भागलपुर [नवनीत मिश्र]। जिस 'जात्रा' से शहर की पहचान थी, वह आर्थिक तंगी के कारण अब स्थगित हो चुकी है। इसकी शुरुआत कई महान हस्तियों ने की थी। दुर्गापूजा से महीने भर पहले से ही इसकी जोर-शोर से तैयारी होती थी। कालीबाड़ी के 75 वर्ष पूरा होने पर 2015 में अंतिम बार यहां रंगबाज बहू का मंचन किया गया था। इसके बाद से 'जात्रा' की यात्रा पर आर्थिक तंगी के कारण ब्रेक लगाने की नौबत आ गई।
1937 में हुई थी शुरुआत
गौरीशंकर चौधरी, बॉलीवुड के प्रख्यात गायक किशोर कुमार के मामा समीर कुमार बनर्जी, प्रख्यात कथाशिल्पी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय, तरुण कुमार घोष, अशोक चटर्जी आदि ने 1937 में इसकी शुरुआत की थी। यह सिलसिला 1970 तक चला। तब पुरुष ही स्त्री का किरदार निभाते थे। रामायण हो या महाभारत, जात्रा के माध्यम से इसका सजीव चित्रण होता था। 1970 से 1983 के बीच एक-दो बार स्थानीय लोगों के प्रयास के जात्रा का मंचन हुआ। 1983 से 1988 के बीच भी मंचन हुआ। इसके बाद मंचन बंद हो गया। महिला किरदार निभाने वाले पुरुष भी संकोच करने लगे।
अंतिम बार 2015 में मंचन
2001 में भागलपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी गोरेलाल यादव और एसएसपी राकेश कुमार मिश्र के प्रयास से यह फिर शुरू हुआ। 2004 तक यह लगातार चलता रहा, पर फिर बंद हो गया। तापोष घोष, रजत मुखर्जी, संख्या मुखर्जी, गुरु प्रसाद मुखर्जी, रजत दास आदि के प्रयास से जात्रा थम कर भी चल पड़ता था। इसके बाद 2015 में कालीबाड़ी के 75 वर्ष पूरा होने पर डॉ. सुजाता शर्मा, डॉ. हेमशंकर शर्मा, तापोष घोष आदि के प्रयास से रंगबाज बहू का मंचन हुआ। इसमें बांग्ला की मशहूर अदाकारा पापिया अधिकारी ने भी किरदार निभाया था।
रामायण, महाभारत से लेकर भगत सिंह तक
यहां रामायण, महाभारत, कालीघाट, गजनी का सुल्तान, भगत सिंह, औरंगजेब, बीना बादल, महेश, कोहिनूर आदि का मंचन हुआ है। कालीबाड़ी पूजा समिति के सचिव विलास कुमार बागची बताते हैं कि जात्रा के लिए बाहर से कलाकारों को मंगाना पड़ता है। लाइट, साउंड, म्यूजिक आदि का काफी खर्च है। अभी कम से कम पांच लाख रुपये खर्च होंगे। इतनी राशि की व्यवस्था नहीं हो पाने के कारण ही जात्रा का मंचन नहीं हो पा रहा है। उन्होंने बताया कि पूर्व में अफ्रीका से दिलीप चटर्जी, मुंबई से अशोक चटर्जी, गौरी शंकर चौधरी जैसे लोग प्रत्येक वर्ष जात्रा के मंचन के लिए यहां आते थे।
आवाज रखती है मायने
देव ज्योति मुखर्जी कहते हैं कि जात्रा में आवाज बहुत मायने रखती है। इसमें निमाई चंद्र बनर्जी, बिलास कुमार बागची, सुबोध बनर्जी, दीनानाथ मुखर्जी, दीपांकर मजूमदार, कल्याण घोष, टुकटुक दा, तापस घोष, पिरूपम कांति पाल आदि बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। स्टेज के नीचे प्रोम्पटर की भूमिका गौतम सरकार, चुनचुन लाहिरी आदि निभाते थे। जात्रा बंगाली संस्कृति और परंपरा का वह नाट्य मंचन है, जिसमें मंच तीन ओर से खुला रहता है।
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