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एक पार्टी में दो-दो सदस्यता प्रभारी, कार्यकर्ता परेशान Bhagalpur News

दोनों प्रभारी ने कितने सदस्य बनाएं यह फैसला तो बाद में होगा। पर अभी जो खलबली मची हुई है उसका क्या। भले ही ऊपर से सबकुछ अनुशासित दिख रहा है पर अंदरखाने में ऑल इज वेल नहीं है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Mon, 12 Aug 2019 10:07 AM (IST)Updated: Mon, 12 Aug 2019 10:07 AM (IST)
एक पार्टी में दो-दो सदस्यता प्रभारी, कार्यकर्ता परेशान Bhagalpur News
एक पार्टी में दो-दो सदस्यता प्रभारी, कार्यकर्ता परेशान Bhagalpur News

भागलपुर [जेएनएन]। आजकल कार्यकर्ता बनाओ अभियान जोर पकड़े है। सभी पार्टी वाले कार्यकर्ता बनाने के लिए हाड़तोड़ मेहनत कर रहे हैं, ताकि वे बड़के नेताओं की नजर में आ सके। पता नहीं कब बड़के नेता मेहरबान हो जाएं और तकदीर चमक जाए।

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इसके लिए विधानसभा वार एक सदस्यता प्रभारी बनाया है। लेकिन एक पार्टी में इस बार खलबली मची हुई है। उसने इस बार सबसे महत्वपूर्ण विधानसभा में दो सदस्यता प्रभारी बना दिए हैं, जबकि जिले की अन्य विधानसभा में एक ही सदस्यता प्रभारी बनाया है।

पार्टी के इस फैसले के कई मायने निकाले जा रहे हैं। कहा जाता है जो सदस्यता प्रभारी होते हैं वे टिकट की लाइन में सबसे आगे माने जाते हैं। पर यहां तो खिचड़ी कुछ और ही पक रही है। तभी तो दो प्रभारी उतार दिए। यह गुणा गणित देखकर कार्यकर्ता भौचक है। आखिर वे किसके लिए काम करें। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के मन में क्या है। यह बात धीरे धीरे पहुंचेगी। पर अभी चर्चा का बाजार गर्म है। वैसे, एक सदस्‍यता प्रभारी संगठन के चहेते है और दूसरे की बात ही अलग है। बहरहाल, दोनों प्रभारी ने कितने सदस्य बनाएं यह फैसला तो बाद में होगा। पर अभी जो खलबली मची हुई है उसका क्या। भले ही ऊपर से सबकुछ अनुशासित दिख रहा है पर अंदरखाने में ऑल इज वेल नहीं है।

यहां साहब की नहीं चलती....

जिले में एक ऐसा विभाग है, जहां साहब की नहीं बाबूओं की चलती है। साहब की कोई सुनता ही नहीं है। वैसे इस विभाग से उन्हीं लोगों का सापका हैं, जो पूरे दिन शिष्टाचार की बात करते नहीं अघाते हैं। कहते हैं चिराग तले अंधेरा। चाहे जितनी आदर्श की बात हो जाए। पर साहब के दफ्तर में आदर्श ताखें पर है। हाल में ही साहब ने कुछ मातहतों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए जिले के बड़के साहब को पत्र भेज दिया। बड़के साहब ने भी कार्रवाई कर दी। इसके बावजूद विभाग की हालत नहीं सुधरी। अब तो साहब के दफ्तर में काम करने वाले अपनी कुर्सी पर बैठते तक नहीं। फोन से सब डील कर लेते हैं। फोन से बात न बनी तो चाय की दुकान पर बुला लिया। ऐसा नहीं कि साहब को पता नहीं। साहब को सब पता है पर वे कुछ कर नहीं पा रहे हैं। बेचारे के पास सिर खुजाने के अलावा कोई चारा नहीं है।

और अंत में

सिस्टम और सुविधा की पोल खुल गई। दो दिन पहले एक स्कूल की छात्राओं ने जमकर हंगामा किया। हंगामे की वजह से पढ़ाई का न होना नहीं था। हंगामे की वजह खाने में कीड़ा निकलना था। हंगामा दो दिन तक चला। जांच के लिए अफसर गए। छात्राओं ने शिकायत की बौछार कर दी। पर नतीजा ढाक के तीन पात है। इससे बढिय़ा तो यह कह दिया जाए घर से टिफिन लेकर आएं और पढ़े घर चले जाएं। फिर सुविधा देने का नाटक क्यों...? बच्चे स्कूल में पढ़ाई न होने आक्रोशित होते तो बात समझ में आती, लेकिन दोपहर में घटिया खाने के लिए हंगामा करे तो चिंता की बात है..। इस पर तो साहब को गंभीरता से विचार करना चाहिए।

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