Water Day: यहां बालू माफिया कर रहे नदियों की हत्या... आप भी जान कर रह जाएंगे हैरान-परेशान
जमुई में अधिकांश नदियों की धार सूख चुकी है। इसका सबसे बड़ा कारण बालू का अवैध खनन है। बालू माफिया यहां पर खुलेआम नदियाें की हत्या कर रहा है। लेकिन प्रशासन सब कुछ जान कर भी मौन है।
जागरण संवाददाता, जमुई। बीते वर्ष मानसून के बाद भी खूब बारिश हुई थी। इसके बावजूद जमुई और लखीसराय की लाइफ लाइन किऊल नदी सहित विभिन्न नदियों की धारा लगभग सिमट चुकी है। बताना लाजिमी है कि पिछली बार होली में भी नदियां सूखी थीं। इसकी बड़ी वजह 2019 में अल्पवृष्टि बताई गई थी, लेकिन 2020 में पर्याप्त बारिश के बाद भी नदियों के सूखने की स्थिति से पर्यावरणविद ङ्क्षचतित हैं। खगडिय़ा में बागमती, कमला और मालती नदी सूखती जा रही है। मंदरा धार मृत हो चुकी है। कमला-करेह का संगम स्थल भी जलविहीन होता जा रहा है।
बेतरतीब दोहन और ग्रीन कवर नहीं होना बना अभिशाप
पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहे सुहावन सिंह और सुभाष चंद्र सिंह बताते हैं कि नदियों का बेतरतीब दोहन (बालू का खनन) और ग्रीन कवर का समाप्त होना इनके सूखने का कारण है। इसके अलावा नदियों में सिल्ट की समस्या भी उसके लिए अभिशाप साबित हो रही है। नदी किनारे पेड़-पौधों का होना उसके जीवन के लिए अति आवश्यक है। सुहावन कहते हैं कि पेड़ की प्रकृति ही होती है कि वह बारिश के समय में जड़ों में जल संचित करता है और फिर सूखे की स्थिति में नदियों को जल छोड़ता है। इसके लिए वे नदी किनारे सीडबॉल फेंक कर पौधा उगाने की मुहिम शीघ्र प्रारंभ करने वाले हैं।
1125 मिली मीटर हुई थी बारिश
2020 में कुल 1125 मिलीमीटर बारिश हुई थी। अकेले सितंबर माह में ही लगभग 220 मिलीमीटर वर्षापात दर्ज किया गया था। किऊल नदी के उद्गम स्थल वाले इलाके में तो यह आंकड़ा कुछ ज्यादा ही है। कृषि वैज्ञानिक डॉ प्रमोद कुमार सिंह बताते हैं कि पिछली बार कई वर्षों का रिकॉर्ड टूटा था और 1100 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश हुई थी।
हो रहा बेतरतीब दोहन
किऊल नदी में बेतरतीब दोहन रोकने के लिए ही ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सख्त नियम बनाए थे। बालू उठाव के लिए पर्यावरण संरक्षण एवं नदियों की हिफाजत के लिहाज से कई महत्वपूर्ण शर्तें बनाई गई लेकिन अब नदियां उन्हीं शर्तों में उलझ कर सूख रही हैं। निविदा डालने वाले शर्तों में उलझे हैं और अवैध खनन का धंधा परवान चढ़ रहा है। जाहिर सी बात है की अवैध खनन वालों को ना बंदोबस्ती रद होने का खतरा है और ना ही किसी कार्रवाई का डर है।
गाद की बड़ी समस्या
अब किऊल नदी में दो सिंचाई परियोजनाएं भले तात्कालिक तौर पर किसानों के लिए वरदान साबित हो रही हो लेकिन नदियों का भविष्य बर्बाद होता दिख रहा है। पर्यावरण प्रेमी भवानंद नंदलाल ते हैं कि अपर किऊल जलाशय तथा लोअर किऊल बराज परियोजना के कारण नदियों में गाद भरने की जो समस्या उत्पन्न हुई है उसे मनरेगा और जल जीवन हरियाली अभियान से साफ कर नदी के नुकसान की भरपाई की जा सकती है। पत्रकार देवेंद्र ङ्क्षसह कहते हैं कि किऊल नदी में पानी सूखना भविष्य के खतरे की घंटी है। फिलहाल नदी किनारे के गांव में 40 से 60 फीट की गहराई में पर्याप्त भूगर्भ जल उपलब्ध है लेकिन स्थिति इसी तरह बिगड़ती चली गई तो जल स्तर भी नीचे खिसकता चला जाएगा।