Special on Jayanti: भैयाजी से बढ़कर निकली भैया जी की घोड़ी... की रचना कर पंडित द्विजदेनी ने इस तरह किया था जमीनदारी प्रथा पर प्रहार
महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित रामदेनी तिवारी द्विजदेनी को लोगों ने जयंती पर याद किया। द्विजदेनी जी की पहली रचना भैया जी की घोड़ी जो 1915 में प्रकाशित हुई वह तत्कालीन जमींदारी प्रथा अंतर्गत शोषण के विरुद्ध एक व्यंग्यात्मक रचना थी। उस वक्त यह काफी चर्चित रही थी।
जागरण संवाददाता, अररिया। क्षेत्र के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी पंडित रामदेनी तिवारी द्विजदेनी का जन्म 15 जनवरी 1885 को सारण जिले के नौतन में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित पीताम्बर तिवारी और माता का नाम बहोरन देवी था। वे आशुकवि के साथ-साथ गायक, वादक, नाटककार और प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। नाटक मण्डली के संचालक और निर्देशक भी रहे। वे सचमुच बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
द्विजदेनी जी की पहली रचना भैया जी की घोड़ी जो 1915 में प्रकाशित हुई, वह तत्कालीन जमींदारी प्रथा अंतर्गत शोषण के विरुद्ध एक व्यंग्यात्मक रचना थी। इस रचना की दो पंक्तियां- दिन दहाड़े खेत उजाड़े बचे न मड़वा तोड़ी, भैयाजी से बढ़कर निकली भैया जी की घोड़ी आज भी यहां दोहराया जाता है।
उनकी अन्य रचनाओं में भग्णबीन (कविता संग्रह), उल्टी गंगा(प्रहसन), पाण्डव निर्वासन, विष्याचंद्रहास(नाटक), गजल गुलजार(गजल संग्रह), जगदीश विनयावली (भजन संग्रह), गांधी गुणगान, गौ, गीतावली, कौशिकी महात्म, प्रभातियां, कजली, सुराग रत्नमाला आदि शामिल हैं।
कुछ हस्तलिखित पत्रिका का भी इन्होंने सम्पादन किया था। देश प्रेम की प्रेरणा देती ये पत्रिकाएं उन दिनों फिजी, मॉरिशस और कैरिबियाई द्वीपों में प्रवासी भारतीयों के बीच भी काफी लोकप्रिय था। साथ ही स्वतंत्रता आन्दोलन में भी उन्होंने सक्रिय रूप से बढ़ चढ़कर भाग लिया। द्विजदेनी जी को पूर्णियां प्रमंडल के स्वाधीनता आन्दोलन का पुरोधा भी कहा जाता है। फारबिसगंज जैसे पिछड़े इलाके में साहित्य, सांस्कृतिक और राजनीति की जो त्रिवेणी उन्होंने प्रवाहित की उससे तत्कालीन अररिया जिला ही नहीं बिहार प्रान्त तक आह्वानवित्त हो उठा था।
उन्होंने सिमरबनी में स्कूल और पुस्तकालय की स्थापना किया। महात्मा गांधी, मौलाना मजहरूल हक, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरु, सुभाषचंद्र बोस, सैय्यद महमूद आदि नेताओं से इनका आत्मीय संबंध रहा था। उन्हें फारबिसगंज नगर पालिका के प्रथम चेयरमैन होने का भी गौरव प्राप्त है। आजादी के पूर्व स्वप्रशासन में वे अररिया अनुमण्डल के प्रथम विधायक के रूप में निर्वाचित हुए। अंग्रेजों की यातनाओं के कारण काफी अस्वस्थ हो चुके द्विजदेनी जी का निधन 18 जून 1943 ईस्वी को हो गया। स्वतंत्रता का डंका और शिक्षा का दीप जलाने वाले द्विजदेनी जी को उनकी जयंती पर कोटि कोटि नमन।