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धरा नहीं हुई हरा, योजना से जुड़े लोग हुए हरा-भरा, जानिए... सुपौल की इस योजना का हाल

सुपौल जिले में पौधारोपण की योजना बेहतर ढंग से धरातल पर नहीं उतर पाई। इस योजना की कई विसंगतियों ने इसे जहां ठेंगा दिखाया वहीं इससे जुड़े लोग हरा भरा भी होते रहे। दरअसल सरकार ने इस अभियान में वन विभाग तथा मनरेगा को विशेष रूप से जवाबदेह बनाया है।

By Amrendra TiwariEdited By: Published: Tue, 01 Dec 2020 05:45 PM (IST)Updated: Tue, 01 Dec 2020 05:45 PM (IST)
धरा नहीं हुई हरा, योजना से जुड़े लोग हुए हरा-भरा, जानिए... सुपौल की इस योजना का हाल
सुपौल जिला में पौधारोपण का हाल बेहाल

सुपौल, जेएनएन। पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकारी योजनाओं के अलावा निजी तौर पर भी लोगों को प्रोत्साहित किए जाने का फैसला लिया गया परंतु पौधारोपण को बढ़ावा के लिए सरकार ने जो नीतियां बनाई उसमें कुछ ऐसी विसंगतियां है जो योजना को आगे बढऩे में बाधक बनी है। दरअसल सरकार ने इस अभियान की जड़ में मुख्य रूप से वन विभाग तथा मनरेगा को विशेष रूप से जवाबदेह बनाया गया। खासकर मनरेगा के तहत हरियाली फैलाने वाली इस योजना की नीतियों में कुछ ऐसी कमी है जिसके कारण योजना से जुड़े लोग हरा-भरा होते रहे।

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मनरेगा से भी नहीं फैलाई जा सकी हरियाली  

सरकार ने पौधारोपण अभियान को जमीनी स्तर पर उतारने के लिए पंचायतों में संचालित रोजगारपरक योजना मनरेगा से इस अभियान को जोड़ दिया। मकसद था कि इस योजना का अपना मूल उद्देश्य भी पूरा हो तथा धरती की हरियाली भी लौट सके। नियमानुसार हर वर्ष योजना के तहत जिले को पौधे लगाने का लक्ष्य दिया जाता है। जिस लक्ष्य को पूरा तो कर लिया जाता है परंतु उचित देखभाल के अभाव में कुछ दिनों के बाद उसका वजूद समाप्त हो जाता है। जबकि योजना के तहत लगाए गए पौधों की देखभाल के लिए एक पोषक भी बहाल किए जाने का प्रावधान है। जिन्हें मनरेगा के तहत 196 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से तीन वर्ष तक मजदूरी दी जाती है परंतु योजना के कर्ता-धर्ता ऐसे लोगों को एक पोषक के रूप में बाहल कर देते हैं जो उनके इशारे पर काम करता हो। परिणाम होता है कि देखभाल के अभाव में पौधे सूख जाते हैं। इतना ही नहीं सार्वजनिक जगहों पर लगे पौधे की सुरक्षा भी भगवान भरोसे रह जाती है। दूसरी तरफ मनरेगा के द्वारा चलाई गई यह योजना लाख कोशिश के बाद भी सामाजिक योजना का रूप नहीं ले पाई है। परिणाम रहा है कि योजना के नाम पर राशि तो खर्च की जाती है लेकिन हरियाली नहीं फैलाई जा सकी है।

वन विभाग की योजनाओं में भी है कई विसंगतियां

हाल के दिनों में सरकार ने पौधरोपण योजना को बढ़ावा देने के लिए कृषि वानिकी योजना की शुरुआत की है। योजना के तहत किसानों के मेड़ पर पौधरोपण कर प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है। लगा कि इस योजना के तहत जिले में वन क्षेत्रों का रकबा निश्चित ही बढ़ जाएगा परंतु योजना का लाभ लेने के लिए जो प्रक्रिया है वह लगाने से भी कठिन है। लोगों को वन विभाग के कार्यालय का चक्कर लगाने की व्यवस्था इस से मुंह मोडऩे को मजबूर कर रहा है। परिणाम है कि जिले के एक क्षेत्रफल के खेतों की मेड़ पर भी आज तक पौधरोपण नहीं संभव हो पाया है।

पौधरोपण को सामाजिक सरोकार बनाने की है जरूरत

वनस्पति विज्ञान के प्रो. डॉ. केके सिंह ने बताया कि किसी भी अभियान की सफलता तब मानी जाती है जब वह अभियान सामाजिक अभियान, वन पर्यावरण से जुड़े पौधरोपण अभियान को भी सामाजिक बनाने की जरूरत है। यह तब संभव है जब आम लोगों के बीच जागरूकता के साथ-साथ प्रावधान को लचीला बनाया जाए। जो हाल पौधरोपण अभियान में कई ऐसी विसंगतियां हैं जिन्हें न सिर्फ बदलने की जरूरत है, बल्कि योजना से जुड़े अधिकारियों, कर्मियों के अलावा आम लोगों को जिम्मेवार बनाए जाने की भी जरूरत है। कहा कि पौधरोपण के साथ-साथ उनके संरक्षण के प्रति लोगों को जवाबदेह बनाए जाने के बाद ही यह अभियान धरती की हरियाली को लौटा सकता है।


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