नए ऑर्डर नहीं, पुराना माल डंप, सिसक रही सिल्क इंडस्ट्री, ऑडर भी कैंसिल
भागलपुर में रेशमी उद्योग और इससे जुड़े लोगों की स्थिति खराब हो गई है। व्यापारियों को कर्ज चुकाना भी मुश्किल हो रहा। प. बंगाल सरकार ने भी माल देरी से मिलने पर ऑर्डर कैंसिल कर दिया।
भागलपुर [जीतेंद्र कुमार]। भागलपुर की विख्यात सिल्क इंडस्ट्री सिसक रही है। उम्मीदें टूट रही हैं, कर्ज चुकाना मुश्किल हो रहा है। कमाई की बात तो दीगर है। नए ऑर्डर की बाद तो दूर, पुराने भी कैंसिल कर दिए जा रहे हैं। लॉकडाउन के बीच पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री कार्यालय के भागलपुर के कपड़ा व्यवसायी को 80 हजार स्टॉल का ऑर्डर मिला, लेकिन वह भी कैंसिल हो गया। स्थानीय व्यवसायी निरंजन कुमार पोद्दार ने बताया कि 14 मई को कुरियर से माल भेजा था, पर वह 15 दिनों में कोलकाता पहुंचा। पश्चिम बंगाल सरकार से ईद में स्टॉल वितरण के लिए ऑर्डर मिला था, लेकिन माल पहुंचने में देरी की वजह से उसे वापस कर दिया। इससे काफी नुकसान हुआ। यहां तक कि बुनकरों को भी मजदूरी का भुगतान नहीं कर सके। अभी माल गोदाम में पड़ा है। विदेशों से भी ऑर्डर नहीं मिल रहा है।
700 कपड़ा व्यवसायी बेहाल
जिले के सात सौ से अधिक छोटे-बड़े कपड़ा व्यवसायियों को देश-विदेश के व्यापारियों से सीधा संपर्क है। लेकिन आर्डर के अभाव में कारोबार ठप है। किसी का दो लाख तो किसी का 90 लाख का माल गोदाम व ट्रांसपोर्ट में फंसा हुआ है। एक्पोर्टरों ने बाजार खुलने तक माल लेने से इन्कार कर दिया है। इस वजह से कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर, कानपुर, चेन्नई व विदेशों में श्रीलंका, बांग्लादेश, यूरोप, अमेरिका, जापान आदि तक माल नहीं जा रहा है। जो ऑर्डर जनवरी में मिला था, वह यूं ही पड़ा है। हवाई सेवा बंद हो जाने से सारा माल फंस गया है।
पारवलूम से ताना उतारने को विवश बुनकर
सिल्क सिटी के 80 हजार बुनकर व्यवसायी व महाजनों के दिए गए धागे से ही कपड़ा तैयार करते हैं। इसके बदले बुनकरों को 20 रुपये प्रति मीटर की दर से बुनाई के पैसे मिलते हैं। लॉकडाउन के दौरान काम बंद करा दिया गया। अब वे उनसे पारवलूम पर चढ़ा ताना भी उतारने को कह रहे हैं। बुनकरों ने कई जगहों पर ताना काटकर रख भी दिया है। ऐसे में 25 हजार पावरलूम पूरी तरह ठप हैं। कुछ बुनकरों ने थोड़ी पूंजी लगाकर कपड़ा तैयार किया, पर उसके खरीदार नहीं हैं।
यह भी है समस्या
मुंबई व कोलकाता में धागा फैक्ट्री बंद होने का भी कपड़ा उत्पादन पर असर पड़ा है। धागे की आपूर्ति नहीं होने से स्थानीय बाजार में 2700 रुपये प्रति किलोग्राम का धागा 3500 रुपये में बेचा जा रहा है। इससे लागत बढ़ गई है।
सरकार करे सहयोग तो बढ़ेगा रोजगार
बुनकर क्रेडिट कार्ड तो मिला है, पर प्रधानमंत्री मुद्रा योजना से बैंकों से ऋण नहीं मिल पा रहा है। मु. अफजल कहते हैं कि 2019 का बकाया पैसा भी एक्सपोर्ट नहीं दे रहे हैं। व्यवसायी को सरकार पूंजी उपलब्ध करा दे तो लाभ होगा। एक्सपोर्टर निरंजन कुमार पोद्दार कहते हैं कि विदेशों से कपड़ों का आर्डर नहीं मिल रहा है। अपने यहां के एक्सपोर्ट आर्डर कैंसिल कर रहे हैं। अब बाजार खुलेगा, तभी कपड़ा उत्पादन का रोजगार आगे बढ़ेगा। मु. असलम कहते हैं कि महाजन धागा नहीं दे रहे हैं। वे ताना उतारने को कह रहे हैं। ऐसी स्थिति में तो रोजगार छोडऩा ही होगा।