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उद्धारक की बाट जोह रहा पिपरा का विनोबा मैदान... यहां के खिलाड़ी राज्य और राष्ट्रीय स्तर दिखा चुके हैं दमखम

सुपौल के पिपरा मैदान का अब तक कायाकल्प नहीं हो सका है। एकमात्र मैदान होने के कारण सांस्कृतिक कार्यक्रम के अलावा भी कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं लेकिन मैदान की सुरक्षा नहीं होने से मैदान अतिक्रमित होकर सिकुड़ता जा रहा है।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Fri, 09 Apr 2021 09:50 AM (IST)Updated: Fri, 09 Apr 2021 09:50 AM (IST)
उद्धारक की बाट जोह रहा पिपरा का विनोबा मैदान... यहां के खिलाड़ी राज्य और राष्ट्रीय स्तर दिखा चुके हैं दमखम
सुपौल के पिपरा मैदान का अब तक कायाकल्प नहीं हो सका है।

 संवाद सूत्र, पिपरा (सुपौल)। प्रशासनिक और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता की वजह से पिपरा का ऐतिहासिक विनोबा मैदान कूड़ादान बनकर रह गया है। इसकी वजह से न केवल मैदान का आकार सिकुड़ता जा रहा है बल्कि अतिक्रमण का शिकार भी होता जा रहा है। मगर इसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। गौरतलब है कि विनोबा भावे, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, चंद्रशेखर, विश्वनाथ ङ्क्षसह, नीतीश कुमार, डॉ. जगन्नाथ मिश्र, लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, रामविलास पासवान, सुशील मोदी, मुलायम ङ्क्षसह यादव, ललित नारायण मिश्र सरीखे राष्ट्रीय स्तर के नेता इस मैदान में सभा कर चुके हैं।

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मुख्यालय में एकमात्र मैदान होने के कारण सांस्कृतिक कार्यक्रम के अलावा भी कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं लेकिन मैदान की सुरक्षा नहीं होने से मैदान अतिक्रमित होकर सिकुड़ता जा रहा है। पिपरा बाजार की गंदगी भी लोग मैदान पर फेंक रहे हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मैदान को बस स्टैंड का शक्ल दे दिए जाने से वहां शौचालय बना दिया गया है। इस ओर आज तक न जनप्रतिनिधियों का ध्यान जाता है और न ही प्रशासन का। पूर्व के खिलाड़ी गौरी झा, नारायण गुप्ता, देवेंद्र गुप्ता, दशरथ गुप्ता, गोपाल गुप्ता आदि बताते हैं कि इस मैदान को बनाने में कई जमीन मालिकों ने योगदान दिया और खिलाड़ी निस्वार्थ भाव से मेहनत कर बनाया।

आज जब बच्चे व बूढ़े को सुबह-शाम सैर करने का मन करता है तो देखकर मायूसी छा जाती है। यहां के बुजुर्ग बताते हैं कि इस मैदान पर राज्य से लेकर नेपाल तक के खिलाड़ी फुटबॉल खेलने आते थे और खेल के समय यह मैदान खचाखच भीड़ से भरा हुआ रहता था। तालियों की गूंज से आसपास के लोगों को पता चलता था कि खेल हो रहा है। उस समय टीम का नेतृत्व नागेंद्र गुप्ता के द्वारा किया जाता था और खिलाड़ी भी अनुशासन का भरपूर पालन करते थे। बताया जाता है कि यहां के फुटबॉल खिलाडिय़ों में इतना जोश था कि टूर्नामेंट खेलने साइकिल से मानसी, बेगूसराय, सहरसा, मधेपुरा आदि जगह जाते थे। कई बार शिल्ड भी जीतकर लाया। अब यह मैदान किसी उद्धारक का बाट जोह रहा है।  


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