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Sawan 2019: बाबा नगरी की डगर में रोजगार के मेले, तीन अरब का होता है कारोबार

Sawan 2019 साल के अधिकांश महीनों में सुनसान रहने वाला कांवडि़या पथ श्रावणी मेले में गुलजार हो जाता है। रोजगार के साधन उपलब्ध होते हैं। पूरे मेले में तीन अरब का कारोबार होता है।

By Edited By: Published: Sat, 20 Jul 2019 01:59 PM (IST)Updated: Sun, 21 Jul 2019 10:36 PM (IST)
Sawan 2019: बाबा नगरी की डगर में रोजगार के मेले, तीन अरब का होता है कारोबार
Sawan 2019: बाबा नगरी की डगर में रोजगार के मेले, तीन अरब का होता है कारोबार

भागलपुर [संजय सिंह] । Sawan 2019: साल के अधिकांश महीनों में सुनसान रहने वाला कांवडि़या पथ श्रावणी मेले के दौरान गुलजार हो जाता है। खास बात यह है कि इस दौरान 50 हजार से अधिक लोगों को रोजगार के साधन उपलब्ध होते हैं। यहां गंगाजल के डिब्बों पर लगाने के लिए मिट्टी तक बिक जाती है। इस मेले में सामाजिक और धार्मिक विषमता पूरी तरह मिट जाती है। 110 किलोमीटर लंबे कांवडि़या पथ पथ एक महीने की बिक्री से कई परिवारों को साल भर रोटी मिलती है। लगभग तीन अरब से अधिक का कारोबार यहां होता है।

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500 से 1000 तक खर्च करता है एक कांवरिया
एक माह तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेले का कई वर्गो के लोगों को महीनों से इंतजार रहता है। श्रावणी मेले का अर्थशास्त्र काफी बड़ा है। इसमें लगभग 50 से 60 लाख कावरिये आते हैं। एक कांवडि़या लगभग 500 से 1000 रुपये खर्च करता है। लगभग तीन अरब से अधिक का कारोबार यहां होता है। इनमें होटल, रेस्टोरेंट, कपड़ा, फोटोग्राफी, पंडा, कावर, डिब्बा, पूजा-पाठ सामग्री, लाठी, अगरबत्ती आदि व्यवसाय की तैयारी कई महीनों से होती है।

कांवर दुकानदारों की सुल्तानगंज में बाढ़ आ जाती है
सीताराम चौधरी सुल्तानगंज की ध्वजा गली में कांवड़ की दुकान चलाते हैं। इनके पिता के समय से यह दुकान है। सावन से लेकर कार्तिक तक कांवर का धंधा चलता है। इसी तरह, अभय चौधरी भी इसी गली में कांवड़ की दुकान चलाते हैं। 15 वर्ष से कृष्णगढ़ में अभिषेक कुमार बंटी और अनिल गुप्ता की दुकानें हैं। इनका कहना है कि श्रावणी मेले में कांवर दुकानदारों की सुल्तानगंज में बाढ़ आ जाती है। सैकड़ों अस्थायी दुकानें खुल जाती हैं। एक कांवडि़या न्यूनतम 200 रुपये कावर पर खर्च करते हैं। इस तरह, एक माह में कावर व्यवसाय में 50 करोड़ से अधिक का कारोबार होता है।

केवल डिब्‍बे से होता है 10 करोड़ का बिजनेस
मेले में डिब्बों की सैकड़ों दुकानें खुलती हैं। एक कांवडि़या एक जोड़ी डिब्बे व पवित्री 30 से 40 रुपये में खरीदते हैं। पूरे महीने में 10 करोड़ से अधिक का व्यवसाय डिब्बे से होता है। चाय, नाश्ता व जूस आदि में न्यूनतम 100 से 150 रुपये एक दिन में कांवडि़ये खर्च करते हैं। एक दिन में लगभग 80 लाख से एक करोड़ का इनका कारोबार होता है। एक माह में करीब 30 करोड़ से अधिक का व्यवसाय होता है।

कपड़े में होता है 30 लाख का कारोबार
लगभग 300 से 400 पंडा पूजा कराने पहुंचते हैं, जो पूरे महीने में अच्छी कमाई कर अपने घर जाते हैं। एक कांवरिया न्यूनतम 200 रुपये के कपड़े की खरीदारी करता है। एक दिन में 30 लाख के कपड़ों का कारोबार होता है। माह में 10 करोड़ से अधिक का कारोबार होता है। मेले में लगभग 250 से 300 फोटोग्राफर हैं। एक फोटो बनाने में ये 20 रुपये लेते हैं।

फोटोग्राफर भी कमा लेता है डेली एक से दो हजार
एक दिन में एक फोटोग्राफर लगभग एक से दो हजार रुपये कमा लेते हैं। सावन में दर्जनों होटल, रेस्टोरेंट, शौचालय आदि खुल जाते हैं। कांवडि़याें के लिए ठहराव, शौचालय में लगभग एक करोड़ से अधिक का कारोबार होता है। कांवडि़या पूजा-पाठ सामग्री व अगरबत्ती आदि में 30 रुपये न्यूनतम खर्च करते हैं। इस तरह 40 से 50 लाख कांवडि़या एक माह में 10 करोड़ से अधिक का कारोबार देते हैं।

पांच करोड़ की बिक जाती है लाठी
70 प्रतिशत कांवडि़या लाठी का इस्तेमाल करते हैं। एक लाठी की कीमत 30 से 40 रुपये होती है। लाठी से पांच करोड़ का कारोबार मेले में होता है। पॉलीथीन की शीट भी कांवरिया खरीदते हैं। एक पॉलीशीट 30 रुपये में मिलता है। इस तरह मेले में तीन करोड़ का इनका कारोबार होता है। बोतलबंद पानी व कोल्ड ड्रिंक्स की बिक्री भी बड़े पैमाने पर होती है। एक बोतल बंद पानी 15 से 20 रुपये तथा कोल्ड ड्रिंक्स 15 से 20 रुपये में मिलता है। एक दिन में इनका 24 लाख का कारोबार होता है।

मुस्लिम तैयार करते हैं कांवर, आदिवासी करते हैं सेवा
श्रावणी मेला लाखों लोगों के जीवन का आधार तो बनता ही है, ये लोक आस्था और धार्मिक श्रद्धा का मेला भी है। यहां साप्रदायिक सौहार्द भी देखने को मिल रहा है। मुस्लिम समुदाय के लोग भी पूरी आस्था से कांवडि़याें के लिए कांवड़ बनाने और सजाने का काम कर रहे हैं। सावन महीने में कई मुस्लिम परिवार सु्ल्तानगंज आकर कांवड़ बनाने का काम कर रहे हैं। स्टेशन रोड में मु. महमूद, नूर मुहम्मद और घाट रोड में मु. कमरू वर्षों से कांवड़ बनाने का काम करते आ रहे हैं। इनके साथ काम करने वाले लोग भी इसी कौम से आते हैं। सभी लोग पूरी आस्था से कावर सजाने का काम करते हैं।

कौम-जाति पर यहां आस्‍था है भारी
इनका मानना है कि कांवड़ के रोजगार और कांवडि़यों की सेवा से उन्हें सुकून मिलता है और कमाई भी अच्छी हो जाती है। कांवडि़या मार्ग के धौरी, जिलेबिया, सुईया आदि जगहों पर आदिवासी समुदाय, ईसाई धर्म मानने वालों के साथ-साथ मुस्लिम धर्म के लोग भी बड़ी आस्था से कांवडि़याें की सेवा में लगे रहते हैं। हमीद मियां फल के कारोबारी हैं। मु. जलील व सबा बानो कांवडि़या पथ पर सब्जियां व फल बेचती हैं। सैमून, शलील आदि भी तरह तरह के करोबार से जुड़े हैं।


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