्रशिक्षण के बाद 10-12 मीटर कपड़ा बुन सकती है। प्रतिदिन 100-120 मीटर हाथ से बुने हुए कपड़े की उत्पादन क्षमता होगी। दरअसल इसका उद्देश्य महिलाओं को बनाई का कौशल प्रदान करना है ताकि वे अधिक सबल हो सकें तथा अपनी आजीविका अपने कौशल से अर्जित कर सकें।


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