गंगा को प्रदूषण से बचाने को टूटेगी 65 वर्षों की परंपरा, जानिए... अब प्रतिमाओं का विसर्जन कहां होगा Bhagalpur News
गंगा को प्रदूषण से बचाने की मंशा से अब किसी भी प्रतिमा का विसर्जन गंगा में नहीं किया जाएगा। गंगा में प्रतिमा विसर्जन की परंपरा 1954 से चल रही थी।
भागलपुर [राम प्रकाश गुप्ता]। गंगा नदी को प्रदूषण से बचाने को इस बार 65 वर्षों से चली आ रही परंपरा टूट जाएगी। प्रतिमाओं का विसर्जन गंगा नदी में नहीं, बल्कि वैकल्पिक तौर पर बनाए जा रहे तालाबों में किया जाएगा।
1954 में गठित केंद्रीय काली महारानी समिति ने यह सिलसिला शुरू किया था। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश का पालन करते हुए जिला प्रशासन शहरी क्षेत्र में मुसहरी घाट सहित कई स्थानों पर तालाबों की खोदाई करा रहा है, जहां प्रतिमाएं विसर्जित की जाएंगी। इसकी जवाबदेही नगर निगम को दी गई है।
गंगा को प्रदूषण से बचाने की मंशा से अब किसी भी प्रतिमा का विसर्जन गंगा में नहीं किया जाएगा। गंगा में प्रतिमा विसर्जन की परंपरा 1954 से चल रही थी। समिति के उपाध्यक्ष अभय कुमार घोष सोनू ने कहा कि 1954 में समिति के पहले अध्यक्ष रहे मेजरवार केपी सिन्हा और महासचिव राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ने इस परंपरा की नींव डाली थी, जिसका निर्वहन पिछले वर्ष तक किया गया। इस बार भी गंगा में ही विसर्जन की तैयारी थी, लेकिन प्रशासन के साथ अलग-अलग बैठकों में गंगा को स्वच्छ रखने का विषय सामने आया तो समिति ने इस पर सहमति जताई। सोनू घोष इस समिति से करीब दो दशक से जुड़े हैं। उनका कहना है कि तालाबों में भी धार्मिक भावना का ख्याल रखा जाएगा।
महासमिति के संरक्षक मंडल के सदस्य डॉ. सुबोध विश्वकर्मा कहते हैं कि इस बार परंपरा टूटेगी और गंगा में प्रतिमाओं का विसर्जन नहीं होगा। डॉ. विश्वकर्मा ने कहा कि प्रशासन को शाहजंगी पोखर को भी विकसित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि 19 प्रतिमाओं से विसर्जन शोभायात्रा प्रारंभ हुई थी, जो बढ़कर अब 78 की हो गई है। उन्होंने कहा कि महासमिति भी गंगा को प्रदूषण से बचाने के पक्ष में है।