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तीन दशक बाद भी नहीं बन पाया विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन आश्रयणी

केंद्र सरकार ने पर्यटकों को पारिस्थति की महत्व की गांगेय डॉल्फिन ऊदबिलाब कछुआ सहित बहुत सी प्रवासी पक्षियों को दिखाने के लिए अभ्यारण्य क्षेत्र बनाने की घोषणा की थी।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Tue, 14 Jul 2020 03:54 PM (IST)Updated: Tue, 14 Jul 2020 03:54 PM (IST)
तीन दशक बाद भी नहीं बन पाया विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन आश्रयणी
तीन दशक बाद भी नहीं बन पाया विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन आश्रयणी

भागलपुर [अमरेंद्र कुमार तिवारी]। सुल्तानगंज से कहलगांव के बीच गंगा नदी के मध्य तीन पहाड़ियों तक 60 किलोमीटर की लंबाई में फैला यह क्षेत्र, घोषणा के तीन दशक बाद भी विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन आश्रयणी नहीं बन पाया। जबकि केंद्र सरकार ने देश विदेश के पर्यटकों को पारिस्थति की महत्व की गांगेय डॉल्फिन, ऊदबिलाब, कछुआ सहित बहुत सी प्रवासी पक्षियों को दिखाने के लिए इसे एशिया का पहला अभ्यारण्य क्षेत्र बनाने की घोषणा किया था। पर घोषणा के तीन दशक बाद भी धरातल पर इसकी स्थित जस की तस बनी हुई है। योजना धरातल पर उतरे इसको लेकर शासन और प्रशासन किसी ने भी अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं किया।

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भागलपुर प्रमंडल पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की माने तो जुलॉजिक सर्वे ऑफ इंडिया पटना के द्वारा इस अभ्यारण्य के निर्माण को लेकर बजट तैयार किया गया है, जिसे स्वीकृति के लिए केंद्र सरकार को भेजी गई है। लेकिन इसके निर्माण का कितना बजट है, इसकी न तो भागलपुर प्रमंडल कार्यालय को कॉफी उपलब्ध कराई गई है और न कोई बताने वाला है। बस योजना का जो गजट प्रकाशित किया गया है बस उतना भर ही उपलब्ध है।

डॉल्फिन सहित अन्य जलीय जीवों को बचाने के लिए समन्वित प्रयास की जरूरत

गांगेय डॉल्फिन की देखरेख, विकास, संवर्धन और संरक्षण पर बेहतर काम कर चुके तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के विज्ञानी प्रो. सुनील चौधरी ने कहा अभ्यारण्य क्षेत्र के विकास के लिए सभी स्टेक होल्डरों के साथ बैठक कर एक समन्वित कार्य योजना तैयार करने की जरूतर है। पर इस दिशा में अब तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हुए हैं। उन्होंने कहा कि अब यहां बाढ़ हर वर्ष त्योहार की भांति आता है। भोजन की तलाश में डॉल्फिन गंगा की सहायक नदियों में चली जाती है। हां, पानी कम होने की स्थिति में वहां से पुन गंगा की मुख्य धार में लौट आती है। जो कम पानी में फस जाने के कारण नहीं लौट पाते है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि बाढ़ के दिनों में खगड़िया के गंडक में भी डॉल्फिन देखने को मिल जाती हैं। इससे यह साफ जाहिर होता है कि पानी के बहाव में डॉल्फिन गंगा की सहायक नदियों और मैदानी इलाकों में भी अठखेलियां करते चली जाती हैं। जो कई बार उनकी मौत का कारण भी बन जाता है। दो वर्ष पूर्व हुए सर्वे के अनुसार गंगा में डॉल्फिन की संख्या पौने दो सौ के करीब बताया जाता है।

अभ्यारण्य क्षेत्र को कितना हुआ नुकसान नहीं हुआ कभी सर्वे

गांगेय डॉल्फिन पारिस्थितिकी तंत्र के सेहत का पैमाना है। बावजूद इसके बाढ़ या अन्य कारणों से इसके अभ्यारण्य क्षेत्र को कितना नुकसान हो रहा है इसका सर्वे कर मूल्यांकन करने की जरूरत है। पूर्व डीएफओ ने सर्वे कराने की योजना बनाई थी, कहा था टीएमबीयू के विज्ञानी की मदद ली जाएगी, लेकिन उनका स्थानांतरण होने के बाद यहां दोबारा ऐसी कोई योजना नहीं बन पाई। अभ्यारण्य क्षेत्र में कितना नुकसान या फायदा हुआ है इसका मूल्यांकन हो सके।

अभ्यारण्य क्षेत्र का मैनेजमेंट प्लान बना है। जिसके तहत डॉल्फिन सहित अन्य प्रवासी पक्षियों के संरक्षण और सर्वे की दिशा में काम किया जा रहा है। दो वर्ष पूर्व 2018 में डॉल्फिल का सर्वे का काम हुआ है। गंगा में अभी करीब 350 की संख्या में डॉल्फिन है। मछुआरों का सहयोग लेकर छह जगह पर कैंप लगाकर संरक्षण का काम किया जा रहा है। - एस सुधाकर, डीएफओ, भागलपुर।

मुख्‍य बातें

-केंद्र सरकार द्वारा सात अगस्त 1991 को गंगेटिक अभ्यारण्य बनाने की हुई थी घोषणा

-सुल्तानगंज और कहलगांव गंगा नदी के मध्य तीन छोटी पहाड़ियों तक 60 किलोमीटर की लंबाई में फैला हुआ यह अभ्यारण्य क्षेत्र

-देशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए एशिया का पहला अभ्यारण्य क्षेत्र बनाने की सरकार की है योजना

-वर्तमान डिप्टी सीएम ने दो वर्ष पूर्व मई में अभ्यारण्य क्षेत्र में काम शुरू किए जाने की कि थी घोषणा, पर स्थिति यथावत

-विज्ञानी प्रो. सुनील चौधरी ने कहा डॉल्फिन सहित अन्य जलीय जीवों को बचाने के लिए समन्वित प्रयास की जरूरत


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