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मेयर की पगड़ी के लिए दो देवियों के बीच जंग का गवाह रहा पूर्णिया निगम निगम, इस तरह चल रहा शह-मात का खेल

मेयर की कुर्सी के लिए पूर्णिया नगर निगम में पिछले पांच साल से जंग चल रहा है। इस दौरान कुर्सी की अदला-बदली भी हुई लेकिन शहर का विकास नहीं हो सका। कई स्‍तरों पर काम भी बाधित हो...!

By Abhishek KumarEdited By: Published: Sat, 24 Jul 2021 11:25 AM (IST)Updated: Sat, 24 Jul 2021 11:25 AM (IST)
मेयर की पगड़ी के लिए दो देवियों के बीच जंग का गवाह रहा पूर्णिया निगम निगम, इस तरह चल रहा शह-मात का खेल
मेयर की कुर्सी के लिए पूर्णिया नगर निगम में पिछले पांच साल से जंग चल रहा है।

जासं, पूर्णिया। नगर निगम बोर्ड का वर्ष 2016-21 तक का कार्यकाल दो देवियों के बीच सियासी जंग का गवाह रहा। जिले की राजनीति में इन दोनों देवियों की सशक्त पदार्पण के साथ शह-मात की खेल का चरम भी रहा। दिलचस्प यह भी रहा कि महापौर का पगड़ी जरुर अदला-बदली हुई लेकिन दलीय हैसियत में जदयू सिरमौर रहा। इस कार्यकाल में बोर्ड की कुल 16 व सशक्त स्थाई समिति की 38 बैठकें हुई थी।

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पहले विभा तो फिर सविता बनी महापौर

नगर निगम बोर्ड का कार्यकाल 27-06-2016 से लेकर 26-06-2021 तक का रहा। इस कार्यकाल में सबसे पहले मेयर की कुर्सी पर विभा कुमारी आसीन हुई। विभा कुमारी इस चुनाव से पूर्व तक सियासी गलियारों में अंजान चेहरा थी। यद्यपि उनके पति जितेंद्र यादव जदयू के नेता हैं, लेकिन राजनीति में विभा देवी की यह जोरदार इंट्री थी। वे 27-07-2018 तक इस कुर्सी पर रही। बाद में इसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया और यह विशेष बैठक में पास हो गया। तकरीबन एक माह की गहमागहमी के बाद 24-08-18 को सविता देवी के सिर महापौर की ताज सजी। सविता देवी भी सियासी लिहाज से इस पद के पहले तक अंजान चेहरा थी। वार्ड पार्षद के रुप में उनकी पहचान थी। उनके पति प्रताप ङ्क्षसह का जुड़ाव भी जदयू से है। वे बोर्ड भंग होने तक यानि 26-06-21 तक इस पद पर आसीन रही। विकास को लेकर भी दोनों के अपने अपने दावे रहे। इन दावों के बीच दोनों को इस कार्यकाल ने एक नई पहचान दी।

सत्ता परिवर्तन को लेकर सूर्खियों में रहा था पूर्णिया नगर निगम

दरअसल विभा देवी का महापौर से हटना व फिर सविता देवी का इस पद पर कायम होना किसी भी मायने में सामान्य घटना नहीं थी। अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के बाद इस पद के लिए हुए चुनाव को लेकर 15 दिनों तक शहर का सियासी तापमान चरम पर रहा। चुनाव के दिन नगर निगम परिक्षेत्र पुलिस छावनी में तब्दील था। इसको लेकर उत्पन्न विवाद थाना तक पहुंच गया था। यानि बोर्ड का पूरे पांच साल का कार्यकाल सियासी तानातानी के बीच ही बीता।

होनी थी बोर्ड की 60 बैठकें मगर हुई महज 16 बैठक

तय अधिनियम के अनुसार नगर निगम बोर्ड की मासिक बैठक होनी चाहिए थी, लेकिन पूरे पांच साल में बोर्ड की महज 16 बैठके ही हो पाई। इसमें विभा देवी के कार्यकाल में बोर्ड की आठ तो सशक्त स्थायी समिति की 15 बैठकें हुई। इसके अलावा सविता देवी के कार्यकाल में बोर्ड की आठ तो स्थायी समिति की 23 बैठकें हुई।

सवाल उठाने में अव्वल रही सरिता राय

इस पूरे कार्यकाल में वार्ड 22 की पार्षद सरिता राय सवाल उठाने में अव्वल स्थान पर रही। बोर्ड की बैठकों में उन्होंने इस पांच साल के दौरान विभिन्न ङ्क्षबदुओं पर कुल 56 सवाल उठाए। अच्छी बात यह रही कि उनके अधिकांश सवालों को प्रस्ताव में समाहित भी किया गया। बता दें कि लगातार दो दशक से सरिता राय अपने वार्ड का लगातार प्रतिनिधित्व कर रही है।


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