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कोसी के गांव का बदल जाता है ठिकाना, यहां अपना मायका ढूंढ़ती है बेटियां

सहरसा में कई गांवों की यह त्रासदी है कि कोसी नदी में बाढ़ के कारण गांवों का नक्‍शा ही बदल जाता है। इस कारण ससुराल के आने वाली बेटियों को अपना घर ढूंढना पड़ता है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Wed, 12 Aug 2020 02:02 PM (IST)Updated: Wed, 12 Aug 2020 02:02 PM (IST)
कोसी के गांव का बदल जाता है ठिकाना, यहां अपना मायका ढूंढ़ती है बेटियां
कोसी के गांव का बदल जाता है ठिकाना, यहां अपना मायका ढूंढ़ती है बेटियां

सहरसा [कुंदन]। बेटियों को अपना मायका बड़ा प्रिय होता है। मायके से जुड़ी हर याद वो भुला नहीं पाती है। इसलिए जब भी मौका मिलता है वो खुशी-खुशी मायके जरूर आती हैं। बेटियों को मायके का पता नहीं पूछना पड़ता है। लेकिन कोसी के इलाके में बेटियों को अपने मायके का पता पूछकर आना पड़ता है। दरअसल कोसी हर साल तटबंध के अंदर गांव का भूगोल बदल देती है।

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यह कहानी साल दर साल से बदस्तूर चल रही है। जब से दो तटबंधों के बीच कोसी बांध दी गयी उस वक्त से यह किस्सा शुरू हुआ वो आज भी जारी है। बरसात या बरसात के बाद जब भी बेटियां अपने मायके आती हैं तो जरूरी नहीं है वो उसी घर जाएंगी जहां वो बीते समय से विदा हुई थी। हर साल कटाव व विस्थापन इस इलाके की नियति है। यही कारण है कि तटबंध के अंदर इन गांवों का भूगोल व इतिहास बदलती है। बीते चार दशक में कोसी ने तटबंध के अंदर दर्जनों गांव का मिटा दिया अस्तित्व।

तटबंध के अंदर लगभग एक दर्जन ऐसे गांव हैं जिसका इतिहास व भूगोल बीते तीन दशक में बदल गया। आज भी कई गांव ऐसे हैं जो मोबाइल बने हैं। कटाव व विस्थापन के कारण इन गांवों के इतिहास भी समाप्त हो गये।

गांव खोजने में होती है कठिनाई

तटबंध के अंदर बसने वाले लोगों के रिश्तेदार भी परेशान होते हैं। दरअसल बाढ़ के बाद जब तटबंध के बाहर रहने वाले लोग अपने रिश्तेदारों का हाल जानने पहुंचते हैं तो उनके संबंधी का घर नहीं मिल पाता है। डरहार पंचायत के महुआ बस्ती के भूपेंद्र यादव बताते हैं कि मोबाइल के आ जाने से यह परेशानी कम हुई है।  लेकिन अब भी नाव लेकर इस टोले तो उस टोले घर खोजना पड़ता है। वो बताते हैं कि चार साल पहले उनका घर तीन किलोमीटर उत्तर में था। लेकिन कटाव में दस घर विलीन हो गए। उसके बाद नदी से तीन किलोमीटर दक्षिण बसे। इस बाद फिर कटाव लगा है। 

इसी प्रकार सलखुआ प्रखंड के उटेसरा पंचायत अंतर्गत पिपरा गांव में अब मात्र हजार-बारह सौ की आबादी मिलती है। यह गांव कभी पांच हजार से अधिक की थी। लेकिन तीन-तीन बार विस्थापित हुआ यह गांव कई खंडों में बंट गया। आज की तारीख में अधिकांश ग्रामीण तटबंध व स्पर पर रहने को मजबूर हैं।

वैसे गांव जिनका बदल गया भूगोल

सलखुआ प्रखंड

1. पिपरा गांव

2. कमराडीह

3. डेंगराही

महिषी प्रखंड

1. पोठिया

2. राजनपुर

3. वीरवार

नवहट्टा प्रखंड

1. हाटी

2. पहाड़पुर

3. धोबियाही

4. केदली

5. रामपुर

6. हेमपुर

7. बगहा खाल


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