स्वतंत्रता आंदोलन का मजबूत केंद्र रहा है कोसी का यह इलाका... 1942 के आंदोलन में छह लोग हुए थे शहीद
आजादी की लड़ाई में सहरसा का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। 29 अगस्त 1942 को पुरानी कचहरी पर तिरंगा फहराने के क्रम में छह लोगों ने अपनी शहादत देकर पूरे उत्तर बिहार के आंदोलन की आग में घी डालने का काम किया था।
जागरण संवाददाता, सहरसा। कोसी प्रभावित सहरसा जिला भौगोलिक व आर्थिक रूप से भले ही पिछड़ा रहा है, परंतु राजनीतिक रूप से यह इलाका काफी समृद्ध रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन में यह इलाका एक मजबूत केंद्र रहा। 29 अगस्त 1942 को पुरानी कचहरी पर तिरंगा फहराने के क्रम में छह लोगों ने अपनी शहादत देकर पूरे उत्तर बिहार के आंदोलन की आग में घी डालने का काम किया। जिसके बाद स्वतंत्रता संग्राम की धधकती आग में हजारों लोग कूद पड़े।
बलूची सिपाहियों को लोहे चना-चबाने को किया मजबूर
1942 के भारत छोड़ों आंदोलन में कोसी क्षेत्र के महानायकों की कुर्बानी को नजरअंदाज किया जाना आजादी की परिकल्पना ही बेमानी है। इस क्षेत्र के जवानों ने कभी पीठ नहीं दिखाया, बल्कि सीने में गोली खाकर बलूची सिपाहियों को लोहे चना- चबाने पर मजबूर कर दिया। इन अमर शहीदों की दास्तान सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं, लेकिन विडंबना है कि अमर शहीद परिवारों का आज कोई हालचाल भी लेने वाला नहीं है। अमर शहीद की स्मृति में तत्कालीन विधायक संजीव कुमार झा द्वारा स्मारक तो बनाया गया, परंतु सरकार व प्रशासन द्वारा अबतक शहीदों की स्मृति और उनके परिजनों के लिए कुछ नहीं किया गया।
पुरानी कचहरी पर झंडा फहराने के क्रम में छह लोगों ने दी शहादत
1942 में प्रारंभ हुए भारत छोड़ों आंदोलन में 29 अगस्त को वर्तमान चांदनी चौक के समीप पुरानी कचहरी पर झंडा फहराने के क्रम में ब्रिटिश पुलिस से आंदोलनकारियों का कड़ा मुकाबला हुआ। तिरंगा फहराने के क्रम में कोसी के महानायक धीरो राय, पुलकित कामत, भोला ठाकुर, कालेश्वर मंडल, केदारनाथ तिवारी व हीराकांत झा अंग्रेजी सेना की गोली के शिकार होकर शहीद हो गए। कोसी के इन महानायकों ने अंग्रेज व बलूची सिपाहियों को पुरातन हथियारों के बल पर खदेड़ दिया था। इनलोगों की शहादत के बाद भी शेष आंदोलनकारियों ने पुरानी कचहरी पर तिरंगा फहराकर दम लिया।
महानायकों की शहादत पश्चात उत्तर बिहार में धधका आंदोलन
29 अगस्त 1942 को इन छह शहीदों की शहादत ने स्वाधीनता आंदोलन की आग में घी का काम किया। इसके बाद इलाके के दर्जनों सेनानी मुखर होकर आंदोलन में कूद गए। रामबहादुर ङ्क्षसह परमेश्वर कुर्म, पंडित रमेश झा, छेदी झा द्विजवर, रामनारायण खां, बुच्ची झा, अवध नारायण खां, मौजे लाल खां, रामानंद झा, नूनूलाल मंडल समेत सैकड़ों लोगों ने आंदोलन को मुकाम पर पहुंचा कर ही दम लिया।