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मशरूम गांव बना शीतलपुर... महिलाओं ने दिलाई गांव में आर्थिक समृद्धि

महिलाओं का लगाव इस कदर बढ़ा कि अब आसपास के लोग शीतलपुर को मशरूम उत्पादन गांव कहना शुरू कर दिया। महिलाओं ने बताया कि उसे उत्पादित मशरूम को बेचने के लिए बाजार का संकट नहीं है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Thu, 21 Mar 2019 02:03 PM (IST)Updated: Fri, 22 Mar 2019 10:07 AM (IST)
मशरूम गांव बना शीतलपुर... महिलाओं ने दिलाई गांव में आर्थिक समृद्धि
मशरूम गांव बना शीतलपुर... महिलाओं ने दिलाई गांव में आर्थिक समृद्धि

भागलपुर [अमरेन्द्र कुमार तिवारी]। पीरपैंती प्रखंड के शीतलपुर गांव की करीब सवा सौ आदिवासी महिलाएं कल तक लकड़ी काटकर उसकी कमाई से परिवार का भरण-पोषण कर रही थी। आज वहीं बिना खेत की ओयस्टर एवं बटन मशरूम उपजा कर अपनी जिंदगी संवार रही है। इन महिलाओं को हुनरमंद बनाने का काम कृषि विज्ञान केंद्र सबौर की वैज्ञानिक अनिता कुमारी कर रही है।

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पहले तो अनिता ने गांव की सबनी टूडू, मंझली मुर्मू, बड़की किस्कू, हीरा मुर्मू, अनिसा किस्कू, मीना हंसदा, एवं मरंझा किस्कू सहित 20 महिलाओं को मशरूम उत्पादन की वैज्ञानिक विधि 'करके सीखो' के तर्ज पर बताया। सभी महिलाओं ने पहले मशरूम बैग तैयार किया। उसके उपरांत ओयस्टर मशरूम का उत्पादन शुरू किया। उत्पादन होने के बाद मानों सभी को नई दिशा मिल गई। डेढ़ माह में ओयस्टर मशरूम तैयार हो गया। पहली कमाई सभी की करीब ढ़ाई से चार हजार के बीच हुई। इसके बाद आदिवासी महिलाओं के बीच मानो क्रांति आ गई हो। एक एक करके गांव की लगभग सवा सौ महिलाएं इस खेती में लग गई।

इतने से बात नहीं बनी। आमदनी बढ़ाने के लिए इन लोगों से बटन मशरूम का उत्पादन शुरू कराया गया। जिसकी बाजार में अधिक मांग है। फिलहाल गांव की महिलाएं ओयस्टर और बटन मशरूम का उत्पादन कर रही है। बटन मशरूम की खासियत यह है कि उसका एक बार बैग नवंबर में तैयार कर लेने के बाद उसमें 15 फरवरी तक उत्पादन होते रहता है। ओयस्टर मशरूम की बिक्री जहां 150 रुपये किलो होती है वहीं बटन की बिक्री 250 रुपये तक है।

मशरूम गांव बना शीतलपुर

गांव की महिलाओं का लगाव इस कदर बढ़ा कि अब आसपास के लोग शीतलपुर को मशरूम उत्पादन गांव कहना शुरू कर दिया। महिलाओं ने बताया कि उसे उत्पादित मशरूम को बेचने के लिए बाजार का संकट नहीं है। केवीके की वैज्ञानिक अनिता दीदी ने दो सामाजिक कार्यकर्ताओं को इसकी खरीद बिक्री के लिए लगा दिया है। वह समय पर गांव आकर मशरूम की खरीदारी कर पैसे का नगद भुगतान कर देते हैं।

बीएयू के प्रयास से बदली गांव की तस्वीर

बीएयू के फार्मर फस्ट कार्यक्रम के तहत कार्यान्वित कृषि उद्यम विविधिकरण के माध्यम से अनुप्रस्थ अजीविका सुधार और आय संवर्धन से यह सब कुछ सफल हो पाया है।

बीएयू के कुलपति डॉ. अजय कुमार सिंह ने कहा कि समाज के मुख्यधारा से कटे लोगों की दशा-दिशा बदलने के लिए विवि प्रशासन कटिबद्ध है। ऐसे लोगों को खेती-किसानी का पाठ पढ़ाने के लिए विवि व कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक को लगाया गया है। उनकी आमदनी बढ़ें वे भी खुशहाल जीवन जी सकें। यहीं प्रयास है।


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