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बांका के चुटिया गांव में घर घर पशु चिकित्सक, जानकर रह जाएंगे हैरान

चुटीया गांव के हर घर में है महिलाएं अब पशु चिकित्सक बन गई हैं। उन्‍हें बायोटेक हब प्रोजेक्‍ट के तहत प्रशिक्षण दिया गया है। उक्‍त गांव की महिलाएं अब स्‍वास्‍थ्‍य सलाह केंद्र में काम करती है। वे अपने घर में बकरियों को खुद टीका लगाती हैं।

By Amrendra kumar TiwariEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 03:49 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 03:49 PM (IST)
बांका के चुटिया गांव में  घर घर  पशु चिकित्सक, जानकर रह जाएंगे हैरान
समय पर टीकारण से बकरी की मृत्यु दर में 50 फीसद तक आई कमी

बांका [सुधांशु कुमार] ।  प्रखंड क्षेत्र का एक ऐसा गांव जहां हर घर में पशु चिकित्सक हैं। जी हां हम बात कर हरे हैं चुटिया गांव की। जहां हर घर की महिलाएं अपने पशुओं का इलाज खुद से करती हैं। वहीं, अपने बकरी को भेक्सीन भी लगाती है। इससे इस गांव में बकरी की मृत्यु दर में 50 से 60 फीसद तक की कमी आई है। इस कारण यहां के किसानों को आमदनी चार गुणी बढ़ गई है।

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ज्ञात हो की वर्ष 2019 के अंतिम माह में कृषि विज्ञान केंद्र बांका द्वारा बायोटेक हब प्रोजेक्ट के तहत चुटिया और ककवारा गांव का चयन किया गया था। प्रोजेक्ट के तहत यहां पर केविक द्वारा स्वास्थ्य सलाह केंद्र खोला गया। इन गावों के लोगों को प्रशिक्षण दिया गया एवं जून 2020 से टीकाकरण की शुरूआत की गई। केविके के पशु विज्ञानी डॉ. धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि पहले इन गावों में बीमारी के कारण 60 से 70 फीसद बकरी मर जाती थी। पर समय पर टीकाकरण होने से अब यहां मृत्यू दर दस फीसद हो गई है। इससे इन किसानों की आमदनी चार गुणा तक बढ़ गई है।

स्वास्थ्य सलाह केंद्र में मिलने वाली सुविधा

स्वास्थ्य सलाह केंद्र का संचालन गांव के चंदा भारती, राज प्रताप भारती एवं अशोक भारती की देख रेख में किया जा रहा है। यहां पर किसानों को टीकाकरण, क्रिमी दवा, लीवर टानिक, पशु चाकलेट एवं मेमना चॉकलेट किसानों को मुफ्त में उपलब्ध कराया जाता है। चंदा भारती ने बताया कि गांव के सभी किसानों को टीकाकरण करने का प्रशिक्षण दिया गया है। यहां हर घर की महिलाएं भी टीकाकरण करती है। बकरी के बीमारी से बचाव के लिए आवश्यक दवाईयां स्वास्थ्य केंद्र पर मुफ्त में किसानों को उपलब्ध कराया जाता है।

बकरी में टीकाकरण का महत्व

बकरी में छेरा बीमारी सबसे खतरनाक एवं प्राणघातक है। इस बीमारी से 90 फीसद बकरी की मौत हो जाती है। पर पीपीआर टीका लगाने के बाद यह तीन साल तक इस बीमारी से सुरक्षा प्रदान करती है। महज पांच रुपये खर्च कर हम अपने बकरी को तीन साल तक इस बीमारी से बचा सकते हैं। इंटेरोटोक्सेमिया में बकरी के पेट में तेज दर्द उठता है एवं उसकी मृत्यु हो जाती है। इसके बचाव के लिए ईटी टीका दो मिली लीटर चमड़ी के निचे प्रति वर्ष लगाने से इससे बचाव किया जाता है।

क्‍या कहते हैं बीएयू के कुलपति

बीएयू के कुलपति डॉ आरके सोहाने ने कहा कि यहां महिलाएं अभी टीकाकरण कर रही है। आगे उन्हें प्राथमिक स्तर पर सभी बीमारी के बारे में जानकारी देने एवं उसके निदान के लिए दवाई के प्रयोग के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा। इससे यहां पर एक ऐसा हब बनाया जाएगा जहां किसानों को सभी प्रकार की सुविधा मिलेगी।


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