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भारत में कहर बनकर टूटते हैं ये पाकिस्‍तान से आने वाले टिड्डे, बिहारी छात्र के आइडिया से बन रहा मुकाबले का हथियार

Fight against Locust Attack देश में हर साल पाकिस्‍तान से आने वाले टिड्डियों के दल हजारों एकड़ खेतों में फसलें चट कर जाते हैं। इस समस्‍या के हल का आइडिया दिया हैॅ एक बिहारी छात्र ने। इस आइडिया से टिड्डियों से मुकाबले का हथियार बनाया जा रहा है।

By Amit AlokEdited By: Published: Tue, 20 Apr 2021 11:48 AM (IST)Updated: Tue, 20 Apr 2021 11:55 AM (IST)
भारत में कहर बनकर टूटते हैं ये पाकिस्‍तान से आने वाले टिड्डे, बिहारी छात्र के आइडिया से बन रहा मुकाबले का हथियार
भारत में पाकिस्‍तानी टिड्डों का हमला। फाइल तस्‍वीर।

भागलपुर, ललन तिवारी। Fight against Locust Attack भारत में हर साल पाकिस्‍तान से टिड्डियों का आक्रमण होता है। बड़ी तादाद में आने वाले ये टिड्डे रास्‍ते में आने वाले हजारों एकड़ खेतों में फसलों को चट कर जाते हैं। इनसे बचाव के लिए बिहार के भागलपुर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BAU), सबौर एक नई परियोजना पर काम कर रहा है। मकसद है, तीन से चार घंटे पूर्व टिड्डियों के आगमन की सूचना मिल जाए और इन्हें ड्रम-सायरन आदि की आवाज से भगाया जा सके। इस काम में भागलपुर के ट्रिपल आइटी संस्थान का भी सहयोग लिया जा रहा है। इसके तहत बिहार के एक छात्र का आइडिया शोध के लिए चुना गया है।

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हजारों एकड़ फसल बर्बाद कर देते हैं पाकिस्‍तानी टिड्डे

पिछले दिनों बीएयू में एग्री हेकथोन कार्यक्रम का आयोजन हुआ था। यह देश में अपनी तरह का पहला कार्यक्रम था। इसी को लेकर विश्वविद्यालय के पीएचडी के छात्र शिवम ने यह आइडिया प्रस्तुत किया। इसे काम करने के लिए चुना गया है। बीएयू के कुलपति डॉ. आरके सोहाने ने बताया कि पाकिस्तान से आने वाला टिड्डियों का दल हजारों एकड़ फसल बर्बाद कर देता है। इसी परेशानी के हल के लिए इस आइडिया को शोध के लिए चुना गया।

सायरन की आवाज सुन रास्‍ता बदल लेंगे टि्ड्डियों के दल

इसे विकसित करने के लिए कृत्रिम इंटेलीजेंस के सॉफ्टवेयर पर काम किया जा रहा है। ध्वनि तरंगों के माध्यम से यह पता किया जाएगा कि टिड्डियों का दल कितना दूर है। इसके लिए खेतों की मेड़ पर पोल लगाकर इनमें ऑप्टिकल सेंसर लगाए जाएंगे। टिड्डियों की फ्रीक्वेंसी ग्रहण कर सिग्नल सॉफ्टवेयर तक पहुंच जाएगा। इसके बाद खुद-ब-खुद सेंसर के साथ लगी बेल से ड्रम-सायरन आदि बजने लगेंगे। इन आवाजों को सुनकर टिड्डियों का दल रास्ता बदल लेगा।

दूसरे कीटों से भी सुरक्षा, कीटनाशकों का प्रयोग होगा कम

एग्री हेकथोन कार्यक्रम के आयोजक सचिव डॉ. आदित्य बताते हैं कि इस तकनीक के विकसित होने से टिड्डियों के अलावा दूसरे कीटों से भी सुरक्षा मिलेगी। इस कारण कीटनाशकों का प्रयोग कम होगा। अभी सेंसर दो सौ मीटर दूर उड़ रहीं टिड्डियों को फॉलो कर रहा है। सेंसर की तकनीक को उस स्तर पर विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है, जब तीन से चार घंटे पूर्व टिड्डियों के आगमन की सूचना मिल सके। सेंसर में टिड्डियों को भगाने के अलावा पशु-पक्षियों को भगाने की आवाज भी निकाली जा सकेगी। यानी, परिस्थिति के अनुसार इस सेंसर का प्रयोग किया जा सकता है।


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