तारापुर विधानसभा उपचुनाव: निर्दलीय राजेश मिश्रा के एक तिहाई भी वोट नहीं ला पाए कांग्रेसी राजेश मिश्रा
तारापुर विधानसभा उपचुनाव बिहार में हुए विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही। तारापुर से कांग्रेस के प्रत्याशी राजेश मिश्रा थे। उन्हें मात्र 3570 वोट मिले। जबकि उन्हीं को वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 11 हजार वोट मिले थे।
भागलपुर [शंकर दयाल मिश्रा]। जिस राजेश मिश्रा ने करीब एक वर्ष पहले अपने दम पर 11 हजार के करीब वोट हासिल किया वही राजेश मिश्रा कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर महज 3570 वोट ही ला सके। यानी कांग्रेस में आने पर राजेश अपनी निजी जनाधार करीब तीन गुणा कमतर हो गए। मंथन इस बात पर कि राजेश का अपनी लोकप्रियता का ग्राफ पहले से गिरा या कांग्रेस का बेस वोट तारापुर विधानसभा क्षेत्र में महज कुछ हजार ही रह गया है।
बिहार के मुंगेर जिले का तारापुर विधानसभा क्षेत्र। यह कभी कांग्रेस का गढ़ माना गया। हालांकि चुनावी राजनीति में उसे चुनौती हमेशा मिलती रही। 1995 के बाद यहां के वोटर कांग्रेस से विमुख हुए कि पार्टी आज तक उबर ही नहीं पाई है। सूबे में एक तरह से राजद की बैसाखी पर टिकी कांग्रेस के हिस्से से ही यह विधानसभा क्षेत्र जाता रहा। अभी चंद दिनों पहले हुए उपचुनाव में करीब दो दशक बाद पार्टी अपने बूते मैदान पर उतरी तो औंधे मुंह गिरी। स्थिति यह कि कांग्रेस यहां पर लोजपा (रामविलास) के उम्मीदवार से भी करीब दो हजार वोट से पिछड़ गई। जबकि कांग्रेस और लोजपा के उम्मीदवार की बात करें तो कांग्रेस ने अपेक्षाकृत काफी मजबूत उम्मीदवार यहां मैदान में उतारा था।
चुनाव प्रचार के वक्त तो कहा यह भी जा रहा था कि लोजपा के उम्मीदवार को बहुत वोटर तो जानते भी नहीं हैं। ऐसे में लोजपा (रामविलास) संगठन के हिसाब से कांग्रेस और उसके उम्मीदवार पर भारी पड़ा। जबकि राजनीतिक विश्लेषक तो यहां तक कहने लगे कि कांग्रेस की अपनी हैसियत का पता तो चला। विश्लेषकों का टिप्पणी कुशेश्वर स्थान सीट के लिए उपचुनाव में कांग्रेस को मिले वोट से जोड़ते हुए भी है।
बहरहाल, तारापुर पर कांग्रेस के इतने खराब हश्र की उम्मीद न तो पार्टी के प्रदेश स्तरीय नीति-निर्धारकों की रही होगी न ही उम्मीदवार राजेश मिश्रा को। अमेरिका में किसी बड़ी कंपनी में बहुत मोटी पगार पर काम करने वाले राजेश मिश्रा पांच से अधिक वर्षों से तारापुर में अपनी सामाजिक-राजनीतिक जमीन तैयार करने में लगे हैं। दो-तीन वर्ष पूर्व उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा था। बीते विधानसभा चुनाव में यह सीट गठबंधन के तहत राजद के हिस्से गई तो यह राजेश इस सीट पर निर्दलीय मैदान में उतर गए।
उन्हें तब 11,365 वोट मिला। यह एक सम्मानजनक संख्या मानी जा सकती है। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो इस सीट पर उपचुनाव में जब कांग्रेस राजद से अलग हुई तो राजेश को टिकट देकर कांग्रेस ने एक साथ कई निशाने साधे। एक तो राजेश मिश्रा जैसे पुराने और मजबूत साथी की वापसी और दूसरी अपनी खाई जमीन पाने की फिराक। पार्टी के राजनीतिक जोड़-घटाव करने वाले ने स्थानीय नीति-निर्धारकों को समझाया होगा कि राजेश का अपना बेस वोट और कांग्रेस का अपना बेस वोट...! जीत गए तो बल्ले-बल्ले और नहीं जीते तो इतना तो वोट हो ही जाएगा कि आने वाले चुनावों में कांग्रेस की मजबूत दावेदारी की जा सकेगी।
कुछ ऐसी ही समझ राजेश मिश्रा और उनके वोट मैनेजरों की भी होगी। लेकिन उपचुनाव के रिजल्ट ने सब गड्डमड्ड कर दिया। अब तय करना मुश्किल है कि प्राप्त वोट को कांग्रेस का बेस वोट कहें या राजेश मिश्रा का। वैसे इस चुनाव में दोनों मिलकर एक यूनिट यानी कांग्रेस ही थे लेकिन विश्लेषण में अगर बराबरी पर बंटवारे की नौबत आई तो दोनों का बेस वोट भी दो हजार से नीचे मानना पड़ जाएगा।