विश्वकर्मा पूजा 2021: पितरों की श्रेणी में आते हैं बाबा विश्वकर्मा, सर्वार्थ सिद्धि योग में इस बार होगी पूजा, जानिए मुहूर्त व पूजन विधि
विश्वकर्मा पूजा 2021 बाबा विश्वकर्मा की पूजा 17 सितंबर को है। विश्वकर्मा भगवान पितरों की श्रेणी में आते हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग में इस बार पूजा होगी। विशेष फलदायी है। पूजन पाठ की विधि और शुभ मुहूर्त की जानकारी हमें इस खबर में मिलेगी पढ़िए
संवाद सहयोगी, भागलपुर। विश्वकर्मा पूजा 2021: 17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा की पूजा धूम-धाम से की जाएगी। कोरोना के कारण विगत दो वर्षों से लोग पर्व-त्योहार ठीक तरह से नहीं मना पा रहे थे। पर इस बार भागलपुर शहर और आसपास के क्षेत्रों में दर्जनों जगहों पर प्रतिमा स्थापित की गई हैं। शाम में कई जगहों पर जागरण आदि के कार्यक्रम होंगे।
सनातन धर्म में विश्वकर्मा पूजा का विशेष महत्व है। श्रद्धालु भगवान विश्वकर्मा के साथ-साथ अपने औजारों, मशीनों और दुकानों की भी पूजा करते हैं। इस पूजा को करने के पीछे मान्यता है कि इससे व्यक्ति की शिल्पकला का विकास होता है और व्यापार में तरक्की मिलती है। हिन्दू धर्म में भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का निर्माणकर्ता और शिल्पकार माना जाता है।
विश्वकर्मा पूजा विधि
बूढ़ानाथ मंदिर के आचार्य पंडित टून्नाजी ने बताया कि विश्वकर्मा पूजा सुबह से शाम तक कभी भी किया जा सकता है। आज सर्वाद्धसिद्धि योग अत्यंत शुभ फल देने वाला है। फैक्ट्री, दुकान आदि के स्वामी अपनी पत्नी के साथ पूजा करना विशेष शुभ फल देता है। भगवान विश्वकर्मा को फूल, चंदन, अक्षत, धूप, रोली, दही, सुपारी, रक्षा सूत्र, फल और मिठाई अर्पित करें। ये सब चीजें उन उपकरणों को भी चढ़ाएं जिनकी आप पूजा करना चाहते हैं। पूजा में जल से भरा कलश भी शामिल करें और उस पर हल्दी, चावल और रक्षासूत्र चढ़ाएं। अंत में भगवान विश्वकर्मा जी की आरती उतारें और उन्हें भोग लगाकर प्रसाद सभी में बांट दें। पूजा के अगले दिन भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा का विसर्जन भी करें।
इस वर्ष विश्वकर्मा पूजा सर्वार्थ सिद्धि योग में मनाया जाएगा। ज्योतिर्विद पं. सचिन कुमार दुबे ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार बाबा विश्वकर्मा पितरों की श्रेणी में आते हैं। सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश के साथ पितरों का पृथ्वीलोक में आगमन मान लिया जाता है। वे हमारी श्रद्धा भक्ति के प्रसन्न होकर धन, वंश एवं आजीविका वृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। वास्तु, निर्माण या यांत्रिक गतिविधियों से जुड़े लोग अपने शिल्प एवं उद्योग के लिये देवशिल्पी की पूजा करते हैं।
इस दिन यंत्रों की सफाई और पूजा होती है और कल कारखाने बंद रहते हैं। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका और लंकापुरी का निर्माण उन्होंने ही किया था। सुबह से ही सर्वार्थसिद्धियोग रहेगा। राहुकाल प्रात: 10 : 30 से 12 बजे के बीच होने से इस समय पूजा निषिद्ध है। बाकी किसी भी समय पूजा किया जाएगा। .