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विदेशों में मांग बढ़ी तो किशनगंज की चायपत्ती की कीमतों में आया उछाल किशनगंज

बिहार को चाय उत्पादक राज्यों में शुमार करने वाले किशनगंज जिले में लगभग 25 हजार हेक्टेयर में चाय की खेती हो रही है। इसमें 10 हजार किसान व 50 हजार श्रमिक सीधे तौर पर जुड़े हैं।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Tue, 01 Sep 2020 01:19 PM (IST)Updated: Tue, 01 Sep 2020 01:19 PM (IST)
विदेशों में मांग बढ़ी तो किशनगंज की चायपत्ती की कीमतों में आया उछाल किशनगंज
विदेशों में मांग बढ़ी तो किशनगंज की चायपत्ती की कीमतों में आया उछाल किशनगंज

किशनगंज, जेएनएन। इम्यूनिटी बढ़ाने में कारगर मानी जाने वाली ग्रीन व ब्लैक टी की कोरोना काल में देश-विदेश में मांग बढऩे से उसकी कीमत में उछाल आ गई है। इससे यहां के चाय उत्पादन में वृद्धि हुई है। वहीं किसानों की आय में भी बढ़ोतरी देखी जा रही है। पहले जहां किशनगंज में उत्पादित चाय की पत्ती तोड़कर किसान औसतन 10-12 रुपये प्रति किलो की दर से चाय मिल को बेचते थे। वहीं कोरोना काल में यह दर चार गुनी बढ़कर 40-45 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुकी है। टी बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि कोविड-19 के कारण चीन से विश्व के कुछ देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते खराब होने से उन्होंने चीन से चाय का निर्यात पहले से कम कर दिया है। इससे भारत की चाय की मांग बढ़ी है। इसका देश के अन्य चाय बागानों सहित किशनगंज के चाय उद्योग पर सकारात्मक असर देखा जा रहा है। इसका फायदा भारत के चाय उत्पादक किसानों को भी हो रहा है। चाय पत्ती की दर बढऩे से किसानों की सक्रियता बढ़ गई है। इनदिनों वे पहले की तुलना में अधिक चाय की पत्तियां तोड़ कर फैक्ट्रियों में पहुंचा रहे हैं। इसके एवज में वे अधिक कीमत प्राप्त कर रहे हैं।

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निर्यात बढऩे से बढ़ी भारतीय चाय की मांग

चीन के साथ गलवन घाटी में हुई झड़प के बाद से भारत-चीन के रिश्तों में कड़वाहट आई है। साथ ही चीन के नगर से कोविड-19 के वायरस के फैलने और उसके महामारी का रूप धारण करने से उसके साथ कई देशों के रिश्ते प्रभावित हुए हैं। कई देशों ने चीन से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में कटौती कर दी है। चाय पर भी इसका असर देखा जा रहा है। चीन विश्व में चाय का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला देश है। लेकिन इस समय बदले हुए परिदृश्य में वहां की चाय कुछ गिने चुने देशों में ही निर्यात की जा रह है। लिहाजा विदेशों में भारत की चाय की मांग बढ़ रही है। टी बॉर्ड ऑफ इंडिया के चाय विकास पदाधिकारी विकास कुमार भी ऐसा ही मानते हैं। उनका कहना है कि चाय उद्योग में आए इस सकारात्मक बदलाव से उसकी गुणवत्ता में भी सुधार आया है।

25 हजार हेक्टेयर में हो रही खेती, 10 हजार किसानों को मिलेगा लाभ

बिहार को चाय उत्पादक राज्यों में शुमार करने वाले किशनगंज जिले में लगभग 25 हजार हेक्टेयर में चाय की खेती हो रही है। इसमें 10 हजार किसान व 50 हजार श्रमिक सीधे तौर पर जुड़े हैं। किसान सुबोध शंकर ङ्क्षसह बताते हैं कि वे लोग करीब 20 वर्षों से चाय की खेती कर रहे हैं। लेकिन चायपत्ती की दर में इतनी उछाल कभी नहीं देखी गई थी। इस क्षेत्र में मार्च से सितंबर के बीच चाय का ज्यादा उत्पादन होता है। लेकिन पूर्व में इसके कामगारों को उसकी दर कम मिलती थी। लेकिन इस वक्त उन्हें चाय पत्तियों की दर पांच गुने ज्यादा हासिल हो रही है। पहले यदा-कदा ही लागत से थोड़ा-बहुत लाभ मिलता था। इसी तरह मांग कम रहने से कभी-कभी इसकी दर इतनी गिर जाती थी कि लागत खर्च भी नहीं निकल पाता था। ऐसे में मौजूदा बदलाव चाय के किसानों, मिल मालिकों सहित पूरे उद्योग के लिए समग्रता से लाभकारी सिद्ध हो रहा है।


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