Move to Jagran APP

रेल सेवा शुरू होने से यहां बांस किसानों के जीवन में आएगी हरियाली, इन राज्यों तक भेज सकेंगे

रेल सेवा शुरू होने से सीमांचल के किसानों में इसकी उम्मीद बढ़ गई है। अब तक सड़क से ढुलाई होती थी इस कारण बचत कम हो जाता था।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Sun, 20 Sep 2020 07:00 PM (IST)Updated: Sun, 20 Sep 2020 07:00 PM (IST)
रेल सेवा शुरू होने से यहां बांस किसानों के जीवन में आएगी हरियाली, इन राज्यों तक भेज सकेंगे
रेल सेवा शुरू होने से यहां बांस किसानों के जीवन में आएगी हरियाली, इन राज्यों तक भेज सकेंगे

सुपौल, जेएनएन। रेल सेवा के बंद होने का असर यहां की किसानी पर भी खूब पड़ा है। यहां के किसान बांस की खेती भी करते हैं। पहले यहां से बांस कोलकाता, नेपाल सहित राज्य के अन्य हिस्सों में भेजे जाते थे। रेल सेवा बंद होने के बाद इसका असर बांस कारोबार पर भी देखा जाने लगा। अब जब रेल सेवा एकबार फिर शुरू हुई तो अन्य राज्यों को बांस भेजे जाने की उम्मीद जगी है। किसानों को इसका लाभ मिलेगा। फिलहाल सड़क मार्ग से ढुलाई महंगी होने के कारण किसानों को बांस की कम मिलती है।

loksabha election banner

खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी है प्रयत्नशील

बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार प्रयत्नशील है। पर्यावरण एवं वन विभाग द्वारा स्थानीय बीएसएस कॉलेज में टिश्यु कल्चर लैब की स्थापना की गई। इसका मकसद उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध करवाकर बांस की खेती को बढ़ावा देना है। दूसरी तरफ बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा तीन साल में 25 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर राशि दिए जाने का प्रावधान है। बांस उद्योग के लिए मशीनों पर अनुदान और किसानों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था भी विभागीय स्तर पर है।

मेगा ब्लॉक लिए जाने के बाद किसानों को मुनाफा होने लगा कम

2012 से पहले यहां से बांस रेल के माध्यम से बाहर भी भेजे जाते थे। उसी साल बड़ी रेल लाइन बिछाने के लिए मेगा ब्लॉक लिया गया और ट्रेन से ढुलाई बंद हो गई। पहले सुपौल रेलवे स्टेशन के बगल में माल गोदाम के पास बांसों की छल्लियां लगी रहती थी। रेलवे से व्यापारियों को भाड़ा कम लगता था तो इससे अधिक कारोबारी जुटे थे। बांस की खपत अधिक थी और व्यापारियों को बाहर भेजने में भाड़ा कम लगता था तो इसका फायदा किसानों को मिलता था।

कम आते हैं बाहरी व्यापारी

किसानों की मानें तो जबसे रेल सेवा बंद हुई है तब से बाहरी व्यापारियों का आना कम हो गया है। किसानों का कहना है कि पहले जब रेल से बांस बाहर भेजे जाते थे तो व्यापारी कुछ अधिक पैसा भी दे देते थे। अब सड़क से उन्हें भाड़ा अधिक लगता है जिससे वे अधिक पैसा देना नहीं चाहते। अब अगर मालगाड़ी का परिचालन शुरू होगा तो बांस की कीमत अच्छी मिलने की उम्मीद है।

बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार किसानों को तीन साल में 25 हजार प्रति हेक्टेयर की दर से राशि देती है। अगर किसान बांस आधारित उद्योग लगाना चाहे तो मशीन पर 50 प्रतिशत तक अनुदान दिया जा सकता है। इसी तरह वन विभाग द्वारा किसानों को प्रशिक्षण के लिए बाहर भी भेजा जाता है। वन विभाग द्वारा भी पांच हजार बांस के पौधे लगाए गए हैं।

-सुनील कुमार शरण, वन प्रमंडल पदाधिकारी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.