खुद सारी जमीन पर बाग लगा डा. विनय दूसरे को भी पर्यावरण संरक्षण के लिए कर रहे प्रेरित
कदवा प्रखंड के नुनगरा गांव निवासी डा. विनय कुमार झा पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गए हैं। पेशे से चिकित्सक होने के बाद भी वे धरा को हरा करने में लगे हैं। डॉ विनय के जुनून में उनके पत्नी का भी सहयोग है।
कटिहार [संजीव मिश्रा] कदवा प्रखंड के नुनगरा गांव निवासी डा. विनय कुमार झा पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गए हैं। अपनी पूरी जमीन पर बाग लगाकर वे लोगों को भी पौधारोपण के लिए लगातार प्रेरित कर रहे हैं। बाग के बीच-बीच तलाब खुदवाकर जल संरक्षण की दिशा में भी वे अहम भागीदारी निभा रहे हैं। इतना ही नहीं आसपास के लोगों को भी वे इसके लिए प्रेरित करते रहे हैं और उनकी प्रेरणा से कई और लोग भी बाग-बगीचा लगा रहे हैं। डा. झा गत सात वर्षों से पर्यावरण संरक्षण के अभियान में लगे हैं। आज उनके द्वारा लगाया गया बगीचा मूर्त रुप ले लिया है। अब तक उन्होंने अपनी लगभग छह एकड़ जमीन पर पोखर की खुदाई कर विभिन्न प्रजाति के हजारों पेड़ लगा चुके हैं।
बरकरार है पौधारोपण का जुनून
बावजूद पौधा लगाने की जिजीविषा कम नहीं हुई है। जहां कहीं खाली जमीन नजर आता है, वहां पौधा लगा देते हैं। इनके द्वारा किया गया पौधा रोपण जो अब बगीचे का रुप ले लिया है जो देखते बनती है। सुसज्जित ढंग से किया गया पौधारोपण लोगों की निगाहें बरबस खींच लेती है। श्री झा दिल्ली के प्रसिद्ध सर्जन हैं, लेकिन उम्र के पड़ाव पर आने के बाद अपना पेशा छोड़ कर प्रकृति से प्रेम करने लगे हैं। बागवानी के प्रति उनकी ऐसी दीवानगी है कि वर्ष में दो बार एक एक माह के लिए यहां पहुंच कर पौधों की देखरेख अपनी निगरानी में करते हैं। पौधों की निराई, मिट्टी चढ़ाई, पटवन, तना में चूना लगाना सहित अन्य कार्य करते हैं। बाकी के समय अपने कामगार से मोबाइल से पौधे की देखरेख के साथ अन्य कार्य कराते हैं।
बीते सात वर्षो से कर रहे पौधारोपण
उन्होंने सात वर्ष पूर्व नूनगरा में अपनी खेतीबाड़ी की जमीन पर पौधा रोपण कार्य शुरु किया था। उस समय मुजफरपुर से शाही लीची सहित आम, मोहगनी, सागवान आदि का पौधा लाकर इसकी शुरुआत किया। बाद में जमीन पर पोखर की खुदाई कर जल संरक्षण के साथ उसके ऊपर बागवानी किया। लगातार प्रति वर्ष विभिन्न फलदार एवं गैर फलदार पौधों को लगाते रहे। आज उनका छह एकड़ में फैला बगीचा लहलहा उठा है। गत दो वर्षों से इसमें फल भी लगने लगा है। उनके बगीचे में स्थित तीन पोखर में मत्स्य पालन के साथ जल संरक्षण का कार्य हो रहा है। इस कार्य मे उनकी धर्मपत्नी नीलिमा झा का भी भरपूर सहयोग मिलता है। छुट्टी के दिनों में बगीचे की सैर का साथ वे लोग फिसिंग का आनंद लेते हैं ।
दर्जनों प्रजाति का है फलदार वृक्ष
उनके बगीचे में मालदह, जर्दालु, बम्बई, मल्लिका, लालमोहन, आम्रपाली, नवरस, बरमसिया सहित कई प्रजाति के सैकड़ों की संख्या में आम के वृक्ष के साथ लीची, जामुन, कटहल, चीकू, केला, अमरुद, रुद्राक्ष, बेल सहित सैकड़ों की संख्या में मोहगनी, एनसाल, सागवान, शीशम सहित कई प्रकार का पेड़ लहलहा रहा है द्य इसके अलावा भी कई अन्य प्रकार के वृक्ष लगे हुए हैं।
क्या कहते हैं डा. झा
इस संबंध में किसान डा. झा ने कहा कि मनुष्य को प्रकृति के संग समय व्यतीत करना चाहिए। इससे असीम शांति मिलती है द्य साथ हीं पौधरोपण कर लोगों द्वारा प्रकृति के साथ की गई खिलवाड़ की भरपाई जरुरी है द्य आज का पौधारोपण आने वाली पीढ़ी के लिए शुद्ध पर्यावरण का आधार होगा। प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में पौधारोपण करना चाहिए।