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फ्लाईओवर के नीचे बीतती थी रात, स्रवरोजगार से पूरा हुआ छत का आस

लॉकडाउन ने जीने का तरीका बदल दिया। रोजी-रोटी के लिए परदेश का चक्कर काटने वाले लोग लॉकडाउन में लौटने के बाद अपने हुनर को साबित किया। प्रखंड के शाहपुर के बमबम दास ने यह साबित कर दिया कि गांव में भी रहकर गरीबी को मात दी जा सकती है।

By Amrendra kumar TiwariEdited By: Published: Sun, 03 Jan 2021 01:37 PM (IST)Updated: Sun, 03 Jan 2021 01:37 PM (IST)
फ्लाईओवर के नीचे बीतती थी रात, स्रवरोजगार से पूरा हुआ छत का आस
मुंबई दिल्ली से लौटकर गांव में छोटी दुकान खोलकर दी गरीबी को मात

सहरसा [ राजेश राय पप्पू]  । कोरोना को लेकर हुए लॉकडाउन ने कई के जीने का तरीका बदल दिया। रोजी-रोटी के लिए परदेश का चक्कर काटने वाले लोग लॉकडाउन में लौटने के बाद अपने हुनर को साबित किया। इसी कड़ी में प्रखंड के शाहपुर के बमबम दास ने यह साबित कर दिया कि गांव में भी रहकर गरीबी को मात दी जा सकती है। उन्होंने छोटी सी दुकान खोलकर अपने व अपने परिवार का भरण-पोषण ही नहीं कर रहे हैं बल्कि सम्मानजनक ङ्क्षजदगी जीने लगे हैं।

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मुंबई की फ्लाईओवर के नीचे गुजारती थी रात

शाहपुर के बमबम बताते हैं कि वे मुंबई में मजदूरी किया करते थे। दिन भर मेहनत मजदूरी के बाद रात में फ्लाईओवर के नीचे रात काटनी पड़ती थी। किसी तरह परिवार का पेट भर पाता था। मुंबई के भैयावाड़ी के झोपड़पट्टी में ङ्क्षजदगी को किसी तरह काट रहे थे। कोरोना के शुरुआती दिनों में वहां से भागकर दिल्ली आ गये। शास्त्री पार्क के झौपड़पट्टी में रहकर पुरानी दिल्ली में काम करने लगे। कुछ दिन के बाद दिल्ली से लोगों का पलायन होने लगा तो वो भी गांव वापस आ गये। बमबम के लिए परिवार का गुजारा करना मुश्किल हो गया। शहर की भागदौड़ की ङ्क्षजदगी और कोरोना को लेकर परिवार से मिलने में होने वाली परेशानी के बाद ठान लिया कि वापस शहर नहीं जाऊंगा। उसने लोगों से कर्ज लेकर व खुद का इक_ा किया हुआ 50 हजार की पूंजी से स्टेशनरी व किराना के छोटे दुकान की शुरुआत की। आज उसी कारोबार के बदौलत दुकान में पूंजी बढ़ाया व सुकून की ङ्क्षजदगी जीने लगा है।

पूरा हुआ अपना आशियाना का सपना

मुंबई में मेहनत मजदूरी करने के बाद भी किसी तरह परिवार का रोटी का जुगाड़ हो पाता था । अपना छत नसीब नहीं था। कोरोना के कारण शहर से गांव लौटने के बाद कुछ दिन तो यूं ही भटकता रहा । उसके बाद महाजनों एवं स्वजनों से लिए कर्ज के बल पर शाहपुर बाजार में स्टेशनरी का दुकान खड़ा किया। कुछ ही माह के दुकानदारी से लोगों का कर्ज लौटाया । परिवार को छत मुहैया करा सका ताकि वे बारिश, ठंड, धूप में सुरक्षित रह सकें।

बच्चों को दिलवा रहा शिक्षा

स्टेशनरी कारोबार से न केवल अपने परिवार का सम्मान के साथ गुजारा कर रहा है बल्कि अपनी तीन बेटी को बेहतर शिक्षा भी दिला रहा है। गांव में ट््यूशन पढ़ाने वाले शिक्षक अनिल कुमार घर पर आकर बच्चों को पढ़ाते हैं । वर्ग चार में पढऩे वाली पुत्री चांदनी कुमारी कहती है कि जबसे पापा यहां रहने लगे हैं हम लोग बहुत खुश हैं। हम लोगों की सभी जरूरतें पूरा करते हैं ।


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