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सुपौल में मरीज होते आर्थिक दोहन के शिकार, स्वास्थ्य सेवा का नहीं मिलता समुचित लाभ

सुपौल में सरकारी स्वास्थ्य सेवा पर गौर करें तो संपूर्ण व्यवस्था चरमराई हुई है। इससे लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सरकारी अस्पतालों में व्यवस्था नहीं होने से लोग प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Mon, 26 Oct 2020 03:51 PM (IST)Updated: Mon, 26 Oct 2020 03:51 PM (IST)
सुपौल में मरीज होते आर्थिक दोहन के शिकार, स्वास्थ्य सेवा का नहीं मिलता समुचित लाभ
सुपौल में सरकारी स्वास्थ्य सेवा पर गौर करें तो संपूर्ण व्यवस्था चरमराई हुई है।

सुपौल, जेएनएन। वर्तमान परिपेक्ष्य में मनुष्य के जीवन में स्वास्थ्य सेवा की महत्ता अहम है। ऐसे में सेवा की बेहतरी के लिए समयानुकूल ध्यानाकर्षण नहीं होना आम लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहा है। सरकारी स्तर पर घोषणानुरूप व्यवस्था की कमी का मनोनुकूल लाभ जहां निजी स्वास्थ्य संस्थान उठा रहे हैं वहीं जीवन को बचाने की गरज से लोग आॢथक शोषण के शिकार हो रहे हैं। आवश्यकता ऐसी कि लोग चाहकर भी नजर अंदाज नहीं कर सकते और कई गंभीर मामलों में विपन्नता के दलदल में धंसते चले जाते हैं। कई ऐसे मामले भी दृष्टिगत होते हैं जहां लोगों को जीवन भर की कमाई लुटानी पड़ती है। प्रखंड के सरकारी स्वास्थ्य सेवा पर गौर करें तो संपूर्ण व्यवस्था चरमराई हुई है। हालांकि चंद वर्ष पूर्व हुई घोषणा के बाद सेवा में बेहतरी के प्रयास भी हुए। व्यवस्था बदली, मुंह मोड़ चुके आम लोग एक बार फिर से सरकारी स्वास्थ्य सेवा पर भरोसा कर अस्पतालों तक ऐसे पहुंचने लगे कि आज भी कतारों में खड़े हो उपचार के लिए आशान्वित होते हैं। लेकिन कभी संसाधन की कमी, तो कभी दवा की और उपर से ईमानदार कर्तव्य निर्वहन के अभाव में आम लोग त्रस्त नजर आते हैं। प्रखंड की लाखों की आबादी के लिए उपलब्ध स्वास्थ्य सेवा नाकाफी है। ऐसे तो 23 पंचायतों से निॢमत इस प्रखंड के अधिकांश पंचायतों में स्वास्थ्य उपकेंद्र खुले हैं। लेकिन यहां आम मरीजों को दैनिकी उपचार नहीं मिल पाता। लोगों की मानें तो मात्र टीकाकरण दिवस को ही इन उपकेंद्रों पर कर्मी नजर आते हैं। वहीं पीएचसी के अलावा प्रखंड के बलुआ बाजार, राजेश्वरी एवं ग्वालपाड़ा पंचायत में अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र संचालित है। इन तीनों अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्रों में से एकमात्र बलुआ बाजार की स्थिति को ही ठीक ठाक की संज्ञा दी जा सकती है।

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अर्चना देवी कहती है कि स्वास्थ्य सेवा के नाम पर सरकार आधी आबादी को नजरअंदाज करती आ रही है। यही कारण है कि पुरूष चिकित्सक के पदस्थापन पर मात्र बल दिया गया और महिला चिकित्सक के पदस्थापन को नजरअंदाज किया जा रहा है। महिला चिकित्सक के अभाव में संबंधित मरीजों को बाहर जाकर उपचार कराने की बाध्यता बनी है और लोग आॢथक शोषण के शिकार भी हो रहे हैं। राम प्रसाद रमण ने कहा कि अस्पताल के ओपीडी में उपचार ईमानदार इच्छाशक्ति का अभाव एवं संसाधन की कमी के कारण औपचारिकता मात्र बन कर रह गई है। कर्तव्य निर्वहन का कोरम पूरा हो रहा है। खास कर रात्रि सेवा में ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक व कर्मी उपचार में लापरवाही बरतते हैं और विरोध के स्वर निकालने पर रेफर कर दिए जाने का भय बना रहता है। ओपीडी में जवाब सवाल करने पर बाहर की दवा पर निर्भर होना पड़ता है जिससे गरीब व लाचार मरीजों को परेशानी का सामना होता है। पप्पू राय बताते हैं कि छातापुर पीएचसी में उपचार के लिए आनेवाले मरीजों को भाग दौड़ की परेशानी से दो चार होना पड़ता है। जिसे अविलंब दूर किए जाने की आवश्यकता है।


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